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Friday, April 30, 2010

अच्छे स्वास्थ्य के लिए

२ छोटी काली हरड का पाउडर बनकर रात्रि को हफ्ते में १ बार फांकने से हल्का सा जुलाब होता है । इससे कफ, पित्त व वायुजनित बीमारी को निकालकर लम्बी स्वस्थ्य आयु होती है । अन्यथा कोष्ट शुद्धि की २-२ गोलियां भी ले सकते हैं।

Haridwar 28th April 2010


पदाई में या याददाश्त कमजोरी के लिए

जो बच्चे पड़ने-लिखने में, याद रखने में कमज़ोर हैं या जिन लोगों को खांसी-ज़ुकाम पकड़ता रहता है तो २ सेब (छोटे सेब हैं तो २, अगर पहलवान सेब है तो १ ) छिलके सहित ऊपर से गर्म पानी में डाल के मोम की परत होती है ......वो परत और मैल चाक़ू से घिस के हटा दिया । फिर छिलके सहित वो सेब चबा-चबा के खाएं । इससे याददाश्त बढेगी , पेट की बीमारी कम होगी। निद्रा नहीं आती तो अच्छी आएगी । खांसी-ज़ुकाम आदि ठीक होने लगेगा । जिनको क्रोध के कारण स्मरण शक्ति बिगडती है, उन लोगों तो भी १५ दिन ये प्रयोग करना चाहिए।

Haridwar 28th April 2010

Thursday, April 29, 2010

अधिक गर्मी में

गर्मी का अहसास होता हो तो सौंफ, धनिया और मिश्री समभाग कूट के रखो और १० ग्राम चबा-चबा के खाते जाओ और बीच में पानी पीते जाओ अथवा खूब घोंट के पानी डाल के ठंडाई बना के पियो, तबियत अच्छी रहेगी ।

Haridwar 25th April 2010

Monday, April 19, 2010

बुढ़ापे की कमजोरी के लिए

१५०-२५० ग्राम प्राकृतिक आम का रस (मात्रा उतनी लें जैसा आपका बल-बूता हो) लें । रस निकाल के १ बड़ा चम्मच असली शहद और थोड़ा सौंठ अथवा अदरक का रस मिला कर अगर वृद्ध लोग पियें तो उनकी दुर्बलता वार्धक्य में थोड़ा आराम मिलेगा । नारंगी भी वार्धक्य रोकती है, उसमे कई विटामिन होते हैं। सूर्य की किरण (सूर्योदय से लेकर १ घंटे तक की किरण) भी वार्धक्य को रोकती है ।

Haridwar 16th April 2010

गंगा स्नान

दूसरी जगह रात्रि स्नान वर्जित है, लेकिन गंगाजी में रात्रि स्नान में भी दोष नहीं लगता है । गंगा जल घर में लाकर उसमे धीरे-धीरे दूसरे पानी की धार डालकर पूरी बाल्टी गंगा जल की बना ली। गंगे, यमुने गोदावरी, सरस्वती नर्मदा, सिन्धु, कावेरी जलेस्मि सिन्धि कुरु ........करके पहला लोटा सिर पे डाला। ऐसा करने पर अश्वमेघ यज्ञ करने का फल होता है । स्नान करते हो तो जहाँ से धारा आ रही है (नदी का प्रवाह), उसकी तरफ सिर करके गोता मारना चाहिए। पहले सिर भीगे.... फिर पैर भीगे । अगर पहले पैर भीगते हैं तो पैरों की गर्मी सिर में चदती है। पहले सिर भीगता है तो सिर की गर्मी उतर जाती है । लेकिन तालाब, बावड़ी में तो सूर्याभिमुख होकर गोता मारना चाहिए



