इसमें ३ प्रकार की स्त्रियाँ बुरी और
अवांछनीय होती हैं |
इसमें से पहले प्रकार की स्त्रियाँ
परेशान करनेवाली होती हैं | वे दुष्ट स्वभाववाली, क्रोधी व दयारहित होती हैं और
साथ ही पति के प्रति वफादार नहीं होतीं, परपुरुषों में प्रीति रखती हैं |
दूसरी चोर की तरह होती हैं | वे अपने
पति की सम्पदा को नष्ट करती रहती हैं या उसमें से अपने लिए चुराकर रखा करती हैं |
तीसरी क्रूर मालिक की तरह होती हैं |
वे करुणारहित, आलसी व स्वार्थी होती हैं | वे हमेशा अपने पति व औरों को डॉटती रहती
हैं |
अन्य ४ प्रकार की स्त्रियाँ अच्छी और
प्रशंनीय होती हैं | वे अपने अच्छे आचरण से आसपास के लोगों को सुख पहुँचाने का
प्रयास करती हैं |
इनमें से पहले प्रकार की माँ की तरह
होती हैं | वे दयालु होती हैं और अपने पति के प्रति ऐसा स्नेहभाव रखती हैं जैसे एक
माँ का एक पुत्र के प्रति होता है | पति की कमाई, घर की सम्पदा व लोगों की
समय-शक्ति का व्यर्थ व्यय न हो इसकी वे सावधानी रखती हैं |
दूसरी बहन की तरह होती हैं | वे अपने
पति के प्रति ऐसा आदरभाव रखती हैं जैसा एक बहन अपने बड़े भाई के प्रति रखती हैं |
वे विनम्र और अपने की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं |
तीसरी मित्र की तरह होती हैं | वे
पति को देख उसी तरह आनंदित होती हैं जैसे कोई अपने उस सखा को देखकर आनंदित होता है
जिसे उसने बहुत समय से देखा नही था | वे जन्म से कुलीन, सदाचारी और विश्वसनीय होती
हैं |
चौथी दासी की तरह होती हैं | जब उनकी
कमियों को इंगित किया जाता है तब वे एक समझदार पत्नी की रूप में व्यवहार करती हैं
| वे शांत रहती हैं और उनका पति कभी कुछ कठोर शब्दों का उपयोग कर देता है तो भी वे
उसको सकारात्मक लेती हैं | वे अपने पति की
इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं |
(अपने परिवार के लोगों व अपने
सम्पर्क में आनेवाले अन्य लोगों के साथ अपना व्यवहार कैसा होना चाहिए – यह जानने
तथा अपने व्यवहार को मधुर बनाने हेतु पढ़ें पूज्य बापूजी के सत्संग आधारित सत्साहित्य ‘मधुर व्यवहार’ व ‘प्रभु-रसमय
जीवन’ | ये सत्साहित्य आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)
ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१९ से
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