५] बैठने – चलने का
सही ढंग : गलत ढंग से बैठने, खड़े होने या चलने से हमारी कार्यक्षमता व जीवनीशक्ति
की हानि होती है | अत: इस संदर्भ में कुछ बातों का ध्यान रखें :
ü दोनों
नितम्ब बैठनेवाले स्थान पर समानरूप से रखने चाहिए |
ü रीढ़
की हड्डी अपने प्राकृतिक झुकावोंसहित सीधी रहनी चाहिए | इससे शरीर की सभी
नस-नाड़ियाँ, जो शरीर के सभी भागों को शक्ति देती हैं, वे अच्छी तरह से कार्य करती
है | मेरुदंड सीधा नहीं रखने से इन नाड़ियों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है | इसका बुरा
प्रभाव शरीर के अन्य अंगो पर पड़ता है और वे सामान्यरूप से कार्य नहीं करते हैं |
जब शरीर सीधा रखा जाता है तो छाती उभरी रहती है | इसके गोलाकार और फैले रहने से
ह्रदय और फेफड़ों के के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है, जिससे वे अपनी पूरी
कार्यक्षमता से कार्य कर पाते हैं |
ü सिर
को ऐसी सीधी स्थिति में रखना चाहिए कि गर्दन के आगे और पीछे के भाग की मांसपेशियाँ
दबाव या तनाव रहित रहें |
६] आवेगों को न रोकें
: कक्षा में पढ़ते समय कई विद्यार्थी मल-मूत्र के आवेगों को रोके रखते हैं | अधिक
समय तक मल को रोकने से वह सड़ने लगता है तथा आगे चलकर उसका निष्कासन करनेवाले अंग
दुर्बल हो जाते हैं और निष्कासन-समय होने पर भी हमें संकेत नहीं दे पाते, जिससे
कब्ज, पेट के रोग, कृमि, जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, यकृत व गुर्दों के रोग जैसी अनेक
बीमारियाँ हो सकती हैं | शौच आदि से निवृत्त होकर ही विद्यालय या कार्यालय जायें
तथा मल-मूत्र को न रोकें |
७] ब्रह्मचर्य – पालन
: जिन्हें बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, एकाग्रता व प्रसन्नता चाहिए हो, उन्नत जीवन जीना
हो तथा जीवन के महानतम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति करना हो, उन्हें वीर्यक्षय न
हो इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए | जो फ़िल्में, सीरियल, अश्लील वेबसाइट्स देखते
हैं, कामोत्तेजक साहित्य पढ़ते हैं, लडकियाँ लडकों से व मजाक या स्पर्श करते हैं वे
उपरोक्त बातों में सफल नहीं हो पाते और पतन, तबाही के शिकार हो जाते हैं | उनका
जीवन ओज-तेजहीन, उत्साह व शक्ति हीन होने लगता है तथा नपुंसकता की तरफ घसीटा जाता
है | अत: ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पुस्तक का नित्य पठन कर ब्रह्मचर्य का दृढ़ता से
पालन करें |
८] जैविक घड़ी पर
आधारित दिनचर्या : अच्छे स्वास्थ्य की उत्तम कुंजी है जैविक घड़ी पर आधारित
दिनचर्या | इसके अंतर्गत प्रात: ३ से ५ बजे के बीच प्राणायम, ५ से ७ के बीच
मलत्याग, ७ से ९ के बीच सम्भव हो तो दूध ( भोजन से २ घंटे पूर्व) या फलों के रस का
सेवन, ९ से ११ के बीच भोजन, शाम ५ से ७ के बीच भोजन, रात्रि ७ से ९ के बीच अध्ययन
तथा ९ से ३ बजे तक नींद लेना विशेष लाभकारी है | पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी यह
दिनचर्या सर्वांगीण विकास में बहुत सहायक है |
ऋषिप्रसाद
– अप्रैल २०१९ से
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