भोजन करने के बाद आँखों पर पानी छिडके तो ठीक है, नहीं तो अपनी गीली हथेलियाँ आँखों पर रखें तो भी नेत्र के रोग मिटते है | दोनों हथेलियाँ रगड़कर ‘ॐ ॐ ॐ मेरी आरोग्यशक्ति जगे, नेत्रज्योति जगे ....’ ऐसा करके आँखों पर रखने से भी आँखों की ज्योति बरकरार रहती है और आँखों के रोग मिटते हैं |
Tips for an all round Success in Life from His Holiness Saint Shri Asharamji Bapu.
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Thursday, July 22, 2021
घर के झगड़े मिटाने और सुख-शांति पाने के उपाय
१) शनिदेव
स्वयं कहते हैं कि ‘जो शनिवार को पीपल को स्पर्श करते है, उसको जल चढ़ाता है, उसके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा
मुझसे उसको कोई पीड़ा नहीं होगी |’ ग्रहदोष और ग्रहबाधा जिनको भी लगी हो, वे अपने घर में ९ अंगुल चौड़ा और ९ अंगुल लम्बा कुमकुम का स्वस्तिक बना
दें तो ग्रहबाधा की जो भी समस्याएँ है, दूर हो जायेगी |
२) स्नान
के बाद पानी में देखते हुए ‘हरि ॐ शांति’
इस पावन मंत्र की एक माला करके वह पानी घर या जहाँ भी अशांति आदि हो, छिडक दे और थोडा बचाकर पी लें फिर देख लो तुम्हारा
जीवन कितना परिवर्तित होता है |
भाग्य के कुअंक मिटाने की युक्ति
आसन बिछाकर प्रणव (ॐकार)
का ३ मिनट ह्रस्व (जल्दी-जल्दी) व दीर्घ और ५ मिनट प्लुत ( दीर्घ से अधिक लम्बा )
उच्चारण करना चाहिए | कभी कम-ज्यादा हो जाय तो डरना नहीं | ४० दिन का यह नियम ले
लो तो बहुत सारी योग्यताएँ जो सुषुप्त है, वे विकसित
हो जायेंगी | मन की चंचलता मिटने लगेगी,
बुद्धि के दोष दूर होने लगेंगे | सदा करते रहो तो बहुत अच्छा |
अपने भाग्य की रेखा बदलनी
हो, अपनी ७२,००० नाड़ियों की शुद्धि करनी हो और अपने मन और बुद्धि को मधुमय करना हो
तो संध्या के समय १०-१५ मिनट विद्युत-कुचालक आसन बिछाकर जप करें | भाग्य के कुअंक
मिटा देगा यह प्रयोग |
अनमोल युक्तियाँ – पूज्य बापूजी
उत्तम
संतान के लिए : घर में देशी गाय की सेवा अच्छा उपाय है
|
यम
के भय से मुक्ति : शिव पुराण व स्कंद पुराण में कहा गया
है कि गौ- सेवा करने और सत्पात्र को गौ- दान करने से यम का भय नहीं रहता |
पाप
– ताप से मुक्ति : जब गायें जंगल से चरकर वापस घर को आती
है, उस समय को गोधूलि-वेला कहा जाता है | गाय के खुरों से उठनेवाली धूलराशि समस्त पाप – तापों को दूर
करनेवाली है |
ग्रहबाधा
– निवारण : गायों को नित्य गोग्रास देने तथा सत्पात्र
को गौ-दान करने से ग्रहों के अनिष्ट – निवारण में मदद मिलती है |
Friday, July 16, 2021
पुण्यदायी तिथियाँ व योग
१६ जुलाई :
संक्रांति ( पुण्यकाल : सूर्योदय से शाम ४:५५ तक )
२० जुलाई : देवशयनी एकादशी (महान पुण्यमय, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदाता तथा पापनाशक व्रत), चतुर्मास व्रतारम्भ
२३ जुलाई : गुरुपूर्णिमा, ‘ऋषि प्रसाद ‘ जयंती, विद्यालाभ योग
२७ जुलाई : अंगारकी –
मंगलवारी चतुर्थी ( सूर्योदय से रात्रि २:२९ तक )
४ अगस्त : कामिका
एकादशी ( इसका व्रत व रात्रि -जागरण करनेवाला मनुष्य न तो कभी भयंकर यमराज का
दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है |)
८ अगस्त : रविपुष्यामृत
योग ( सूर्योदय से सुबह ९:२० तक )
१५ अगस्त : रविवारी
सप्तमी ( सूर्योदय से सुबह ९:५२ तक)
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
भय लगे तो क्या करें ?
