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Wednesday, June 23, 2021

पुण्यदायी तिथियाँ

 


५ जुलाई : योगिनी एकादशी ( महापापों को शांत कर महान पुण्यदायी तथा ८८००० ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल प्रदान करनेवाला व्रत )


८ जुलाई : चतुर्दशी-आर्द्रा नक्षत्र योग (रात्रि ८:५९ से ९ जुलाई प्रात: ५:१७ तक ) (ॐकार का जप अक्षय फलदायी )


११ जुलाई : रविपुष्यामृत योग ( सूर्योदय से रात्रि २:२२ तक)


१३ जुलाई : मंगलवारी चतुर्थी (सुबह ८:२५ से १४ जुलाई सूर्योदय तक )


ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

पूज्य बापूजी द्वारा निर्देशित दिनचर्या

 

समय एवं जीवनीशक्ति की विशेष सक्रियता

करणीय व अकरणीय कार्य

प्रात: ३ से ५  - फेफड़ो में

थोडा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना | इससे शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है | ब्राह्ममुहूर्त में उठनेवाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है और सोते रहनेवालों का जीवन निस्तेज हो जाता है |

सुबह ५ से ७ – बड़ी आँत में

प्रात: जागरण से लेकर सुबह ७ बजे के बिच मल-त्याग व स्नान कर लें | सुबह ७ बजे के बाद जो मल-त्याग करते हैं उन्हें अनेक बीमारियाँ घेर लेती है |

सुबह ७ से ९ – आमाशय या जठर  में

दूध या फलों का रस या कोई पेय पदार्थ ले सकते  हैं | ( भोजन के २ घंटे पूर्व )

सुबह ९ से ११ – अग्न्याशय व प्लीहा में

यह समय भोजन के लिए उपयुक्त है | भोजन जे बीच – बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट – घूँट पियें |

दोपहर ११ से १ – ह्रदय में

दोपहर १२ बजे के आसपास मध्यान्ह -संध्या करने का विधान है | ध्यान, जप करे | भोजन वर्जित है |

दोपहर १ से ३ – छोटी आँत में

भोजन के करीब २ घंटे बाद प्यास-अनुरूप पानी पीना चाहिए |

दोपहर ३ से ५ – मूत्राशय में

२-४ घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृत्ति होगी |

शाम ५ से ७ – गुर्दों में

इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए |सूर्यास्त के १० मिनट पहले से १० मिनट बाद तक (संध्याकाल में ) भोजन न करें अपितु संध्या करें |

रात्रि ७ से ९ – मस्तिष्क में

इस समय मस्तिष्क विशेषरूप से सक्रिय रहता है | अत: प्रात:काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है |

रात्रि ९ से ११ – मेरुरज्जु में

इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है |

रात्रि ११ से १ – पित्ताशय में

इस काल में जागरण पित्त बढाता है | इस समय नयी कोशिकाएँ बनती हैं  |

राती १ से ३ – यकृत में

इस काल में जागरण से पाचनतंत्र बिगड़ता हैं |

रोगों को भगाने व दीर्घायु हेतु ....

 

इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है |

इन्द्रियाणां मनो नाथो मनोनाथस्तु मारुत: |  (हठयोगप्रदीपिका : ४.२९)

प्रात: ३ से ५ बजे के बीच  त्रिबंधयुक्त प्राणायाम करना अत्यंत हितकारी है | त्रिबंध करके प्राणायाम करने से विकारी जीवन सहज भाव से निर्विकारिता में प्रवेश करने लगता है | मुलबंध से विकारों पर विजय पाने का सामर्थ्य आता है | उड्डियान बंध से व्यक्ति उन्नति में विलक्ष्ण उड़ान ले सकता है | जालंधर बंध से बुद्धि विकसित होती है |