Haridwar 14th April 2010

Wednesday, April 7, 2010

पौष्टिक फल फालसा

पेट का शूलः सिकी हुई 3 ग्राम अजवाइन में फालसा का रस 25 से 30 ग्राम डालकर थोड़ा सा गर्म कर पीने पेट का शूल मिटता है।
पित्तविकारः गर्मी के दोष, नेत्रदाह, मूत्रदाह, छाती या पेट में दाह, खट्टी डकार आदि की तकलीफ में फालसा के रस का शर्बत बनाकर पीना तथा अन्य सब खुराक बन्द कर केवल सात्त्विक खुराक लेने से पित्तविकार मिटते हैं और अधिक तृषा में भी राहत होती है।
हृदय की कमजोरीः फालसा का रस 50 मि.ली, नींबू का रस 5 मि.ली., सेंधा नमक एक चुटकी, काली मिर्च एक चुटकी लेकर उसमें स्वाद के अनुसार मिश्री या शक्कर मिलाकर पीने से हृदय की कमजोरी में लाभ होता है।
पेट की कमजोरीः पके फालसे के रस में गुलाबजल तथा शक्कर मिलाकर रोज पीने से पेट की कमजोरी दूर होती है और उलटी, उदरशूल, उबकाई आना आदि तकलीफें दूर होती हैं व रक्तदोष भी मिटता है।
दिमाग की कमजोरीः कुछ दिनों तक नाश्ता के स्थान पर फालसा का रस 50 मि.ली. पीने से दिमाग की कमजोरी तथा सुस्ती दूर होती है, फुर्ती और शक्ति प्राप्त होती है।
मूढ़ या मृत गर्भ में- कई बार गर्भवती महिलाओं के गर्भाशय में स्थित गर्भ मूढ़ या मृत हो जाता है। ऐसी अवस्था में गर्म को जल्दी निकालना तथा माता का प्राण बचाना आवश्यक होता है। ऐसी परिस्थिति में अन्य कोई उपाय न हो तो फालसा के मूल को पानी में घिसकर उसका लेप गर्भवती महिला की नाभि के नीचे पेड़ू, योनि और कमर पर करने से पिण्ड जल्दी बाहर आ जायेगा।
श्वास, हिचकी, कफः कफदोष से होने वाले श्वास, सर्दी तथ हिचकी में फालसा का रस थोड़ा गर्म करके उसमें थोड़ा अदरक का रस और सेंधा नमक डालकर पीने से कफ बाहर निकल जाता है तथा सर्दी, श्वास की तकलीफ और हिचकी मिट जाती है।
मूत्रदाहः पके फालसे 25 ग्राम, आँवले का चूर्ण 5 ग्राम, काली द्राक्ष 10 ग्राम, खजूर 10 ग्राम ले। फिर खजूर, द्राक्ष और फालसा को आधा कूट लें। रात्रि में इन सबको पानी में भिगो दें। सुबह उसमें 20 ग्राम शक्कर डालकर अच्छी तरह से मिश्रित करके छान लें। उसके दो भाग करके सुबह-शाम दो बार पियें। खाने में दूध, घी, रोटी, मक्खन, फल और शक्कर की चीजें लें। तमाम गर्म खुराक खाना बन्द कर दें। इस प्रयोग से मूत्र की, गुदा की, आँख की, योनि की या अन्य किसी भी प्रकार की जलन मिटती है। महिलाओं को रक्त गिरना, अति मासिकस्राव होना तथा पुरुषों का प्रमेह आदि मिटता है। दिमाग की अनावश्यक गर्मी दूर करता है।