भय
मन को लगता है , चिंता चित्त को लगती है, बीमारी शरीर को लगती है, दुःख मन को होता है.... हम है अपने-आप, हर
परिस्थिति के बाप ! हम प्रभु के, प्रभु हमारे, ॐ .... ॐ
..... ॐ ..... ॐ.... आनंद, ॐ माधुर्य ॐ |’ जब भी भय लगे बस
ऐसा ॐ ... ॐ..... ॐ.... हा हा हा ( हास्य-प्रयोग करना ).... फिर ढूँढना – ‘ कहाँ
है भय ? कहाँ तू लगा है देखें बेटा ! कहाँ रहता है बबलू ! कहाँ है तू भय ?’ तो भय
भाग जायेगा | भय को भगाने की चिंता मत कर, प्रभु के रस में
रसवान हो जा |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
क्रोध से हानियाँ और उससे बचने के उपाय
पद्म
पुराण में आता है : ‘जो पुरुष उत्पन्न हुए क्रोध को अपने मन से रोक लेता है, वह उस
क्षमा के द्वारा सबको जीत लेता है | जो क्रोध और भय को जीतकर शांत रहता है, पृथ्वी पर उसके समान वीर और कौन है ! क्षमा करनेवाले पर एक ही दोष लागू
होता है, दूसरा नहीं, वह यह कि क्षमाशील पुरुष को लोग शक्तिहीन मान बैठते हैं |
किंतु इसे दोष नहीं मानना चाहिए क्योंकि बुद्धिमानो का बल क्षमा ही है | क्रोधी मनुष्य जो जप, होम
और पूजन करता है वह सब फूटे हुए घड़े से जल की भाँति नष्ट हो जाता है |’
क्रोध
से बचने के उपाय :
१) एकांत
में आर्तभाव से व सच्चे ह्रदय से भगवान से प्रार्थना कीजिये कि ‘हे प्रभो ! मुझे
क्रोध से बचाइये |’
२) जिस
पर क्रोध आ जाय उससे बड़ी नम्रता से, सच्चाई के साथ क्षमा माँग लीजिये |
३) सात्त्विक
भोजन करे | लहसुन, लाल मिर्च एवं तली हुई चीजों
से दूर रहें | भोजन चबा-चबाकर कम-से-कम २५ मिनट तक करें | क्रोध की अवस्था में या
क्रोध के तुरंत बाद भोजन न करें | भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी ,महाराज भोजन से
पूर्व हास्य-प्रयोग करने को कहते थे | अपने आश्रमों में भी भोजन से पूर्व
हास्य-प्रयोग किया जाता है, साथ ही श्री आशारामायणजी की कुछ पंक्तियों का पाठ और
जयघोष भी किया जाता है तो कभी ‘जोगी रे .....’ भजन की कुछ पंक्तियाँ गायी जाती हैं
| इस प्रकार रसमय होकर फिर भोजन किया जाता है | इस प्रयोग को करने से क्रोध से
सुरक्षा तो सहज में ही हो जाती है और साथ-ही-साथ चित्त भगवद आनंद, माधुर्य से भी भर जाता है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
उन्नतिकारक कुंजियाँ
१) सात्त्विक
भोजन में तुलसी का एकाध दल रख के भगवान को भोग लगा के फिर भोजन करो और चबा-चबा करो
| इससे तुम्हारा मन पवित्र होगा, शरीर निरोग रहेगा, बुद्धि का विकास होगा उअर बुद्धि में ज्ञानयोग पाने की इच्छा होगी |
२) व्यर्थ
का बोलना, व्यर्थ का खाना, व्यर्थ के विकारों को पोषण देना –
यह तुमको जिस दिन अच्छा न लगे उस दिन समझ लेना कि भगवान की,