विधि : दोनों नथुनों से खूब श्वास भरो | त्रिबंध करो – गुदाद्वार को अंदर सिकोड़ लो (मुलबंध), पेट को अंदर खींचो (उड्डियान बंध ) और यथासम्भव सिर सीधा रखते हुए ठुड्डी को छाती से लगा लो (जालंधर बंध) | मन में ॐकार, गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करते हुए स्व से पौने दो मिनट श्वास रोके रखो | अब धीरे-धीरे श्वास छोडो | फिर सामान्य गति से २ – ४ श्वासोच्छ्वास के बाद पूरा श्वास बाहर निकालकर ५० सेकंड से स्व मिनट उसे बाहर रोको | फिर धीरे-धीरे श्वास ले लो | श्वास लेते और रोके रखते समय मानसिक जप चालू रखें | बाह्य व आभ्यन्तर कुम्भक मिलाकर यह १ प्राणायाम हुआ | बीमार हो या तन्दुरुस्त हो, लम्बी उम्र के लिए और रोगों को भगाने के लिए ऐसे ३ से ५ प्राणायाम अवश्य करने चाहिए |

 

कुम्भक प्राणायाम बहुत सारी योग्यताओं और शक्तियों का धनी बना देंगे |

इससे प्राणबल, मनोबल, बुद्धिबल व रोगप्रतिकारक बल बढ़ेंगे | शरीर में जो भी आम (कच्चा, अपचित रस ) होगा वह खिंच के जठर में स्वाहा हो जायेगा | वर्तमान की अथवा आनेवाली बीमारियों की जड़े स्वाहा होती जायेंगी | आपका शरीर और मन निरोग तथा बलवान बन के रहेंगे |

मन:शरीर और प्राण-शरीर को स्वस्थ रखने का उपाय

पूर्ण आरोग्यता तो मन: शरीर और प्राण-शरीर दोनों को स्वस्थ रखने से ही मिलती है | इन दोनों शरीरों को स्वस्थ करने के लिए तीर्थस्थल के जलाशय में नहाते समय नाभि तक जल खड़े हो जायें | दायें हाथ की अंजलि में जल लेकर उसे निहारते हुए १०० बार ‘ॐ’ का जप करें, फिर वह जल पी लें | तीर्थस्थल में नहीं है अथवा वहाँ का जल पीने योग्य नहीं है तो घर में ही एक कटोरी में जल लेकर सुबह स्नान के पश्चात यह प्रयोग करें | चाँदी अथवा सोने की कटोरी हो तो अति उत्तम, नहीं तो ताँबे आदि की भी चलेगी | पानी को निहारते हुए ‘ॐ का जप करें | नेत्रों के द्वारा मंत्रशक्ति की तरंगे पानी में जायेंगी और ‘ॐ के जप से मन:शक्ति तथा प्राणशक्ति का विकार होगा |

शारीरिक और मानसिक तनाव दूर करने के लिए

शारीरिक और मानसिक तनाव दूर करने के लिए सुंदर उपाय है  - आजपा गायत्री | शरीर को खूब खींचे फिर ढीला छोड़ दें | मन-ही-मन चिंतन करें कि ‘मैं स्वस्थ हूँ... शरीर की थकान मिट रही है....’ इस प्रकार शारीरिक आराम लेकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें ( श्वास अंदर जाय तो ‘ॐ या भगवान का नाम... बाहर निकले तो ‘१...., श्वास अंदर जाय तो ‘आनंद अथवा ‘शांति’....... बाहर निकले तो ‘२ ....) | इससे शारीरिक एवं मानसिक तनाव मिटेंगे | लम्बी गिनती व ‘शांति....’, ‘आनंद...’ से अधिक लाभ होगा |

भगवत-विश्रांति पाना चाहते है तो रोज सूर्योदय से पहले नहा-धोकर बैठे जायें और भगवन्नाम सहित  श्वासोच्छ्वास की गिनती करें | रात्रि को सब चिंता-तनाव ईश्वरार्पण करके भगवन्नाम के साथ श्वासोच्छ्वास की गिनती करते-करते सो जायें तो रात भी ईश्वरीय शांति का धन कमाने में बीतेगी | इन सहज युक्तियों से दिन भी सफल और रात भी !

    ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

स्वास्थ्यरक्षक दैवी उपाय

 

औषधि से भी उफ्चार होता है , मंत्र व सूर्यकिरणों से भी होता है | कई चित्किसा-पद्धतियाँ हैं – प्राकृतिक चित्किसा (नेचुरोपैथी , एलोपैथी आदि | जीवों को सता के, किसीकी हत्या, हिंसा आदि करके जो भी उपचार होता है, वह दानवी उपाय है और अपना मनोबल, बुद्धिबल, मंत्रबल, दैवबल और सुझबुझ के बल से जो स्वास्थ्य-लाभ होता है, वह दैवी उपाय है |

तुम नित्य-शुद्ध-बुद्ध चैतन्य परमात्मा के अभिन्न स्वरूप हो | रोग, बीमारी और मुसीबत आ जायें तो डरो मत | रोग आये तो मन को कर लो एकाग्र कि ‘ रोग आया है |  जो आता है वह जाता है | कई बार रोग आये और गये |’ चित्त को कर दो  प्रसन्न कि ‘यह असावधानी मिटाने को, संयम सिखाने को, तपस्या कराने को आया है |’ और बुद्धि को कर दो निर्भीक कि ‘यह शरीर शाश्वत नहीं तो रोग भी शाश्वत नहीं हो सकता | मन की अवस्था एक जैसी नहीं रहती तो रोग की अवस्था भी एक जैसी नहीं रहेगी | लेकिन मैं सदा एकरस हूँ.... प्रेमस्वरूप,आनंदस्वरूप, शांतस्वरूप ! शरीर के रोगों को और मन के उद्वेगों व विकारों को जाननेवाले हम हैं अपने-आप, हर परिस्थिति के बाप !’ रोग, बीमारियों और कष्टों का प्रभाव दूर हो जायेगा यूँ चटाक-से !

रात को देर से भोजन नहीं करना चाहिए | जितनी देर से भोजन करोगे उतना अम्लपित्त अजीर्ण होता है | सुबह-शाम खाली पेट वज्रासन में बैठो, श्वास बाहर निकाल दो और पेट को २५ बार अंदर-बाहर करो | मन में अग्निदेव के बीजमंत्र ‘रं – रं....’ का जप करो, फिर श्वास ले लो | ऐसा ५ बार करो, कितनी भी मंदाग्नि हो, अम्लपित्त हो और कंधे आदि में ( कच्चे रस के कारण ) जकड़न या दर्द होता हो, सब अपने-आप दूर हो जाता है |

ये सब दैवी उपाय हैं | नहीं तो कैप्सूल खाओ, ऑपरेशन कराओ .... | यह सब कराने के बाद भी क्या होता है ? रोग के ऊपर चादर पड़ जाती है | तुम दैवी उपाय करो न, काहे हो दानवी उपाय करना ? काहे को मानवीय उपायों में भी दवाईयाँ खाना ?



कैसी भी बीमारी हो, सूर्यनारायण को अर्घ्य से गीली हुई मिटटी का तिलक करें और अर्घ्य-पात्र में बचा हुआ थोडा-सा जल हाथ में ले के चिंतन करें :

‘ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: | ॐ आरोग्यप्रदायकाय सूर्याय नम: |

(यह बीजसंयुक्त मंत्र है |) मेरे आरोग्य की रक्षा करनेवाले सूर्य भगवान की मैं उपासना करता हूँ, यह जल पान करता हूँ |/ और उस पानी को पी लें | फिर नाभि में सूर्यनारायण का ध्यान करें, स्वास्थ्य-मंत्र जपें और बल का चिंतन करें |

ॐ सूर्याय नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: | ॐ रवये नम: | ॐ अर्काय नम: | .... आदि मंत्रों से सूर्यनमस्कार करने से व्यक्ति ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है, बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है |