Nutritious fruit - Phalsa
Stomach ache: Baked seeds of carom seeds (ajwain) around 3 grams mixed with 25 to 30 grams of Phalsa juice and taking it luke warm helps alleviate stomach ache.
Hyper acidity:  During summer, burning sensations in eyes, urine, chest or stomach, acidic belching, etc.. can be easily alleviated by taking juice of phalsa and abstaining from all foods except pious Sattvic foods. This helps overcome all abnormalities from excess bile and also provides relief from excess thirst.
Weakness of Heart: Taking concoction of water mixed with 50 ml of phalsa juice, 5 ml of lemon extract, pinch of rock salt, black pepper and with proportionate quantity of rock sugar or plain sugar for taste provides great relief to a weak heart.
Weakness of Stomach: Ripe phalsa extract when taken daily with rose water and sugar alleviates any weakness in the stomach and tendencies for vomit, aches, acid belch, etc. are cured. It also cures abnormalities of blood.
Weakness of intellect: If one can take 50 ml of phalsa fruit extract for a few days instead of breakfast, he shall gain intellectual strength, will be able to drive away laziness and gain agility and strength.
Numb or dead womb: In certain unfortunate circumstances, pregnant women at times are faced with a numb or dead womb. In such situations, it becomes imperative to remove the womb at earliest and save the life of the expectant mother.  If all else fails,  then grinding the roots of phalsa in water and applying the paste at the lower regions of her stomach, genital areas and hip regions, allows for quick ejection of the womb. 
Interrupted breath, hiccups, cough: In the event of adverse cough attack, taking a little warmed up phalsa extract mixed with ginger extract and rock salt in water helps weed out the cough in the body and helps cure any difficulty in breath, cough and hiccups.
Burning sensation in urine: Get 25 grams of ripe phalsa with 5 grams of amla powder, black kismiss 10 grams, dates 10 grams. Then, mash the dates, kismiss and phalsa. Soak them in water overnight. In the morning, add 20 grams of sugar to it uniformly and sieve this concoction thoroughly. Make two parts and drink it once in morning and evening. In meals, take milk, ghee, roti, butter, fruits and sugar related products. Abstain from all types of spicy foods. Through this practice, any burning sensations in urine, genitals, eyes or any other areas will get relief using this technique. All menstrual cycle related problems faced by women can also be cured in this way. Excessive heat in the head can be alleviated by this means too.
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अप्रैल मई 2003

बिल्वपत्र के प्रयोग

· बेल के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है।

· पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से इन दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों में लाभ होता है।

· बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है। बेल के पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है।

· बरसात में आँख आने की बीमारी (Conjuctivitis) होने लगती है। बेल के पत्ते पीसकर आँखों पर लेप करने से एवं पत्तों का रस आँखों में डालने से आँखें ठीक हो जाती है।

· कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना पर्याप्त है।

· एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते हैं।

· संधिवात में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है।

· बेलपत्र पानी में डालकर स्नान करने से वायु का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है।

· बेलपत्र का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है।

· पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है।

· स्त्रियों के अधिक मासिक स्राव व श्वेतस्राव (Leucorrhoea) में बेलपत्र एवं जीरा पीसकर दूध में मिलाकर पीना खूब लाभदायी है। यह प्रयोग पुरुषों में होने वाले धातुस्राव को भी रोकता है।

· तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में ताड़ासन व पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है। नाटे ठिंगने बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वादरूप है।

· मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का चूर्ण खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है।

बिल्वपत्र की रस की मात्राः 10 से 20 मि.ली.

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जुलाई अगस्त 2009

ग्वारपाठे के स्वास्थ्यवर्धक प्रयोग

ग्वारपाठा, जिसे घृतकुमारी भी कहते हैं, स्वास्थ्य के लिए बहुत उत्तम माना जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से इसका रस कडुआ, शीतल, जठराग्निवर्धक, पाचक, विरेचक (मलनिस्सारक), बलवर्धक, सूजन दूर करने वाला और दाहशामक है। यकृत (लीवर) के लिए तो यह मानो अमृत ही है।

