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Wednesday, September 11, 2019

सभी के लिए उपयोगी तप


अवज्ञानमहङकारों दम्भश्चैब विगर्हित: |
अहिंसा सत्यमक्रोध: सर्वाश्रमगतं तप: ||

‘किसीका अनादर करना, अहंकार दिखाना और ढोंग करना – इन दुर्गुणों की विशेष निंदा की गयी है | किसी भी प्राणी की हिंसा न करना, सत्य बोलना और क्रोधित न होना – यह (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास –इन) सभी आश्रमवालों के लिए उपयोगी तप हैं |’
(महाभारत, शांति पर्व:१९१.१५)

लोककल्याण सेतु – सितम्बर २०१९ से

भोजन-संबंधी स्वास्थ्य-हितकारी १० सूत्र


आहार-विहार के नियमों का पालन करना स्वस्थ और रोगी –सभीके लिए जरूरी और हितकारी होता है | चरक संहिता में भोजन-संबंधी ध्यान रखने योग्य १० सूत्र बताये गये हैं :

१] गर्म : ताजे, गर्म भोजन से जठराग्नि तेज होती है, भोजन सीघ्र पच जाता है | आमाशय के कफ का शोषण और मल-मूत्र का सुखपूर्वक निष्कासन होता है | गर्म भोजन स्वादिष्ट भी लगता है अत: गर्म भोजन करना चाहिए |

२] स्निग्ध : स्निग्ध भोजन पेट में पहुँचकर जठराग्नि प्रदीप्त करता है, पचता भी जल्दी है | शरीर का पोषण, वृद्धि और बलवर्धन करता है, इन्द्रियों की कार्यक्षमता बढ़ाकर उन्हें भी बलवान बनाता है तथा त्वचा का रंग साफ़ करता है |

३] मात्रापुर्वक : उचित मात्रा में यानी अपनी पाचनशक्ति के अनुकूल मात्रा में किया हुआ भोजन वात-पित्त-कफ को कुपित न करते हुए, जठराग्नि को हानि पहुँचाये बिना, सरलता से पाचन होकर मलद्वार तक पहुँच के मल के रूप में विसर्जित हो जाता है | यह पूर्णत: स्वास्थ्यवर्धक होता है |

४] पूर्व का पचने पर ही : पहले का खाया हुआ भोजन पचा न हो तो इस अवस्था में भोजन करने से पेट में पहले का पड़ा हुआ अनपचा रस नये भोजन में मिल के दोषों को कुपित कर देता है | पहले का भोजन पच जाने पर, जठराग्नि प्रदीप्त रहने व भूख लगने पर एवं पेट हलका होने पर ही भोजन करने से भोजन शीघ्र पचकर शरीर हलका व फुर्तीला रहता है |

५] वीर्य के अविरुद्ध : जो पदार्थ परस्पर वीर्य-विरुद्ध न हों उन्हें ही एक साथ खाना चाहिए | इससे विकार और रोग उत्पन्न नहीं होते | परस्पर विरुद्ध वीर्य ( गुण व शक्ति ) वाले पदार्थ एक साथ लेने से विकार और रोग उत्पन्न होते हैं | जैसे – नमक या खटाई युक्त भोजन के साथ दूध का सेवन, गर्म भोजन के साथ ठंडा पानी पीना आदि |

६] अनुकूल स्थान व सामग्री से युक्त : उचित व सात्त्विक स्थान पर अपने ऊँचे लक्ष्य एवं कर्म अनुकूल सात्त्विक सामग्री से बना भोजन करने से मन प्रसन्न रहता है, तृप्त होता है | मन में प्रतिकूल विचार नहीं आते |

७] न अधिक जल्दी : जल्दी-जल्दी भोजन करने से भोजन में लार ठीक से मिल नहीं पाती, जिससे पाचन में विलम्ब होता है और शरीर को आहार-द्रव्यों का पूरा लाभ नही मिल पाता है | अत: खूब चबा-चबाकर धीरे-धीरे भोजन करना चाहिए |

८] न अधिक धीरे : बहुत धीरे-धीरे, रुक-रुक के भोजन करने से तृप्ति नहीं होती और ज्यादा मात्रा में खा लिया जाता है तथा आहार ठंडा भी हो जाता है | अत: बहुत धीरे-धीरे और रुक-रुक के भोजन नहीं करना चाहिए |