हनुमानजी
, भीष्मजी अथवा मेरे गुरूजी के श्रीचित्र को एकटक देखें | नहीं तो अपने सदगुरुदेव को ही देख लेना | काहे को डरना !  ‘मैं निरोग हो रहा हूँ बापू ! मैं निरोग हो रहा हूँ न ?’ बापू बोलेंगे : ‘क्यों नहीं, हो रहा है, हो रहा है |’ – ऐसा करते – करते दैवी उपचार से, अंतरात्मबल से आप निरोग हो सकते हो, बिल्कुल पक्की बात है ! यह ऐसा जादू है कि मन-बुद्धि में अगर आप ठान लो तो बिना दवाई के अथवा सामान्य दवाई से आपके संकल्प के अनुसार हो जायेगा |


ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

वायुशुद्धि हेतु सुंदर युक्ति

 


पूज्य बापूजी अपने सत्संग में बताते है : “आप अपने घरों में देशी गाय के गोबर के कंडे पर अगर एक चमच्च मतलब ८ – १० मि. ली. घी की बुँदे डालकर धूप करते हैं तो एक टन शक्तिशाली वायु बनती है | इससे मनुष्य तो क्या, कीट – पतंग और पशु- पक्षियों को भी फायदा होता है | ऐसा शक्तिशाली भोजन दुनिया की किसी चीज से नहीं बनता | वायु जितनी बलवान होगी, उतना बुद्धि, मन, स्वास्थ्य बलवान होंगे |” 

( गौ-गोबर व विभिन्न जड़ी-बूटियों से बनी ‘गौ-चंदन’ धूपबत्ती आश्रमों में व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है | उसे जलाकर उस पर देशी गाय के घी अथवा घानीवाले खाद्य तेल या नारियल तेल की बुँदे डाल के भी उर्जावन प्राणवायु बनायी जा सकती है |)


ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

विद्यालाभ व अदभुत विद्वत्ता की प्राप्ति हेतु

 

‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्रागे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नम: स्वाहा |’

यह मंत्र २६ जून २०२१ को प्रात: ४:२६ से रात्रि ११:४५ बजे के बीच अथवा २३ जुलाई २०२१ को दोपहर २:२६ से रात्रि ११:४५ बजे के बीच १०८ बार जप लें और फिर मंत्रजप के बाद जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें | जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा उसे विद्यालाभ व अदभुत विद्वत्ता की प्राप्ति होगी |

(ध्यान दें : गुजरात व महाराष्ट्र में यह योग केवल २३ जुलाई को हैं )


 ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

बुखार दूर करने हेतु.....

 

चरक संहिता के चित्किसा स्थान में ज्वार ( बुखार) की चित्किसा का विस्तृत वर्णन करने के बाद अंत में आचार्य श्री चरकजी ने कहा है :

विष्णुं सहस्रमूर्धानं चराचरपतिं विभुम ||

स्तुवन्नामह्स्त्रेण ज्वरान सर्वानपोहति |

‘हजार मस्तकवाले, चर-अचर  के स्वामी, व्यापक भगवान की सहस्त्रनाम से स्तुति करने से अर्थात विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से सब प्रकार के ज्वर छूट जाते हैं |’

(पाठ रुग्ण स्वयं अथवा उसके कुटुम्बी करे )



ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

ज्वरनाशक मंत्र

 

इस मंत्र के जप से ज्वर दूर होता है :

ॐ भंस्मास्त्राय विद्महे | एकदंष्ट्राय धीमहि | तन्नो ज्वर: प्रचोदयात् ||


ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

समस्त रोगनाशक उपाय

 

स्वास्थ्यप्राप्ति हेतु सिर पर हाथ रख के या संकल्प कर इस मंत्र का १०८ बार उच्चारण करें :

अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् |

नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ||      

‘हे अच्च्युत ! हे अनंत ! हे गोविंद ! – इस नामोच्चारणरूप औषध से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य कहता हूँ .... सत्य कहता हूँ |’


ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

हल्की आदतें, चिन्ति स्वभाव, बीमारी आदि सब गायब !