सदगुरु की और हमारे पुण्यों की – तीनों की कृपा एक साथ उतर रही है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
कालसर्पयोग दूर करने का उपाय
कालसर्पयोग बड़ा दुःख देता है लेकिन सद गुरु – पूजन से, गुरु-ध्यान से, गुरुमंत्र के जप और सदगुरु के आदर से कालसर्पयोग चला जाता है | नहीं तो कितना भी पूजा-पाठ कराओ, हजारों रूपये खर्च करो और इससे कालसर्पयोग थोडा-बहुत कम हुआ भी हो तो भी थोड़ी तो समस्या बनी रहती है किंतु गुरुपूनम के दिन अथवा किसी भी दिन सदगुरु का मानसिक पूजन करके उनकी प्रदक्षिणा करे तो कालसर्पयोग का प्रभाव खत्म हो जाता है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
रक्ताल्पता में उत्तम लाभ देनेवाले उत्पाद
१] रजत मालती : १ से
२ गोली सुबह खाली पेट दूध से लें |
२] आँवला-चुकंदर
शरबत : १५ से २० मि.ली. शरबत २०० मि.ली. गुनगुने पानी में मिलाकर खाली पेट लें |
३] द्राक्षावलेह : १ – १ चम्मच दिन में २ बार भोजन के साथ लें |
४] आँवला रस : १० से २० मि.ली. सुबह-शाम खाली पेट लें |
५] घृतकुमारी रस : ४
चम्मच सुबह खाली पेट लें | शाम को भोजन से १ – २ घंटे पहले भी ले सकते हैं |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
अभागे ‘आलू’ से सावधान !
“आलू रद्दी - से - रद्दी
कंद है | इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए
हितकारी नहीं है | तले हुए आलू का सेवन तो बिल्कुल ही न करें | आलू का तेल व नमक
के साथ संयोग विशेष हानिकारक है | जब अकाल पड़े, आपातकाल हो
और खाने का कुछ न मिले तो आलू को आग में भूनकर केवल प्राण बचाने के लिए खायें |” – पूज्य बापूजी
आचार्य चरक ने सभी
कंदों में आलू को सबसे अधिक अहितकर बताया है | आलू को तेल में तलने से वह विषतुल्य
काम करता है | आधुनिक अनुसंधानो के अनुसार उच्च तापमान पर या अधिक समय तक आलू को
तेल में तलने से उसमें स्वाभाविक ही एक्रिलामाइड का स्तर बढ़ता है, जो
कैंसर-उत्पादक तत्त्व सिद्ध हुआ है | कुछ शोधकर्ताओं ने तले हुए आलू के अधिक सेवन
से मृत्यु-दर में वृद्धि होती पायी | इसका सेवन मोटापा व मधुमेह का भी कारण बन
सकता है |
आलू का भूलकर भी
सेवन न करें | पहले के खाये हुए आलू का शरीर पर कुप्रभाव पड़ा हो तो उसे निकालने के
लिए रात को ३-४ ग्राम त्रिफला चूर्ण या ३-४ त्रिफला टेबलेट पानी से लेना हितकारी
रहेगा |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
अनेक बीमारियों में अत्यंत लाभदायी त्रिदोषशामक त्रिफला रसायन
यह त्रिदोषशामक तथा
स्मृति, बुद्धि, बल, वीर्य व
नेत्रज्योति वर्धक है एवं अनेक बीमारियों में अत्यंत लाभदायी है |
इसके सेवन से शरीर
