सायटिका या गृध्रसी नसों में होनेवाला ऐसा दर्द है जिसमें
मरीज को सबसे पहले कूल्हे में दर्द होता हैं और फिर धीरे-धीरे यह दर्द नसों से
होते हुए दोनों पैरों में बढ़ता है | इससे उठने – बैठने व चलने – फिरने में दिक्कत
होती है | यह कोई रोग नहीं है बल्कि रीढ़ से संबंधित कुछ रोगों का लक्षण हो सकता है
| कभी-कभी सगर्भावस्था के कारण भी दर्द शुरू हो सकता है |
अधिक मेहनत करने या भारी वजन उठाने, अनुचित जीवनशैली व
खान-पान, उठने-बैठने की गलत मुद्रा एवं रुखा, शीतल व आवश्यकता से कम मात्रा में
आहार, अति संसार-व्यवहार, अधिक व्यायाम, चिंतित रहना, मल-मूत्र आदि के वेगों को
रोकना, शरीर में कच्चा रस बनना आदि कारणों से भी यह दर्द हो सकता है |
कैसे पायें सायटिका से राहत ?
अधिकांश मामलों में कमर की गद्दी के अपने स्थान से खिसकने
के कारण सायटिका का दर्द होना पाया जाता है | इसमें चिकित्सक की सलाह के अनुसार १५
दिनों से २ महीनों तक सिर्फ थोडा विश्राम करने और हलकी कसरत एवं योगासन जैसे की
मकरासन, भुजंगासन, वज्रासन आदि का सहारा लेने से काफी लोगों को फायदा मिल जाता है
|
सायटिका में लाभदायी अन्य प्रयोग
संत श्री आशारामजी आश्रमों व समिति के सेवाकेन्द्रों पर ऐसी
कुछ औषधियाँ उपलब्ध हैं जो सायटिका में उत्तम लाभ देनेवाली हैं :
१] अश्वगंधा चूर्ण व टेबलेट : २ से ४ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण या २ – ४ अश्वगंधा टेबलेट
सुबह खाली पेट दूध के साथ लें |
२] वज्र रसायन टेबलेट : आधी से एक गोली देशी गाय के दूध, घी अथवा शुद्ध शहद के साथ
सुबह खाली पेट लें |
३] स्पेशल मालिश तेल : इससे दिन में १ – २ बार हलके हाथों से मालिश करके गर्म
कपड़े से सिंकाई करें |
४] संधिशूलहर योग चूर्ण : २ चम्मच चूर्ण रात को १ गिलास पानी में भिगों दें | सुबह
इसे उबालें | आधा पानी शेष रहने पर छान के पियें |
अनुभूत घरेलू प्रयोग : पारिजात के १० – १५ पत्ते ३०० मि.ली. पानी में उबालें |
२०० मि.ली. पानी शेष रहने पर छानें और २५ – ५० मि.ग्राम केसर घोंटकर इस पानी में
घोल दें | १०० मि.ली. सुबह – शाम पियें | १५ दिन तक पीने से सायटिका जड़ से चला
जाता है | स्लिप्ड डिस्क में भी यह प्रयोग रामबाण उपाय है | (वसंत ऋतु में पारिजात
के पत्ते गुणहीन होते हैं | अत: यह प्रयोग वसंत ऋतु में लाभ नहीं करता | २०१८ में
वसंत ऋतु १८ फरवरी से १९ अप्रैल तक है |)
वैद्कीय सलाहनुसार उचित आहार-विहार, पंचकर्म-चित्किसा,
आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन आदि से संतोषकारक परिणाम मिलते हैं |
सावधानियाँ : १] वायुवर्धक पदार्थ जैसे – आलू, मटर,चना,अरहर की दाल, बासी भोजन, अति ठंडा
पानी आदि से तथा अति उपवास से बचें |
२] पेट में कब्ज, गैस आदि न होने दें एवं प्रसन्न रहें |
३] कमोड शौचालय का प्रयोग करें, ऊँची एडी की चप्पल न पहनें,
अधिक दर्द होने पर शरीर को आराम दें एवं मुलायम गद्दे पर न सोयें |
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ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१८ से
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