मंत्रः ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उसभमाजियं च वंदे संभवमभिनंदणं च, सुमई च पउमप्पहं, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे स्वाहा।
विधिः किसी भी माह के शुक्लपक्ष में सोमवार से इस मंत्र का जप प्रारंभ करें। पूर्वाभिमुख होकर पद्मासन में बैठकर रोज एक माला करें। सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला (स्फटिक) का प्रयोग करे। सफेद पदार्थों का ही भोजन करें। 7 दिन तक मौन रखकर एकाग्रतापूर्वक जप करें।
यह अत्यन्त प्रसन्नतादायक मंत्र है। नाक से 10-15 गहरी श्वास लें और मुँह से छोड़ें। श्वास लेते समय 'राम' व छोड़ते समय कृष्ण की भावना करें तो विशेष लाभ होगा और प्रेमावतार, प्रसन्नतादाता की कृपा का अनुभव सहज में ही होगा।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जून 2003
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