में से विषाक्त द्रव्य निकल जाते हैं और महामारी से सुरक्षित होने में मदद मिलती
है | तीव्र दवाइयों के साइड इफेक्ट्स भी इस रसायन के सेवन क्षीण होता जाते हैं |
सेवन-विधि : ११
ग्राम त्रिफला रसायन सुबह खाली पेट गुनगुने पानी से ४० दिन तक लें | इसके सेवन के
बाद २ घंटे तक कुछ न लें |
त्रिफला रसायन बनाने की विधि : १७५ ग्राम त्रिफला चूर्ण, १७५ ग्राम देशी गाय का पिघला हुआ घी व ९० ग्राम शुद्ध शहद लेकर अच्छी तरह मिला लें और काँच या संगमरमर के पात्र में भर लें |
(उपरोक्त मात्राएँ
४० दिन के प्रयोग के लिए दिन में एक समय सेवन अनुसार दी हैं | जिन्हें ‘त्रिफला
रसायन कल्प’ करना हो वे सुबह-शाम ११ – ११ ग्राम रसायन
का सेवन करें तथा त्रिफला रसायन बनाने हेतु उपरोक्त सामग्री दुगनी मात्रा में लें
| पथ्य-पालन आदि विस्तृत जानकारी हेतु पढ़े नवम्बर २०२० स्वास्थ्य टिप्स )
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
खून की कमी (रक्ताल्पता) कैसे दूर करें ?
शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने की स्थिति को रक्ताल्पता कहते हैं | हिमोग्लोबिन कम होने से रक्त की ऑक्सीजन -परिवहन की क्षमता कम हो जाती है और शारीरिक व मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | रक्ताल्पता होने से थकान, कार्यक्षमता का अभाव, त्वचा में पीलापन, श्वास लेने में कठिनाई, ठंड लगना, चक्कर आना, अनिद्रा आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं |
लौह तत्त्वयुक्त
पौष्टिक आहार के अभाव तथा पेट में कृमि व अन्य बीमारियों के कारण लौह तत्त्व
अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है और रक्ताल्पता होने की सम्भावना विशेषरूप से
बढ़ जाती है | गर्भवती महिलाओं,
किशोरावस्था से ४५ वर्ष की महिलाओं तथा बालक-वालिकाओं में लौह तत्त्व की अधिक
आवश्यकता होती है | रक्ताल्पता से बचने तथा उसे दूर करने हेतु आहार-विकार का सही
होने अत्यंत आवश्यक है | आँते, यकृत व गुर्दे हिमोग्लोबिन बढाने में सहयोगी होते
हैं अत: इन्हें स्वस्थ रखना चाहिए, जिसके लिए
अनुलोम-विलोम व त्रिबंधयुक्त प्राणायाम तथा स्थलबस्ति मददरूप हैं | (पढ़े त्रिबंधयुक्त
प्राणायाम की विधि हेतु पढ़े जून २०२१ टिप्स तथा स्थलबस्ति की विधि हेतू पढ़े जून
२०१९ टिप्स )
रक्ताल्पता में
हितकारी आहार
सब्जियों में चौलाई, पालक, मेथी, हरा धनिया, चुकंदर, लौकी, गाजर, सहजन, पुनर्नवा आदि का सेवन
हितकारी है | फलों में अनार, काले या पके हुए हरे अंगूर, पपीता, सेब, संतरा, मोसम्बी, आँवला, केला, अंजीर, पके मीठे आम आदि का सेवन हितकर है | देशी
गाय का दूध गुणकारी है | रागी व राजगिरा के आटे में लौह तत्त्व विपुल मात्रा में
