ग्रीष्म ऋतू में
सामान्यत: जठराग्नि मंद तथा शारीरिक दुर्बलता रहती है | बेल इन दोनों समस्याओं में
लाभदायी है | यह हलका व पाचक होने के कारण आसानी से पच जाता है | यह भूख बढ़ाता है
तथा बलवर्धन भी करता है | अत: ग्रीष्म ऋतू में बेल का सेवन विशेष लाभदायी है | यह
कसैला, कड़वा एवं मल को बाँधनेवाला है | इसमें विटामिन बी -१, बी -२ व सी तथा
फाँस्फोरस, कैल्शियम आदि पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में होते हैं | बेल आँव, मरोड़,
संग्रहणी आदि पेट के रोग तथा उलटी, बवासीर, मधुमेह, वातरोग, पीलिया, सूजन, कान के
रोग, बुखार आदि में लाभदायी है | यह कमजोर पाचनशक्ति व पेट की खराबी से बार-बार
होनेवाले दस्त, खुनी बवासीर एवं आँतों के घाव को दूर कर आँतों की कार्यशक्ति बढ़ाता
है | पके बेल की अपेक्षा कच्चा बेल विशेष गुणकारी होता है |
कच्चे बेल के गुदे से
बनाये गये ‘बेल चूर्ण’ का सेवन कर बेल से होनेवाले स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त कर सकते
हैं |
बेल चूर्ण की
सेवन-विधि : २ से ५ ग्राम चूर्ण आधा या १ गिलास पानी में मिला के दिन में १ या २
बार ले सकते हैं |
बेल-पत्र के लाभ :
बेल के पत्ते ह्रदय
के लिए हितकर, वायुशामक तथा सूजन, बुखार, कफ व शरीर की दुर्गंध को दूर करते हैं |
ये रक्तस्राव को रोकने तथा पेशाब की शर्करा व गर्भाशय की सूजन कम करने में लाभदायी
हैं |
पूज्य बापूजी द्वारा
बताये गये सुंदर प्रयोग
बेल-पत्तों से जो गंध
निकलती है वह अजीर्ण को, मंदाग्नि को ठीक करती है | बेल-पत्ते छाया में सुखा दिये
व
कूट के उनका चूर्ण बना दिया | ५० ग्राम यह चूर्ण तथा ५०-५० ग्राम धनिया व सौंफ
का चूर्ण – सबको मिला के रख दिया | रात को ५ – ७ ग्राम चूर्ण भिगा दिया, सुबह जरा
हिला के पी लिया | आँखें जलती हों, नींद नहीं आती हो, मधुमेह हो तो ये तकलीफें ठीक
हो जायेंगी | लड़का –लडकी ठिंगने हैं तो उन्हें रोज पिलाओ, कद्दावर हो जायेंगे |
अथवा बच्चे प्रतिदिन ६ बेल-पत्र और १-२ काली मिर्च चबाकर खायें तो कद बढ़ेगा |
ध्यान दें : १] बेल
के पके फल भारी तथा दोषकारक होते हैं, इनका अधिक मात्रा में तथा बवासीर में अधिक
उपयोग नहीं करना चाहिए |
२] पंचमी को बेल खाने
से कलंक लगता है |
३] चतुर्थी, अष्टमी,
नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और सोमवार को तथा दोपहर
के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें | बिल्वपत्र छ: मास तक बासी नहीं माने जाते |
लोककल्याणसेतु
– अप्रैल २०१९ से
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