Haridwar 28th April 2010
Tips for an all round Success in Life from His Holiness Saint Shri Asharamji Bapu.
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Friday, April 30, 2010
अच्छे स्वास्थ्य के लिए
पदाई में या याददाश्त कमजोरी के लिए
Thursday, April 29, 2010
अधिक गर्मी में
Monday, April 19, 2010
बुढ़ापे की कमजोरी के लिए
गंगा स्नान
Haridwar 14th April 2010
Wednesday, April 7, 2010
पौष्टिक फल फालसा
बिल्वपत्र के प्रयोग
· बेल के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है।
· पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से इन दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों में लाभ होता है।
· बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है। बेल के पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है।
· बरसात में आँख आने की बीमारी (Conjuctivitis) होने लगती है। बेल के पत्ते पीसकर आँखों पर लेप करने से एवं पत्तों का रस आँखों में डालने से आँखें ठीक हो जाती है।
· कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना पर्याप्त है।
· एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते हैं।
· संधिवात में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है।
· बेलपत्र पानी में डालकर स्नान करने से वायु का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है।
· बेलपत्र का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है।
· पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है।
· स्त्रियों के अधिक मासिक स्राव व श्वेतस्राव (Leucorrhoea) में बेलपत्र एवं जीरा पीसकर दूध में मिलाकर पीना खूब लाभदायी है। यह प्रयोग पुरुषों में होने वाले धातुस्राव को भी रोकता है।
· तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में ताड़ासन व पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है। नाटे ठिंगने बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वादरूप है।
· मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का चूर्ण खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है।
बिल्वपत्र की रस की मात्राः 10 से 20 मि.ली.
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जुलाई अगस्त 2009
ग्वारपाठे के स्वास्थ्यवर्धक प्रयोग
ग्वारपाठा, जिसे घृतकुमारी भी कहते हैं, स्वास्थ्य के लिए बहुत उत्तम माना जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से इसका रस कडुआ, शीतल, जठराग्निवर्धक, पाचक, विरेचक (मलनिस्सारक), बलवर्धक, सूजन दूर करने वाला और दाहशामक है। यकृत (लीवर) के लिए तो यह मानो अमृत ही है।
ज्वर-दाह को शांत करने के लिए इसके गूदे में मिश्री मिलाकर रोगी को दी जाती है। इसका ताजा रस गर्भाशय की शिथिलता को दूर करता है, अतः महिलाओं के लिए भी बहुत उपयोगी है। यदि आँख आ गयी हो (केटरल कंजक्टीवाइटिस) तो इसके रस में फिटकरी का चूर्ण मिलाकर पलकों पर लेप करने से जलन शांत होती है तथा पककर दूषित रक्त निकल जाता है। इसके पत्तों का नमकीन अचार भी बनाया जाता है, जिससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है और पाचन सुधरता है। वैसे तो इसके बहुत उपयोग हैं पर यहाँ एक रूचिकर स्वास्थ्यवर्धक प्रयोग दिया जा रहा है।
ग्वारपाठा और मेथी की लौंजी।
सामग्रीः 100 ग्राम ग्वारपाठा, 25 ग्राम मेथी, 20 ग्राम नग किशमिश, 2 नग तेजपत्ता, 1 चुटकी हींग, आधा चम्मच जीरा, 1 चम्मच पिसी हुई राई, 2 चम्मच पिसा धनिया, डेढ़ चम्मच अमचूर, 1 बड़ा चम्मच शक्कर, चार बड़े चम्मच तेल एवं स्वादानुसार नमक।