होता है | खजूर, अंजीर, बादाम, छुहारा, पेठे के बीज, काजू व मूँगफली – इनमे से जो
भी अनुकूल पड़े रात को पानी में भिगोकर सुबह पाचनशक्ति एवं ऋतू के अनुसार उचित
मात्रा में सेवन करना हितकर है |
अहितकर आहार-विहार
१) उष्ण
प्रकृति के पदार्थ, बासी अन्न, मिर्च, गरम मसाले व अन्य तीखे पदार्थ, मिठाई, आलू, कुलथी, सरसों, लहसुन, कचौरी, समोसा तथा पीजा, बर्गर आदि फास्ट फूड
एवं चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स व बाजारू खाद्य पदार्थ का
सेवन अहितकर है |
२) धूप
में या अग्नि के पास काम करना, स्त्री – पुरुष का अधिक
सहवास, चिंता, शोक, जागरण, शक्ति से अधिक परिश्रम, अधिक उपवास
व दिन में शयन अहितकर है |
पूज्य बापूजी द्वारा
बताये गये गुणकारी प्रयोग
१) सूर्य
की सुबह की कोमल लाल किरणें शरीर पर पड़ने से लाल रक्तकण बनते हैं, हिमोग्लोबिन बढ़ता है, खून अच्छा बनता है | प्रसन्न
रहने से भी खून बनता है |
२) खून
की कमी दूर करने के लिए अनार व काली द्राक्ष बहुत फायदा करते हैं |
३) आधा
चम्मच आँवले के चूर्ण में एक चम्मच मिश्री मिला लें या १ चम्मच मिश्रीयुक्त ‘आँवला
चूर्ण’ ले लें, इसे पानी में डाल के घोल बनाकर गुनगुना
करके पियेंगे तो चाय का काम होगा और सादे पानी में पियेंगे तो शरबत का काम होगा, दोनों में से जो अनुकूल पड़े कर सकते हैं |
४) जिसको
खून की कमी है वह किशमिश, मुनक्का आदि खाया करे | रात
को १५ से २० किशमिश अथवा मुनक्का ३-४ बार अच्छे-से धोकर लगभग २५० मि.ली. पानी में
भिगो दें और सुबह जरा-सा गुनगुना करके खा लें व पानी पी लें |
५) आधा
गिलास गाजर का रस दिन में २ बार १५-२० दिन तक पियें | इससे रक्त में लाल कणों की
वृद्धि होती है, रक्त शुद्ध होता है और पित्त शांत होता
है | (गाजर के बिच के पीले भाग का सेवन न करें |)
६) जिनको
जोड़ों का दर्द है .... माइयों को ज्यादा होता है पुरुषों की अपेक्षा क्योंकि मासिक
धर्म में खून का क्षय ज्यादा होने से लौह तत्त्व की कमी हो जाती है .... तो जोड़ों
के दर्द में क्या करना चाहिए कि शुद्ध लोहे की कड़ाही में अथवा लोहे के बर्तन में
दाल बनायें अथवा तो दूध जितना पीते हैं उसमें उतना ही पानी डाल दें और लोहे की
कड़ाही आदि किसी बर्तन में दाल बनायें अथवा दूध जितना है उसमें उतना ही पानी डाल
दें और लोहे की कड़ाही आदि किसी बर्तन में पानी सूखने तक मध्यम आँच पर उबालें | वह
दूध पियो तो जोड़ों के दर्द में भी आराम होगा और खून भी बनेगा | इसमें खर्चा क्या
लगाना है ? दूध तो वही – का – वही और कड़ाही भी वही-की-वही | बस लोहे की कड़ाही हो, स्टील की नहीं |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
आरती में कपूर का उपयोग क्यों ?