९] बातचीत व हास्य रहित, एकाग्रचित्त होकर : किसी चिंतावाले विषय पर विचार करते हुए या बातचीत करते हुए और हँसते-खिलखिलाते हुए भोजन नहीं करना चाहिए | एकाग्रचित्त होकर, मौन व प्रसन्नता पूर्वक भगवान को धन्यवाद देते हुए भोजन करना चाहिए | इससे शरीर की पुष्टि व मन की संतुष्टि होती है |

१०] आत्मशक्ति के अनुसार : अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए | ‘यह आहार-द्रव्य मेरे लिए लाभकारी है और यह हानिकारक है’ – इस प्रकार अपनी आत्मा का हित व अनुकूलता किस आहार में हैं यह अपने आत्मा से विदित होता है | इसलिए अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए |

हम अपने मन को वश में रखकर विवेक और संयम से काम लेंगे तो आहार-संबंधी उपरोक्त बातों का सहजता से पालन कर सकेंगे | इन बातों को ध्यान में रखकर आहार लेने से रोगों से बचाव होता है, शरीर पुष्ट व सबल बना रहता है तथा बीमारियाँ और बुढ़ापा दूर रहते हैं |

लोककल्याण सेतु – सितम्बर २०१९ से

आरोग्यप्रदायक मंत्र –


सूर्य मंत्र
गर्मी से उत्पन्न शारीरिक रोग, बुद्धि की विकलता ( उन्माद, पागलपन) अथवा दुर्वलता, दृष्टी-रोग, अग्नि-तत्त्व की विषमता, शरीर में जलन आदि हो तो इनके निवारण के लिए सूर्य मंत्र है | किसी भी अमावस्या को ४० बार जप करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है :

ॐ नमोऽस्तु दिवाकराय अग्नितत्त्वप्रवर्धकाय
शमय शमय शोषय शोषय
अग्नितत्त्वं समतां कुरु कुरु ॐ ||

चन्द्र मंत्र
शीत से उत्पन्न वायु-प्रधान रोगों में चन्द्र मंत्र से लाभ होता है | मंत्र है :

ॐ चन्द्रो में चान्द्रमसान् रोगानपहरतु |
औषधिनाथाय वै नम: |
ॐ स्वात्मसम्बन्धिन: सर्वत: सर्वरोगान् शमय शमय तत्रैव पातय पातय |
शक्तिं चोद्भावयोद्भावय ||

किसी पर्व अथवा पुण्य दिवस पर चन्द्र मंत्र का २०० बाद ( दो माला ) जप करने से मंत्र सदा के लिए सिद्ध हो जाता है | और अगर चन्द्रग्रहण के समय जप कर लिया जाय तो केवल २०-२५ बार जप करनेमात्र से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है |

मंत्रसिद्धि के बाद इनमें से जिस मंत्र की आवश्यकता हो उसका पानी में देखते हुए ५, ७ या ११ बार जप करें | यह अभिमंत्रित जल रोगी को स्पर्श कराने , लगाने,  पिलाने और उससे स्नान कराने से भी बहुत लाभ होगा | 

इन मंत्रों का उपयोग अपने परिचितों, हितैषियों के लिए भी कर सकते हैं, अपने लिए भी कर सकते हैं |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से


बालों के लिए कौन-सा तेल उचित है


कफ प्रक्रुतिवालों के लिए उष्ण गुणयुक्त टिल और सरसों का तेल उपयुक्त है | 

पित्त प्रक्रुतिवालों के लिए शीत गुणयुक्त आँवला भृंगराज केश तेल, नारियल तेल व ब्राम्ही तेल का उपयोग हितावह है | 

वात प्रकृति के लोगों के लिए तिल का तेल सर्वोत्तम है एवं बला, अश्वगंधा, शतावरी आदि से सिद्ध तिल-तेल भी उपयुक्त है |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से

