१] प्रात: जागरण, शयन,
भोजन आदि सभी दैनंदिन कार्य समय पर व यथोचित ढंग से करें | प्राय: सभी इसे छोटी
बात समझकर नजर अंदाज करते हैं किन्तु यह अच्छी सेहत की बुनियाद है | शास्त्र कहते
हैं :
अर्धरोगहरि निद्रा
सर्वरोगहरि क्षुधा |
२] फैशन की वस्तुओं के
उपयोग एवं स्वादलोलुपता से शरीर अस्वस्थ व दुर्बल न करें बल्कि सादा व सात्त्विक
भोजन और रहन-सहन से शरीर को स्वस्थ रखें |
३] अधिकांश रोगों की
उत्पत्ति मानसिक अंसतोष, चिंता व उद्दिग्नता के कारण ही होती है | भगवन्नाम-जप,
अजपाजप, सत्संग श्रवण-मनन करनेवाले सहज में ही इनसे बच जाते हैं |
४] कसे हुए,
चटकीले-भडकीले, गहरे रंग के, तंग व कृत्रिम (सिंथेटिक) कपड़े न पहनें | ढीले-ढाले
सूती वस्त्र या ऋतू-अनुसार ऊनी वस्त्र पहनें |
५] न बहुत तेज प्रकाश में
पढना चाहिए न बहुत मंद प्रकाश में, दोनों नेत्रों के लिए हानिकारक हैं |
६] सूर्यकिरणों में
स्नान के पूर्व सूखे तौलिये अथवा हाथों से शरीर को खूब रगड़ें | इससे रक्त-परिवहन
सुचारू रूप से होने से शरीर की अनेक रोगों से रक्षा होती है |
७] सोते समय मुँह ढककर न
सोयें |
लोककल्याण सेतु – अप्रैल २०१८ से
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