सनातन संस्कृति में
पुरातन काल से आरती में कपूर जलाने की परम्परा है | आरती के बाद आरती के ऊपर हाथ
घुमाकर अपनी आँखों पर लगाते हैं, जिससे दृष्टी -इन्द्रिय सक्रिय हो जाती है |
पूज्य बापूजी के सत्संग -वचनामृत में आता है : “आरती करते हैं तो कपूर जलाते हैं |
कपूर वातावरण को शुद्ध करता है, पवित्र वातावरण की आभा
पैदा करता है | घर में देव-दोष है, पितृ -दोष हैं, वास्तु -दोष हैं, भूत -पिशाच का दोष है या किसीको
बुरे सपने आते हैं तो कपूर की ऊर्जा उन दोषों को नष्ट कर देती है |
बोलते हैं कि संध्या
होती है तो दैत्य-राक्षस हमला करते हैं इसलिए शंख , घंट बजाना चाहिए, कपूर जलाना चाहिए, आरती-पूजा करनी चाहिए अर्थात
संध्या के समय और सुबह के समय वातावरण में विशिष्ट एवं विभिन्न प्रकार के जीवाणु
होते हैं जो श्वासोच्छवास के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारी जीवनरक्षक जीवनरक्षक
कोशिकाओं से लड़ते हैं | तो देव-असुर संग्राम होता है, देव
माने सात्त्विक कण और असुर माने तामसी कण
| कपूर की सुगंधि से हानिकारक जीवाणु एवं विषाण रूपी राक्षस भाग जाते हैं |
वातावरण में जो
अशुद्ध आभा है इससे तामसी अथवा निगुरे लोग जरा-जरा बात में खिन्न होते हैं, पीड़ित होते हैं लेकिन कपूर और आरती का उपयोग करनेवालों के घरों में ऐसे
कीटाणुओं का, ऐसो हलकी आभा का प्रभाव नहीं टिक सकता है ||
अत: घर में कभी-कभी
कपूर जलाना चाहिए, गूगल का धूप करना चाहिए |
कभी-कभी कपूर की १ – २ छोटी-छोटी गोली मसल के घर में छिटक देनी चाहिए | उसकी हवा से ऋणायान बनते हैं, जो हितकारी हैं | वर्तमान के माहौल में घर में दीया जलाना अथवा कपूर की
कभी-कभी आरती कर लेना अच्छा है |
अकाल मृत्यु से रक्षा
हेतु
भगवान नारायण देवउठी
(प्रबोधिनी) एकादशी को योगनिद्रा से उठते हैं | उस दिन कपूर से आरती करनेवाले को
अकाल मृत्यु से सुरक्षित होने का अवसर मिलता है |
कपूर का वैज्ञानिक
महत्त्व
कई शोधों के बाद
विज्ञान ने कपूर की महत्ता को स्वीकारा है | कपूर अपने आसपास की हवा को शुद्ध करता
है, साथ ही शरीर को हानि पहुँचानेवाले संक्रामक जीवाणुओं को दूर रखने में
मददगार होता है | इसकी भाप या सुगंध सर्दी-खाँसी से राहत देती है तथा मिर्गी, दिमागी झटके एवं स्थायी चिंता या घबराहट को कम करती है | कपूर की भाप या
इसके तेल की उग्र सुगंध से नासिका के द्वार खुल जाते हैं | यह सुगंध श्वसन-मार्ग, स्वर-तंत्र, ग्रसनी, नासिका – मार्ग तथा
फुफ्फुस-मार्ग हेतु तुरंत अवरोध-निवारक का काम करती है | इसलिए कपूर का उपयोग
सर्दी-खाँसी की कई दवाओं (बाम आदि) में किया जाता है | कपूर – भाप की सुंगध बलगमयुक्त
गले की सफाई करके श्वसन-संस्थान के मार्ग खुले करने में मदद करती है | कपूर मसलकर
शरीर पर लगाने से यह रक्त प्रवाह बढाता है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
जीवन को प्रेमाभक्ति, ज्ञान व माधुर्य से भरने का अवसर