 

दवाइयों से रोग नहीं मिटते, दवाइयाँ तो निमित्त होती है, रोग तो आपकी पुण्याई से और आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति से मिटते है | अगर दवाइयों से ही रोग मिटते होते तो जवान का ऑपरेशन होने पर थोड़े दिनों में घाव क्यों ठीक होता और बूढ़े व्यक्ति का वही ऑपरेशन होने पर ठीक होने में ज्यादा दिन क्यों लगते हैं ? बूढ़े व्यक्ति की बीमारी मिटने में ज्यादा दिन क्यों लगते हैं और जवान की बीमारी जल्दी क्यों मिटटी हैं ? जिनकी रोगप्रतिकारक शक्ति, प्राणशक्ति, मन: शक्ति दुर्बल है उनके रोग देर से मिटते हैं और जिनकी मन:शक्ति सबल हैं उनको रोग होते नहीं और कभी हो भी जायें तो जल्दी मिट जाते हैं |

यह जो एलोपैथी के डॉक्टरों को भी मानना पड़ेगा, वैज्ञानकों को भी मानना पड़ेगा और आस्तिक जगत के लोग तो मानते ही हैं | आपमें विचारशक्ति का बल है | दुनिया में कई शक्तियाँ है – विद्युत् शक्ति हैं, परमाणु शक्ति है .... तमाम शक्तियाँ है | उन सब शक्तियों की ऐसी -तैसी करनेवाली आपकी विचारशक्ति है |

जो मुसीबतों से, दु:खों से दबे रहते हैं | तो ‘महाराज  ! दुःख तो हमारे पास बहुत है , हम तो दु:खों से डर रहे हैं |’ नहीं | लम्बा श्वास लो, भगवान के नाम का उच्चारण करो | जितने मिनट उच्चारण करो उसके आधे मिनट चुपचाप बैठो और मानसिक उच्चारण होने दो | कितनी भी हल्की आदत होगी, कितना भी डरावना स्वभाव होगा, चिंतित स्वभाव होगा – बीमारी का, तनाव का , वह सब थोड़े दिनों में गायब हो जायेगा |

ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से

यह समझ होगी तो पेट ठीक रहेगा

 

वस्तुएँ तो मेजबान की हैं लेकिन जितनी जरूरत है उतना खा, एक ग्रास कम खा | ‘शादी-पार्टी का माल है ऐसा सोचकर ज्यादा खाया तो फिर रात को छाती तपेगी, ओ ओ ओ ....! वस्तुएँ तो उनकी हैं पर पेट तो अपना बिगड़ेगा | खाना चबा-चबा के खाना चाहिए | कब खाना, कितना खाना, कैसे खाना – इसकी थोड़ी समझ होगी तो ठीक रहेगा | स्वास्थ्य की कुंजी समझाने के लिए एक कहावत है :

पेट नरम, पैर गरम, सिर को रखो ठंडा |

घर में आये रोग तो मारो उसको ठंडा ||

फिर आये हकीम तो उसे दिखाओ डंडा ||

जो पचता नहीं हो, जो रुचता नहीं हो उसको न खायें तथा रुचता हो और पचना न हो उसको भी ढंग से खायें और थोडा खायें | किंतु जो रुचता नहीं है पर शरीर के लिए अच्छा है और पचता है , उसको चाह से खायें और जो रुचता है उसको सँभल के खायें |

जो रुचता है उसे जल्दी-जल्दी खायेगा, ज्यादा खायेगा तो फिर करेगा  ‘ओ....  ओ ... ओ ...’ करके | वह अंदर परेशान होगा इसलिए रोयेगा अंदर पेट में बैठा-बैठा ‘ओ... ओ.... ओ....’ करके | अन्न ब्रह्म है और भोजन प्रसाद है | उसका और अपने जीवन का आदर करोगे तो तुम स्वस्थ रहोगे |

 

ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से