समझो आदमी से कोई भूलें हुई है और उसके जीवन में उसकी दशा बहुत खराब है । इस दुर्दशा का निवारण कैसे हो ??
तो कश्यपजी ने बताया कि प्रायश्चितपूर्वक अगर कोई व्यक्ति, शुक्लपक्ष को दशमी तिथि हो और रविवार का योग हो उस दिन कोई प्रायश्चितपूर्वक श्रद्धाभक्तिभाव से ये नियम करे, तो उसकी दुर्दशा माने दरिद्रता, झगड़े, विफलता, बीमारी, अशांति, इनके निवारण हेतु स्कंदपुराण में सूर्यपूजा से संबंधित ये योग बताया गया है ।
यह योग शुक्लपक्ष, दशमी तिथि हो और रविवार का योग पड़ता हो उस दिन किया जाता है और वह योग अब 1 अप्रेल 2012 को दोपहर को दो बजे से आ रहा है । फिर 26 अगस्त 2012 को अधिक मास में । इस साल ये दो योग बहुत अच्छे है ।
पूजन विधि :-
दुर्दशा निवारण हेतु स्कन्दपुराण के अनुसार महर्षि कश्यपजी, नारदजी को बताते है । उस दिन भगवान गणपतिजी का, सदगुरूदेव का और सूर्यदेव का मन ही मन स्मरण करे । गुरूदेव का सुमिरण करते हुए उनका पूजन करते हुए उनको मन ही मन प्रणाम करे । गणपतिजी का सुमिरण करते हुए ॐ गं गणपतये नम: आदि मंत्रों से उनका पूजन करे और सूर्य भगवान को मन ही मन सूर्य गायत्री मंत्र ( "ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात्") आदि बोलते हुए प्रणाम करे । उनका सुमिरण करे और प्रार्थना करे कि मेरी समस्त प्रकार की दुर्दशा के निवारण हेतु आज हम यह पूजन कर रहे है । और लोटे में जल भरकर के फूल डाल दे,अक्षत डाल दे, कुंकुम डाल दे, और सूर्य को अर्ध्य दे, ॐ सूर्याय नम:, ॐ अर्काय नम:, ऐसे अर्घ्य दे । फिर दुर्दशा प्रदान करनेवाली 10 देवियां है जो कश्यप ऋषि नारदजी को बता रहे है उन 10 देवियो ंको भी अर्ध्य दे दें, उनके नाम इस प्रकार है :
ॐ दुर्मुख्यै नम:, ॐ दीनबदनाय नम:, ॐ मलिनायै नम-, ॐ सत्यनाशिन्यै नम:, ॐ बुद्धिनाशिन्ये नम-, ॐ हिंसायै नम:, ॐ दुष्टायै नम:, ॐ मित्रविराधिन्यै नम:, ॐ उच्चाटनकारिन्यै नम:, ॐ दुश्चिंताप्रदायै नम:, ।
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