चतुर्मास : २० जुलाई से १५ नवम्बर
चतुर्मास शुरू हो
जाता है देवशयनी एकादशी से और कार्तिक की देवउठी एकादशी तक रहता है | इन ४ महीनों
में भगवान नारायण योगनिद्रा में, ब्रह्मसुख में , एकांत
में, सागर में शयन करते हैं तो जल का तेज, प्रभाव बढ़ जाता है
| ऐसे ही साधक श्वासोच्छ्वास में अजपाजप करके ब्रह्मसुख के करीब जाता है तो ऊसके मन-बुद्धि का प्रभाव बढ़ जाता है | इन ४
महीने में शादी – विवाह और सकाम कर्म करनेवाले को घाटा पड़ेगा किन्तु उपवास, मौन, जप, दान, ध्यान और प्रात:
स्नान विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी हैं |
इन ३ महीनों में
भोग-विलास, पति-पत्नी का संबंध, स्पर्श ज्यादा हानि
करेगा और जीवन संयमी रहा तो जैसे भगवान नारायण ब्रह्म में विराजते हैं ऐसे ही आपको
भी ब्रह्मचिंतन, ब्रह्मध्यान, ब्रह्मविश्रांति
में बड़ी मदद मिलेगी |
चतुर्मास में विशेष
लाभदायी
· चतुर्मास में सूर्योदय के
पहले नदी-स्नान, तालाब-स्नान,
सागर-स्नान करें अथवा तो बाल्टी में ३ बिल्वपत्र डालकर घुमा दें या तिल, आँवला और
जौ का चूर्ण बना के रखें | थोडा-सा मिश्रण बाल्टी में दाल दें या कटोरी में घोल
बना के शरीर पर रगड़ दें फिर ‘ॐ नम:शिवाय, ॐ नम: शिवाय...’
अथवा ‘ब्रह्म ही जलरूप बन के आया हैं’, ऐसा चिंतन करके स्नान
करें तो यह पुण्यदायी, पापनाशक, आत्मिक
तेजवर्धक स्नान होगा | इसके सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होगा | सप्तधान्य
उबटन १ में जौ और तिल है अत: वह उबटन भी स्नान के लिए सुखदायी, आनंददायी होता है | और भक्त को हाथ में जल लेकर ‘यह भगवान विष्णु का
चरणोदक है’ ऐसा समझ के वह जल सिर पर डालना
चाहिए | किसी कारण वह नहीं नहा सकता हो तो फिर मानसिक,
मांत्रिक अथवा भस्म का स्नान भी किया जा सकता है |
·
दीपदान करनेवाले की बुद्धि, विचार व व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है |
· पलाश के पत्तो पर भोजन
करनेवाले व्यक्ति की बुद्धि सात्त्विकता- प्रधान होती है और उसे भवान की प्रियता
प्राप्त होती है |
·
चतुर्मास में सप्ताह में एक
दिन उपवास नहीं कर सकें तो १५ दिन में १ दिन उपवास तो नितांत जरूरी है |
यह अवसर चूकना नहीं
चाहिए
- ४ मास तक भगवान अपने बेसामान, बेसाथी और बेमन भाव में रहते हैं | इन दिनों आप भी ऐसे रहेंगे तो यह आध्यात्मिक उन्नति में मददरूप होगा | अपने जीवन को भगवान की प्रेमाभक्ति से, भगवान के ज्ञान व माधुर्य से भरने का अवसर यह चतुर्मास हैं |
- तपस्या, साधन-भजन
करने का यह चातुर्मास का अवसर चूकना नहीं चाहिए | मैंने किया था ४० दिन का
अनुष्ठान, शायद वह चातुर्मास ही होगा जहाँ तक मुझे याद है | और उन ४० दिनों में
मुझे जो शक्तियाँ मिली, जो खजाना मिला उसे बाँटते – बाँटते ५०
साल हो गये किंतु अब भी उसमें कोई कमी नहीं लग रही है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से