औषधि से भी उफ्चार होता है , मंत्र व सूर्यकिरणों से भी होता है | कई
चित्किसा-पद्धतियाँ हैं – प्राकृतिक चित्किसा (नेचुरोपैथी , एलोपैथी आदि | जीवों
को सता के, किसीकी हत्या, हिंसा
आदि करके जो भी उपचार होता है, वह दानवी उपाय है और अपना मनोबल, बुद्धिबल, मंत्रबल, दैवबल और
सुझबुझ के बल से जो स्वास्थ्य-लाभ होता है, वह दैवी उपाय है |
तुम नित्य-शुद्ध-बुद्ध चैतन्य परमात्मा के अभिन्न स्वरूप हो | रोग, बीमारी और मुसीबत आ जायें तो डरो मत | रोग
आये तो मन को कर लो एकाग्र कि ‘ रोग आया है |
जो आता है वह जाता है | कई बार रोग आये और गये |’ चित्त को कर दो प्रसन्न कि ‘यह असावधानी मिटाने को, संयम सिखाने को, तपस्या कराने को आया है |’ और
बुद्धि को कर दो निर्भीक कि ‘यह शरीर शाश्वत नहीं तो रोग भी शाश्वत नहीं हो सकता |
मन की अवस्था एक जैसी नहीं रहती तो रोग की अवस्था भी एक जैसी नहीं रहेगी | लेकिन मैं
सदा एकरस हूँ.... प्रेमस्वरूप,आनंदस्वरूप, शांतस्वरूप ! शरीर के रोगों को और मन के उद्वेगों व विकारों को जाननेवाले
हम हैं अपने-आप, हर परिस्थिति के बाप !’ रोग, बीमारियों और कष्टों का प्रभाव दूर हो जायेगा यूँ चटाक-से !
रात को देर से भोजन नहीं करना चाहिए | जितनी देर से भोजन करोगे उतना अम्लपित्त
अजीर्ण होता है | सुबह-शाम खाली पेट वज्रासन में बैठो, श्वास बाहर निकाल दो और पेट को २५ बार
अंदर-बाहर करो | मन में अग्निदेव के बीजमंत्र ‘रं – रं....’ का जप करो, फिर श्वास ले लो | ऐसा ५ बार करो, कितनी भी
मंदाग्नि हो, अम्लपित्त हो और कंधे आदि में ( कच्चे रस के
कारण ) जकड़न या दर्द होता हो, सब अपने-आप दूर हो जाता है |
ये सब दैवी उपाय हैं | नहीं तो कैप्सूल खाओ, ऑपरेशन कराओ .... | यह सब कराने के बाद भी क्या होता है ? रोग
के ऊपर चादर पड़ जाती है | तुम दैवी उपाय करो न, काहे हो
दानवी उपाय करना ? काहे को मानवीय उपायों में भी दवाईयाँ खाना ?
कैसी भी बीमारी हो, सूर्यनारायण
को अर्घ्य से गीली हुई मिटटी का तिलक करें और अर्घ्य-पात्र में बचा हुआ थोडा-सा जल
हाथ में ले के चिंतन करें :
‘ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: | ॐ आरोग्यप्रदायकाय सूर्याय नम: |
(यह बीजसंयुक्त मंत्र है |) मेरे आरोग्य की रक्षा करनेवाले सूर्य भगवान की मैं
उपासना करता हूँ, यह जल
पान करता हूँ |/ और उस पानी को पी लें | फिर नाभि में सूर्यनारायण का ध्यान करें, स्वास्थ्य-मंत्र जपें और बल का चिंतन करें |
ॐ सूर्याय नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: | ॐ रवये नम: | ॐ अर्काय नम: | ....
आदि मंत्रों से सूर्यनमस्कार करने से व्यक्ति ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है, बुद्धि
की बढ़ोत्तरी होती है |
हनुमानजी, भीष्मजी अथवा मेरे
गुरूजी के श्रीचित्र को एकटक देखें | नहीं तो अपने सदगुरुदेव को ही देख लेना |
काहे को डरना ! ‘मैं निरोग हो रहा हूँ
बापू ! मैं निरोग हो रहा हूँ न ?’ बापू बोलेंगे : ‘क्यों नहीं, हो रहा है, हो रहा है |’ – ऐसा करते – करते दैवी
उपचार से, अंतरात्मबल से आप निरोग हो सकते हो, बिल्कुल पक्की बात है ! यह ऐसा जादू है कि मन-बुद्धि में अगर आप ठान लो
तो बिना दवाई के अथवा सामान्य दवाई से आपके संकल्प के अनुसार हो जायेगा |
ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से