ज्वर-दाह को शांत करने के लिए इसके गूदे में मिश्री मिलाकर रोगी को दी जाती है। इसका ताजा रस गर्भाशय की शिथिलता को दूर करता है, अतः महिलाओं के लिए भी बहुत उपयोगी है। यदि आँख आ गयी हो (केटरल कंजक्टीवाइटिस) तो इसके रस में फिटकरी का चूर्ण मिलाकर पलकों पर लेप करने से जलन शांत होती है तथा पककर दूषित रक्त निकल जाता है। इसके पत्तों का नमकीन अचार भी बनाया जाता है, जिससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है और पाचन सुधरता है। वैसे तो इसके बहुत उपयोग हैं पर यहाँ एक रूचिकर स्वास्थ्यवर्धक प्रयोग दिया जा रहा है।

ग्वारपाठा और मेथी की लौंजी।

सामग्रीः 100 ग्राम ग्वारपाठा, 25 ग्राम मेथी, 20 ग्राम नग किशमिश, 2 नग तेजपत्ता, 1 चुटकी हींग, आधा चम्मच जीरा, 1 चम्मच पिसी हुई राई, 2 चम्मच पिसा धनिया, डेढ़ चम्मच अमचूर, 1 बड़ा चम्मच शक्कर, चार बड़े चम्मच तेल एवं स्वादानुसार नमक।

विधिः सर्वप्रथम ग्वारपाठे के काँटे छील लें और उसके छोटे-छोटे चौकौर टुकड़े काटकर पानी में उबालें। फिर मेथीदाना धो लें और उबालें। कड़ाही में तेल डालकर तेजपत्ता, हींग व जीरे का बधार तैयार करें। अमचूर छोड़ शेष सामग्री डालकर अच्छी तरह हिलायें। शक्कर गल जाने पर अमचूर भी मिला दें। दो मिनट बाद उतार लें। लौंजी तैयार है। यह स्वादिष्ट और स्वास्थ्यप्रद भी है। इसे बनाकर 4-5 दिन तक रखा जा सकता है।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जनवरी फरवरी 2009

प्रसूता की देखभाल

प्रसूति के तुरंत बाद पेट पर रुई की मुलायम गद्दी रखकर कसकर पट्टा बाँधने से वायु-प्रकोप न होकर पेट वे पेड़ू अपनी मूल स्थिति में आते हैं। प्रसूति के बाद थकान होने से प्रसूता को सूखे, स्वच्छ कपड़े पहनाकर कान में रुई डालके ऊपर से रूमाल (स्कार्फ) बाँधकर 4-5 घंटे एकांत में सुला दें। प्रथम 10 दिन उठने बैठने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा गर्भाशय खिसक जाने व दूसरे अवयवों को नुकसान पहुँचने की संभावना होती है। 10 दिन बाद प्रसूता अपने आवश्यक काम करे पर मेहनत के काम सवा मास तक न करे। डेढ़ महीने तक प्रसूता को किसी प्रकार की विरेचक (दस्तावर) औषधि नहीं लेनी चाहिए। आवश्यकता पड़े तो एनीमा का प्रयोग करना चाहिए। सवा महीने तक प्रसूता को तेल मालिश अवश्य करवानी चाहिए।

प्रसव के बाद दूसरे दिन से लेकर कम-से-कम एक सप्ताह तक, हो सके तो सवा माह तक माता को दशमूल क्वाथ पिलाया जाय तो माता और बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा असर होता है।

टिप्पणीः गतांक में नवजात शिशु की उल्व की सफाई के लिए सेंधा नमक व घी का प्रयोग तथा स्नान के लिए पीपल व बड़ की छाल का प्रयोग दिया गया था। ये प्रयोग वैद्य की सलाह से तभी करने चाहिए जब बालक की त्वचा मलयुक्त, अधिक चिकनी व लसलसी हो, अन्यथा केवल तिल का तेल लगाकर हलके गर्म पानी से स्नान कराना पर्याप्त है।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जनवरी फरवरी 2009

Thursday, April 1, 2010

सार्स (किलर न्यूमोनिया)

नीम की पत्तियों का धूप करना, उसकी पत्तियों का स्टीमबाथ लेना, नासिका से नीम की पत्तियों की भाप लेना।