विधिः सर्वप्रथम ग्वारपाठे के काँटे छील लें और उसके छोटे-छोटे चौकौर टुकड़े काटकर पानी में उबालें। फिर मेथीदाना धो लें और उबालें। कड़ाही में तेल डालकर तेजपत्ता, हींग व जीरे का बधार तैयार करें। अमचूर छोड़ शेष सामग्री डालकर अच्छी तरह हिलायें। शक्कर गल जाने पर अमचूर भी मिला दें। दो मिनट बाद उतार लें। लौंजी तैयार है। यह स्वादिष्ट और स्वास्थ्यप्रद भी है। इसे बनाकर 4-5 दिन तक रखा जा सकता है।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जनवरी फरवरी 2009
प्रसूता की देखभाल
Thursday, April 1, 2010
सार्स (किलर न्यूमोनिया)
नीम की पत्तियों का धूप करना, उसकी पत्तियों का स्टीमबाथ लेना, नासिका से नीम की पत्तियों की भाप लेना।
सोंठ, कालमिर्च, पीपर, हल्दी, अजवायन जैसी वनस्पतियों के चूर्ण का धूप देने में तथा स्टीमबाथ में उपयोग करना चाहिए।
जहाँ तक संभव हो अच्छी से अच्छी गुणवत्तावाली हल्दी का चूर्ण 2-2 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।
20-25 ग्राम अदरक को कूटकर उसका रस निकाल लें तथा उसमें 5 ग्राम गुड़ मिलाकर खाली पेट लें अथवा अच्छी गुणवत्तावाली 2 से 3 ग्राम सोंठ गुड़ के साथ मिलाकर लें।
यदि बुखार न हो तो दोपहर में भोजन करने से पहले देशी गाय का चम्मच शुद्ध घी हलके गरम पानी के साथ लें।
किसी भी प्रकार की बीमारी में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पानी को उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए और संभव हो सोना, चाँदी के टुकड़े पानी में डालने चाहिए।
सभी प्रकार के संक्रामक रोगों में मांसाहार तथा कत्लखाने बंद करने चाहिए।
सामान्य रूप से विषाणु (वायरस) गर्मी नहीं सह सकते, इसलिए संक्रामक रोगों में गर्मीवाले वातावरण में अधिक रहना चाहिए तथा एयरकंडीशन, कूलर, पंखे का यथासंभव कम से कम उपयोग करना चाहिए।
तुलसी, पुदीना के रस या अर्क का प्रयोग करें। तुलसी के गमले लगायें, तुलसी के पत्ते की माला पहनें। सुबह तुलसी के 5-7 पत्ते चबाकर पानी पी लें यह विशेष गुणकारी है।
त्रिकटु चूर्ण या छोटी पीपर का 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लें। इनकी तासीर गर्म है इसलिए अधिक मात्रा न लें।
लोक कल्याण सेतु, जून 2003
प्रसन्नता के लिए मंत्र
मंत्रः ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उसभमाजियं च वंदे संभवमभिनंदणं च, सुमई च पउमप्पहं, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे स्वाहा।
विधिः किसी भी माह के शुक्लपक्ष में सोमवार से इस मंत्र का जप प्रारंभ करें। पूर्वाभिमुख होकर पद्मासन में बैठकर रोज एक माला करें। सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला (स्फटिक) का प्रयोग करे। सफेद पदार्थों का ही भोजन करें। 7 दिन तक मौन रखकर एकाग्रतापूर्वक जप करें।
यह अत्यन्त प्रसन्नतादायक मंत्र है। नाक से 10-15 गहरी श्वास लें और मुँह से छोड़ें। श्वास लेते समय 'राम' व छोड़ते समय कृष्ण की भावना करें तो विशेष लाभ होगा और प्रेमावतार, प्रसन्नतादाता की कृपा का अनुभव सहज में ही होगा।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जून 2003
शहद के फायदे
• शुद्ध शहद आँखों में लगाने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
• अनिद्रा व कब्ज की शिकायत में शहद के नियमित सेवन से लाभ होता है।
• रक्तचाप बढ़ने पर लहसुन के साथ शहद लेना चाहिए।
• बच्चों को नौ मास शहद देने से उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होता।
• आँतों की शिकायत में आँवले के रस के साथ शहद का सेवन करना चाहिए।
• शहद को अनार के रस में मिलाकर लेने से दिमागी कमजोरी, सुस्ती, निराशा तथा थकावट होती है।
लोक कल्याण सेतु फरवरी 2010