पैरों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए


क्या करें
१] पैरों एवं मलमार्गों की यथा-अवसर शुद्धि करते रहने से पवित्रता, धारणाशक्ति व आयु बढती है और कुरूपता तथा रोगों का नाश होता है |
२] पैरों की, विशेषत: तलवों की तेल-मालिश करते रहने से उनका खुरदरापन, जकड़ाहट, रुक्षता, सुन्नता व थकावट दूर होते हैं तथा पैर श्रम से अकड़ते नहीं | पैरों में कोमलता व बल आता हैं, नेत्रज्योति बढती है, नींद अच्छी आती है | पैरों एवं एडियों का दर्द, पैरों की नसों में खिचाव, सायटिका, बिवाइयाँ आदि में भी लाभ होता है |
३] हाथों से धीरे-धीरे पैर दबाने से प्रसन्नता व बल बढ़ता है, थकान मिटती है तथा नींद अच्छी आती है | इससे मांस, रक्त व त्वचा पुष्ट होते हैं, वात-कफ के दोष दूर होते हैं |
४] दौड़ने, रस्सीकूद, तैरने, व्यायाम आदि से पैर स्वस्थ व मजबूत रहते हैं |
५] तलवों की जलन में गुलाबजल में मुलतानी मिट्टी मिला के पैरों में लगायें व सूखने पर धोयें |

क्या न करें
१] नंगे पैर भ्रमण न करें, यह रोगकारक, नेत्रज्योति व आयु नाशक है |
२] अधिक ढीले, तंग, सख्त या प्लास्टिक के अथवा किसी दूसरे के जूते – चप्पल न पहनें |
३] कुर्सी पर बैठते समय पैर नीचे की तरफ सीधे रख के बैठें | पैरों को एक के ऊपर एक रख के न बैठें |
४] पैरों में तंग कपड़े न पहनें | इससे त्वचा को खुली हवा न मिलने से पसीना नहीं सूखता व रोमकूपों को ऑक्सीजन न मिलने से त्वचा-विकार होते हैं | पैरों का रक्तसंचार प्रभावित होने से पैर जल्दी थकते हैं |
५] एक ही पैर पर भार दे के खड़े न रहें | इससे घुटनों व् एडियों का दर्द होता है |
६] ऊँची एडी की चप्पले थकानकारक, शरीर का संतुलन बिगाड़नेवाली, अंगों पर अनावश्यक भार पैदा करनेवाली होती हैं | अत: इन्हें न पहनें |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हे ग्रेवी


ग्रेवी अर्थात शोरबा स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है  टमाटर, दही, मूँगफली, काजू, नारियल आदि जिस भी पदार्थ की ग्रेवी बनानी होती है, उसे पीस के प्यास, लहसुन, अदरक, मिर्च, गरम मसाला आदि के साथ तेल में तला जाता है, जिसे उस पदार्थ की ग्रेवी कहते हैं |

आधुनिक खोजों के अनुसार अधिक तेलयुक्त ग्रेवी का भोजन में सतत उपयोग करने से ज्ञान ग्रहण करने एवं समझने की क्षमता कम होती है | मांसपेशियों की शक्ति व शारीरिक कार्यक्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा अवसाद (depression) होने का खतरा होता है |    

सब्जी में ग्रेवी डालना पित्तवर्धक व आयुनाशक है | यह राक्षसी भोजन है | इसे न स्वयं खायें न औरों को खिलायें | ग्रेवी और अंधाधुंध लहसुन डालने से तमोगुण बढने के कारण बुद्धि मलिन हो जाती है और पित्त-संबंधी बीमारियाँ अच्छे ढंग से पनपती हैं | कई लोग अकारण रोग झेलते हैं – आँखों में जलन, पैरों में जलन, पेशाब म जलन, स्वभाव में जलन.... क्या-क्या बतायें ! आपके घरवाले या सम्पर्कवाले कोई भी यह गलती करते हैं तो उन्हें इस पाप से बचाना आपका कर्तव्य है |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से

तला हुआ आलू – गम्भीर बीमारियों का कारण


आयुर्वेद के अनुसार आलू शीतल, रुक्ष, पचने में भारी, कफ तथा वायु को बढानेवाला एवं रक्तपित्त को नष्ट करनेवाला है |

आचार्य चरक ने सभी कंदों में आलू को सबसे अधिक अहितकर बताया है | इसके नियमित सेवन से कब्ज, गैस आदि पाचनसंबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं |

आलू को तेल में तलने से वह विषतुल्य काम करता है | तले हुए आलू के पदार्थ, जैसे – चिप्स, पकौड़े आदि पचने में भारी व वातपित्त-कफवर्धक होते हैं | तले हुए चिप्स के ऊपर मिर्च, राई, नमक, गरम मसाला बुरक के खाने से स्वप्नदोष, शुक्रस्त्राव, श्वेतप्रदर आदि समस्याएँ होती हैं |

