हजार एकादशियों का फल देनेवाला व्रत
(त्रिस्पृशा निर्जला एकादशी : २० जून)
एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है । इस एकादशी को रात में जागरण करनेवाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है ।
‘पद्म पुराण' में आता है कि देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से कहा : ‘‘सर्वेश्वर ! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिये, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं ।"
महादेवजी : ‘‘विद्वन् ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है, इसीलिए इसे ‘वैष्णवी तिथि कहते हैं । भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में पूछने पर बताया था : ‘‘जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा' समझना चाहिए । यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करो‹ड तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस दिन भगवान के साथ सद्गुरु की पूजा करनी चाहिए ।"
यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है । इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं । हजार अश्वमेध और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है । यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है । इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए । जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया ।
One Ekadashi vow that offers virtues equivalent to thousands of same
(Trisparsha Nirjala Ekadashi: 20 June)
One Trisparsha Ekadashi vow can offer the virtues equivalent to fasting on thousand Ekadashi days and for one who fulfills his vow on the twelfth lunar day receives this thousand manifold benefit. One who stays awake on the night of Ekadashi obtains repose in the enlightening form of Lord Narayana.
In 'Padma Purana', Devrishi Naradji requests Lord Shiva: "Oh Almighty! Please elaborate on the vow of Trisparsha Ekadahsi, listening which one receives final emancipation from this world."
Lord Shiva says: "Oh The Learned! The Lord himself has created this vow to offer salvation. As a result, it is also known as 'Vaishnavi Tithi'. On being enquired about salvation from sins, Lord Madhav exclaimed to Mother Ganga once: When the eleventh, twelfth lunar period fall on same day with the last eight hours of night falling on the thirteenth day, it must be considered as 'Trisparsha'. This pious day is more significant than any virtuous deeds, donations, acts or any of the hundred crore pilgrimages. On this day, one must offer prayers to Gurudev alongside Lord."
This vow can obliterate all cycles of past sins, alleviates the deepest pangs of life and grant all desires. Observing fast on this day, can even grant salvation to one who is guilty of murdering a saint. Offers the virtues of performing thousand Ashwamegh rites and hundred Vajpeya rites. One who performs this vow establishes himself in Vishnu Loka along with his father's lineage, mother's lineage and wife's lineage. One should recite the 12 syllable mantra - AUM NAMO BHAGAVATE VAASUDEVAYA. One who performs this vow becomes beneficiary of the fruits of all religious vows.
(त्रिस्पृशा निर्जला एकादशी : २० जून)
एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है । इस एकादशी को रात में जागरण करनेवाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है ।
‘पद्म पुराण' में आता है कि देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से कहा : ‘‘सर्वेश्वर ! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिये, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं ।"
महादेवजी : ‘‘विद्वन् ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है, इसीलिए इसे ‘वैष्णवी तिथि कहते हैं । भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में पूछने पर बताया था : ‘‘जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा' समझना चाहिए । यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करो‹ड तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस दिन भगवान के साथ सद्गुरु की पूजा करनी चाहिए ।"
यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है । इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं । हजार अश्वमेध और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है । यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है । इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए । जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया ।
One Ekadashi vow that offers virtues equivalent to thousands of same
(Trisparsha Nirjala Ekadashi: 20 June)
One Trisparsha Ekadashi vow can offer the virtues equivalent to fasting on thousand Ekadashi days and for one who fulfills his vow on the twelfth lunar day receives this thousand manifold benefit. One who stays awake on the night of Ekadashi obtains repose in the enlightening form of Lord Narayana.
In 'Padma Purana', Devrishi Naradji requests Lord Shiva: "Oh Almighty! Please elaborate on the vow of Trisparsha Ekadahsi, listening which one receives final emancipation from this world."
Lord Shiva says: "Oh The Learned! The Lord himself has created this vow to offer salvation. As a result, it is also known as 'Vaishnavi Tithi'. On being enquired about salvation from sins, Lord Madhav exclaimed to Mother Ganga once: When the eleventh, twelfth lunar period fall on same day with the last eight hours of night falling on the thirteenth day, it must be considered as 'Trisparsha'. This pious day is more significant than any virtuous deeds, donations, acts or any of the hundred crore pilgrimages. On this day, one must offer prayers to Gurudev alongside Lord."
This vow can obliterate all cycles of past sins, alleviates the deepest pangs of life and grant all desires. Observing fast on this day, can even grant salvation to one who is guilty of murdering a saint. Offers the virtues of performing thousand Ashwamegh rites and hundred Vajpeya rites. One who performs this vow establishes himself in Vishnu Loka along with his father's lineage, mother's lineage and wife's lineage. One should recite the 12 syllable mantra - AUM NAMO BHAGAVATE VAASUDEVAYA. One who performs this vow becomes beneficiary of the fruits of all religious vows.
- Rishi Prasad May 2013
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