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Tuesday, June 12, 2018

पूर्ण विकास की १६ सीढ़ियाँ


ये १६ बातें समझ लें तो आपका पूर्ण विकास चुटकी में होगा :

१] आत्मबल : अपना आत्मबल विकसित करने के लिए ‘ॐ...ॐ....ॐ... ॐ...ॐ....’ ऐसा जप करें |

२] दृढ़ संकल्प : कोई भी निर्णय लें तो पहले तीसरे नेत्र पर (भ्रूमध्य में आज्ञाचक्र पर ) ध्यान करें फिर निर्णय लें और एक बार कोई भी छोटे-मोटे काम का संकल्प करें तो उसमें लगे रहें |

३] निर्भयता : भय आये तो उसके भी साक्षी बन जायें और उसे झाड़कर फेंक दें | यह सफलता की कुंजी है |

४] ज्ञान : आत्मा- परमात्मा और प्रकृति का ज्ञान पा लें | यह शरीर ‘क्षेत्र’ है और आत्मा ‘क्षेत्रज्ञ’ है | हाथ को पता नहीं कि ‘मैं हाथ हूँ’ लेकिन मुझे पता है, ‘यह हाथ है’| खेत को पता नहीं कि ‘मैं खेत हूँ’ लेकिन किसान को पता है, ‘यह खेत है’ | ऐसे ही इस शरीररूपी खेत के द्वारा हम कर्म करते हैं अर्थात बीज बोते हैं और फिर उसके फल मिलते हैं | तो हम क्षेत्रज्ञ हैं – शरीर को और कर्मों को जाननेवाले हैं | प्रकृति परिवर्तित होनेवाली है और हम एकरस हैं | बचपन परिवर्तित हो गया, हम उसको जाननेवाले वही-के-वही हैं | गरीबी-अमीरी चली गयी, सुख-दुःख चला गया लेकिन हम हैं अपने-आप, हर परिस्थिति के बाप | ऐसा दृढ़ विचार करने से, ज्ञान का आश्रय लेने से आप निर्भय और नि:शंक होने लगेंगे |

५] नित्य योग: नित्य योग अर्थात आप भगवान में थोडा शांत होइये और ‘भगवान् नित्य हैं, आत्मा नित्य है और शरीर मरने के बाद भी मेरा आत्मा रहता हैं’ – इस प्रकार नित्य योग की स्मृति करें |

६] ईश्वर-चिंतन : सत्यस्वरूप ईश्वर का चिंतन करें |

७] श्रद्धा : सत्शास्त्र, भगवान और गुरु में श्रद्धा- यह आपके आत्मविकास का बहुमूल्य खजाना है |

८] ईश्वर-विश्वास : ईश्वर में विश्वास रखें | जो हुआ, अच्छा हुआ; जो हो रहा है, अच्छा है और जो होगा वह भी अच्छा होगा, भले हमें अभी, इस समय बुरा लगता है | विघ्न-बाधा, मुसीबत और कठिनाइयाँ आती हैं तो विष की तरह लगती हैं लेकिन भीतर अमृत सँजोये हुए होती हैं | इसलिए कोई भी परिस्थिति आ जाय तो समझ लेना, ‘यह हमारी भलाई के लिए आयी है |’आँधी-तूफ़ान आया है तो फिर शुद्ध वातावरण भी आयेगा |

९] सदाचरण : वचन देकर मुकर जाना, झूठ-कपट, चुगली करना आदि दुराचरण से अपने को बचाना |

१०] संयम : पति-पत्नी के व्यवहार में, खाने-पीने में संयम रखें | इससे मनोबल, बुद्धिबल, आत्मबल का विकास होगा |

११] अहिंसा : वाणी, मन, बुद्धि के द्वारा किसीको चोट न पहुँचाये | शरीर के द्वारा जीव-जन्तुओ की हत्या, हिंसा न करें |

१२] उचित व्यवहार:  अपने से श्रेष्ठ पुरुषों का आदर से संग करें | अपने से छोटों के प्रति उदारता, दया रखें | जो अच्छे कार्य में, दैवी कार्य में लगे हैं उनका अनुमोदन करें और जो निपट निराले हैं उनकी उपेक्षा करें | यह कार्यकुशलता में आपको आगे ले जायेगा |

१३] सेवा-परोपकार: आपके जीवन में परोपकार, सेवा का सद्गुण होना चाहिए | स्वार्थरहित भलाई के काम प्रयत्नपूर्वक करने चाहिए | इससे आपके आत्मसंतोष, आत्मबल का विकास होता है |

१४] तप :अपने जीवन में तपस्या लाइये | कठिनाई सहकर भी भजन, सेवा, धर्म-कर्म आदि में लगना चाहिए |

१५] सत्य का पक्ष लेना : कही भी कोई बात हो तो आप हमेश सत्य, न्याय का पक्ष लीजिये | अपनेवाले की तरफ ज्यादा झुकाव और परायेवाले के प्रति क्रूरता करके आप अपनी आत्मशक्ति का गला मत घोटिये | अपनेवाले के प्रति न्याय और दूसरे के प्रति उदारता रखें |

१६] प्रेम व मधुर स्वभाव : सबसे प्रेम व मधुर स्वभाव से पेश आइये |

ये १६ बातें लौकिक उन्नति, आधिदैविक उन्नति और आध्यात्मिक अर्थात आत्मिक उन्नति आदि सभी उन्नतियों की कुंजियाँ हैं |
ऋषिप्रसाद – जून २०१८ से


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