आधुनिक संशोधनों के निष्कर्ष :
१] उच्च तापमान पर या अधिक समय तक आलू को तेल में भूनने या तलने से उसमें स्वाभाविक ही एक्रिलामाइड का स्तर बढ़ता है, जो कि कैंसर – उत्पादक तत्त्व सिद्ध हुआ है |

२] एक अमेरिकन अनुसंधान के अनुसार उबला हुआ, तला हुआ, फ्रेंच फ्राइज या चिप्स आदि किसी भी रूप में आधिक बार आलू का सेवन करने से उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ता है |

३] कुछ शोधकर्ताओं ने तले हुए आलू के अधिक सेवन से मृत्यु-दर में वृद्धि होती पायी | इसका सेवन मोटापा व मधुमेह का भी कारण बन सकता है |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से

सात प्रकार की पत्नियाँ


इसमें ३ प्रकार की स्त्रियाँ बुरी और अवांछनीय होती हैं |

इसमें से पहले प्रकार की स्त्रियाँ परेशान करनेवाली होती हैं | वे दुष्ट स्वभाववाली, क्रोधी व दयारहित होती हैं और साथ ही पति के प्रति वफादार नहीं होतीं, परपुरुषों में प्रीति रखती हैं |

दूसरी चोर की तरह होती हैं | वे अपने पति की सम्पदा को नष्ट करती रहती हैं या उसमें से अपने लिए चुराकर रखा करती हैं |

तीसरी क्रूर मालिक की तरह होती हैं | वे करुणारहित, आलसी व स्वार्थी होती हैं | वे हमेशा अपने पति व औरों को डॉटती रहती हैं |

अन्य ४ प्रकार की स्त्रियाँ अच्छी और प्रशंनीय होती हैं | वे अपने अच्छे आचरण से आसपास के लोगों को सुख पहुँचाने का प्रयास करती हैं |

इनमें से पहले प्रकार की माँ की तरह होती हैं | वे दयालु होती हैं और अपने पति के प्रति ऐसा स्नेहभाव रखती हैं जैसे एक माँ का एक पुत्र के प्रति होता है | पति की कमाई, घर की सम्पदा व लोगों की समय-शक्ति का व्यर्थ व्यय न हो इसकी वे सावधानी रखती हैं |

दूसरी बहन की तरह होती हैं | वे अपने पति के प्रति ऐसा आदरभाव रखती हैं जैसा एक बहन अपने बड़े भाई के प्रति रखती हैं | वे विनम्र और अपने की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं |

तीसरी मित्र की तरह होती हैं | वे पति को देख उसी तरह आनंदित होती हैं जैसे कोई अपने उस सखा को देखकर आनंदित होता है जिसे उसने बहुत समय से देखा नही था | वे जन्म से कुलीन, सदाचारी और विश्वसनीय होती हैं |

चौथी दासी की तरह होती हैं | जब उनकी कमियों को इंगित किया जाता है तब वे एक समझदार पत्नी की रूप में व्यवहार करती हैं | वे शांत रहती हैं और उनका पति कभी कुछ कठोर शब्दों का उपयोग कर देता है तो भी वे उसको सकारात्मक लेती हैं | वे अपने  पति की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं |

(अपने परिवार के लोगों व अपने सम्पर्क में आनेवाले अन्य लोगों के साथ अपना व्यवहार कैसा होना चाहिए – यह जानने तथा अपने व्यवहार को मधुर बनाने हेतु पढ़ें पूज्य बापूजी के  सत्संग आधारित सत्साहित्य ‘मधुर व्यवहार’ व ‘प्रभु-रसमय जीवन’ | ये सत्साहित्य आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से

कार्तिक मास की महिमा


कार्तिक मास में रामायण के श्रवण की विशेष महिमा बतायी गयी है | रामायण की कथा उसके आध्यात्मिक रहस्य के साथ सुनने से ही उसके श्रवण का पूर्ण फल प्राप्त होता है अत: पूज्य बापूजी के रामायण एवं योगवसिष्ठ महारामायण पर हुए सत्संगों का अवश्य लाभ लें |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से