देवशयनी एकादशी से
देवउठी एकादशी तक के ४ महीने भगवान नारायण योगनिद्रा में ध्यानमग्न रहते हैं |
जैसे सर्दियों में हिमालय में बर्फ पडती है तो भारत के कई हिस्सों का वातावरण भी
ठंडा हो जाता है | ऐसे ही चातुर्मास में भगवान नारायण आत्मशांति में समाधिस्थ रहते
हैं तो वातावरण दूसरों को भी ध्यान-भजन करने और मौन-शांत होने में मददगार हो जाता
है | जैसे सर्दियों के दिनों में सर्दी का खुराक ( भोजन ) अच्छा पचता है, ऐसे ही
ध्यान-भजन करनेवालों को इन दिनों में ध्यान-भजन ज्यादा फलेगा | चातुर्मास में
बादल, बरसात की रिमझिम, प्राकृतिक सौन्दर्य का लहलहाना – यह सब साधन- भजनवर्धन है,
उत्साहवर्धक है | इसलिए इन दिनों में अनुष्ठान, जप, मौन का ज्यादा महत्त्व है |
चातुर्मास में तो सहज में ही साधक के ह्रदय में भगवद-आनंद आ जाता है |
चातुर्मास में क्या
करें, क्या न करें ?
चातुर्मास में
ईर्ष्यारहित होना चाहिए | इन दिनों में परनिंदा सुनने व करने से अन्य दिनों की
अपेक्षा बड़ा भारी पाप लगता है | शास्त्र कहते हैं :
पर निंदा सम अघ न
गरीसा | (श्री रामचरित उ. कां. १२०.११ )
इसलिए परनिंदा का
विशेषरूप से त्याग करें | पत्तल में भोजन करना बड़ा पुण्यदायी है लेकिन पत्तल पर
आजकल लेमिनेशन करते हैं, उसमें क्या-क्या गंदी चीजें पडती हैं ! लेमिनेशन बिना की
पलाश-पत्तों की पत्तल अथवा बड के पत्तों पर अगर कोई भोजन करता है तो उसे यज्ञ करने
का फल होता है |
स्नान करते समय पानी
की बाल्टी में २ – ४ बिल्वपत्र डाल दें और ‘ॐ नम: शिवाय |...’ जप करके नहायें अथवा
थोड़े तिल व सूखे आँवलों का चूर्ण पानी में डाल के ‘गंगे यमुने ...’ करके नहायें,
शरीर को रगड़ें, तो यह तीर्थ-स्नान और पुण्यदायी स्नान माना जाता है | यह शरीर की
बीमारियों को भी मिटाता है और पुण्य व प्रसन्नता भी बढ़ाता है |
इन ४ महीनों में शादी
और सकाम कर्म मना है | पति-पत्नी का संसार-व्यवहार स्वास्थ्य के लिए खतरे से खाली
नहीं हैं | अगर करेंगे तो कमजोर संतान पैदा होगी और स्वयं भी कमजोर हो जायेंगे |
शाश्वत की उपासना का
सुवर्णकाल
इन दिनों आसमान में
बादल रहते हैं, हवामान ऐसा रहता है कि ज्यादा अन्न पचता नहीं इसलिए एक समय भोजन
किया जाता है | जो जीवनीशक्ति भोजन पचाने में लगती है, एक समय भोजन करनेवाले
व्यक्ति की वह शक्ति कम खर्च होती है तो वह उसे भजन करने में लगायें, जीवनदाता के तत्त्व
का अनुभव करने में लगाये |
दूसरी बात, ध्यान व
जप करनेवाले लोग यह बात समझ लें कि चतुर्मास में उपासना तो करनी ही है | नश्वर के
लिए तो ८ महीने करते हैं, ये ४ महीने तो परमात्मा के लिए करें, शाश्वत के लिए करें | इन महीनों में छोटा-बड़ा
कोई-न-कोई नियम ले सकते हैं | ईश्वर को आप कुछ नहीं दे सकें तो प्यार तो दे सकते
हैं | ईश्वर को प्यार करने में, अपना मानने में, वेदांत का सत्संग सुनने में आप
स्वतंत्र हैं | अपने को ईश्वर का और ईश्वर को अपना मानने से स्नेह, पवित्र प्यार व
आनंद उभरेगा | आप संकल्प कर लीजिये कि ‘चातुर्मास में इतनी माला तो जरुर करूँगा |
इतनी देर मौन रहूँगा | इतना यह साधन अवश्य करूँगा... |’ इस प्रकार कोई नियम लेकर
आप अपना आत्मिक धन बढ़ाने का संकल्प कर लो | ॐ ॐ ॐ ...
ऋषिप्रसाद
– जून २०१९ से
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