सोंठ, कालमिर्च, पीपर, हल्दी, अजवायन जैसी वनस्पतियों के चूर्ण का धूप देने में तथा स्टीमबाथ में उपयोग करना चाहिए।

जहाँ तक संभव हो अच्छी से अच्छी गुणवत्तावाली हल्दी का चूर्ण 2-2 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।

20-25 ग्राम अदरक को कूटकर उसका रस निकाल लें तथा उसमें 5 ग्राम गुड़ मिलाकर खाली पेट लें अथवा अच्छी गुणवत्तावाली 2 से 3 ग्राम सोंठ गुड़ के साथ मिलाकर लें।

यदि बुखार न हो तो दोपहर में भोजन करने से पहले देशी गाय का चम्मच शुद्ध घी हलके गरम पानी के साथ लें।

किसी भी प्रकार की बीमारी में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पानी को उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए और संभव हो सोना, चाँदी के टुकड़े पानी में डालने चाहिए।

सभी प्रकार के संक्रामक रोगों में मांसाहार तथा कत्लखाने बंद करने चाहिए।

सामान्य रूप से विषाणु (वायरस) गर्मी नहीं सह सकते, इसलिए संक्रामक रोगों में गर्मीवाले वातावरण में अधिक रहना चाहिए तथा एयरकंडीशन, कूलर, पंखे का यथासंभव कम से कम उपयोग करना चाहिए।

तुलसी, पुदीना के रस या अर्क का प्रयोग करें। तुलसी के गमले लगायें, तुलसी के पत्ते की माला पहनें। सुबह तुलसी के 5-7 पत्ते चबाकर पानी पी लें यह विशेष गुणकारी है।

त्रिकटु चूर्ण या छोटी पीपर का 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लें। इनकी तासीर गर्म है इसलिए अधिक मात्रा न लें।

लोक कल्याण सेतु, जून 2003

प्रसन्नता के लिए मंत्र

मंत्रः ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उसभमाजियं च वंदे संभवमभिनंदणं च, सुमई च पउमप्पहं, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे स्वाहा।

विधिः किसी भी माह के शुक्लपक्ष में सोमवार से इस मंत्र का जप प्रारंभ करें। पूर्वाभिमुख होकर पद्मासन में बैठकर रोज एक माला करें। सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला (स्फटिक) का प्रयोग करे। सफेद पदार्थों का ही भोजन करें। 7 दिन तक मौन रखकर एकाग्रतापूर्वक जप करें।

यह अत्यन्त प्रसन्नतादायक मंत्र है। नाक से 10-15 गहरी श्वास लें और मुँह से छोड़ें। श्वास लेते समय 'राम' व छोड़ते समय कृष्ण की भावना करें तो विशेष लाभ होगा और प्रेमावतार, प्रसन्नतादाता की कृपा का अनुभव सहज में ही होगा।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जून 2003

शहद के फायदे

• प्रातः और सायं गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से शरीर की चर्बी कम होती है। गर्मियों में बड़े गिलास में २ चम्मच शहद और नींबू का रस मिलाकर शहद की शिकंजी पीने से शरीर को तत्काल ऊर्जा मिलती है और पेशाब भी खुलकर आती है।
• शुद्ध शहद आँखों में लगाने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
• अनिद्रा व कब्ज की शिकायत में शहद के नियमित सेवन से लाभ होता है।
• रक्तचाप बढ़ने पर लहसुन के साथ शहद लेना चाहिए।
• बच्चों को नौ मास शहद देने से उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होता।
• आँतों की शिकायत में आँवले के रस के साथ शहद का सेवन करना चाहिए।
• शहद को अनार के रस में मिलाकर लेने से दिमागी कमजोरी, सुस्ती, निराशा तथा थकावट होती है।

लोक कल्याण सेतु फरवरी 2010