चरक संहिता के चित्किसा स्थान में ज्वार ( बुखार) की चित्किसा का विस्तृत
वर्णन करने के बाद अंत में आचार्य श्री चरकजी ने कहा है :
विष्णुं सहस्रमूर्धानं चराचरपतिं विभुम ||
स्तुवन्नामह्स्त्रेण ज्वरान सर्वानपोहति |
‘हजार मस्तकवाले, चर-अचर के स्वामी,
व्यापक भगवान की सहस्त्रनाम से स्तुति करने से अर्थात विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने
से सब प्रकार के ज्वर छूट जाते हैं |’
(पाठ रुग्ण स्वयं अथवा उसके कुटुम्बी करे )
ऋषिप्रसाद – जून २०२१ से
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