हमारे शरीर का दो-तिहाई
(२/३) हिस्सा पानी से बना हैं | जल का प्रमुख कार्य पाचन की विभिन्न प्रक्रियाओं
में शामिल होना तथा शरीर की संरचना का निर्माण करना होता है | पानी पीने की मात्रा
व शरीर के द्वारा पानी निष्कासित होने की मात्रा का संतुलन बना रहता है तो शरीर के
सभी अंगो को समुचित रूप से जल मिलता रहता है | अति अथवा अत्यल्प मात्रा में तथा
अनुचित ढंग से पानी पीने से स्वास्थ्य की हानि होती है |
कई लोग गलतफहमी के शिकार
हैं कि रोज ५ लीटर से ज्यादा पानी पीना चाहिए | किंतु यह मात्रा आयु, स्थान,
प्रकृति, कार्य, आहार आदि पर निर्भर होती है व तदनुसार कम या अधिक हो सकती है |
अत: जैसे भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए वैसे प्यास लगने पर ही पानी पीना चाहिए |
अधिक जल-सेवन की हानियाँ
अधिक पानी पीने से आमदोष
की वृद्धि होती है, जिससे मंदाग्नि होती है | मंदाग्नि से रसादि सप्तधातु विकृत
होते हैं, जिससे अनेक रोग उत्पन्न होते हैं | अति जल पीने के कारण तथा सुबह खाली
पेट या रात्रि को सोते समय ठंडा जल पीने से आमदोष, मंदाग्नि व इनसे उत्पन्न
होनेवाली अनेक बीमारियाँ घेर लेती हैं | आधुनिक शोधों के अनुसार भी अधिक मात्रा
में जल का सेवन स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन सकता है, जिसे जल –विषाक्तता ( Water poisoning ) कहा जाता है |
पर्याप्त मात्रा में
पानी पियें
प्यास लगने पर भी जो लोग
टालते रहते हैं, पानी नहीं पीते उन्हें मुखशोष, अंगों में शिथिलता (थकान), कम
सुनाई देना, ज्ञान-ग्रहण शक्ति की कमी होना, चक्कर आना, ह्रदयरोग आदि दुष्परिणामों
का सामना करना पड़ता है इसलिए प्यास लगने पर आवश्यक मात्रा में पानी पियें |
इन बीमारियों में पानी
कम पियें
पर्याप्त मात्रा में
पानी पीना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है पर कुछ विपरीत शारीरिक अवस्थाओं में
पानी कम पीना अनिवार्य होता है | आयुर्वेद के अनुसार मंदाग्नि, खून की कमी (anaemia), जलोदर (ascites), भूख की कमी, आँखों के रोग, मधुमेह (diabetes),
त्वचा-विकार, सर्दी-जुकाम, बवासीर, संग्रहणी, सूजन – इन व्याधियों में अधिक पानी
पीना हितकर नहीं हैं | वृक्क अकर्मण्यता (renal failure) में
अत्यल्प पानी पीना चाहिए |
भोजन के समय व बाद में
पानी कब पियें ?
खाया हुआ अन्न पहले
आमाशय में पहुँचता है | उचित समय पर उचित मात्रा में खाये गये अन्न को आमाशय में
पाचकाग्नि प्रबल होकर सम्यक रूप से पचाती है | अगर भोजन करते समय अधिक मात्रा में
या भोजन के तुरंत बाद पानी पी लिया जाय तो पाचकाग्नि मंद हो जाने से पाचनक्रिया
मंद हो जाती है और आहार आम (कच्चा रस ) में रूपांतरित हो जाता है | अत: भोजन के
डेढ़ से पौने दो घंटे बाद प्यास-अनुरूप पानी पीना हितावह है |
भोजन के पहले पानी पीने
से व्यक्ति कृश होता है, मध्य में पीने से सम रहता है और अंत में पानी पीने से
स्थूल होता है | भोजन के बीच में थोडा-थोडा गुनगुना पानी पीना जरूरी होता है |
आचार्य चाणक्य ने लिखा
है :
अजीर्णे भेषजं वारि
जीर्णे वारि बलप्रदम ||
भोजने चामृतं वारि
भोजनान्ते विषप्रदम ||
‘अजीर्ण में (गुनगुना) पानी औषधि जैसा है | भोजन पूरा पचने
के बाद ( शुद्ध डकार आना, उत्साह लगना, शरीर हलका लगना – ये आहार पचने के लक्षण
हैं |) पानी पीना बलप्रद है | भोजन के बीच-बीच में जल पीना अमृत के समान है | भोजन
के बाद जल पीना विष के समान है |’
(चाणक्यनितिदर्पण :८.७)
ऋषिप्रसाद – जुलाई
२०१८ से