समुद्र-मंथन करने पर
लक्ष्मीजी की बड़ी बहन दरिद्रा देवी प्रकट हुई | वे लाल वस्त्र पहने हुए थी |
उन्होंने देवताओं से पूछा : “मेरे लिए क्या आज्ञा हैं ?”
तब देवताओं ने कहा :
“जिनके घर में प्रतिदिन कलह होता हो उन्हीं के यहाँ हम तुम्हें रहने के लिए स्थान
देते हैं | तुम अमंगल को साथ लेकर उन्हीं घरों में जा बसों | जहाँ कठोर भाषण किया
जाता हो, जहाँ के रहनेवाले सदा झूठ बोलते हों तथा जो मलिन अंत:करणवाले पापी संध्या
के समय सोते हों, उन्हींके घर में दुःख और दरिद्रता प्रदान
करती हुई तुम नित्य निवास करो | महादेवी ! जो खोटी बुद्धिवाला मनुष्य पैर धोये
बिना ही आचमन करता है, उस पापपरायण मानव की ही तुम सेवा करो
( अर्थात उसे दुःख-दरिद्रता प्रदान करो )|” ( पुद्मपुराण,
उत्तर खंड, अध्याय २३२)
(हमारा आचार -व्यवहार
व रहन-सहन कैसा हो यह जानने हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित सत्साहित्य ‘मधुर व्यवहार’ व ‘क्या करें , क्या न करे ?”)
ऋषिप्रसाद
– दिसम्बर २०२० से
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