शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने की स्थिति को रक्ताल्पता कहते हैं | हिमोग्लोबिन कम होने से रक्त की ऑक्सीजन -परिवहन की क्षमता कम हो जाती है और शारीरिक व मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | रक्ताल्पता होने से थकान, कार्यक्षमता का अभाव, त्वचा में पीलापन, श्वास लेने में कठिनाई, ठंड लगना, चक्कर आना, अनिद्रा आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं |
लौह तत्त्वयुक्त
पौष्टिक आहार के अभाव तथा पेट में कृमि व अन्य बीमारियों के कारण लौह तत्त्व
अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है और रक्ताल्पता होने की सम्भावना विशेषरूप से
बढ़ जाती है | गर्भवती महिलाओं,
किशोरावस्था से ४५ वर्ष की महिलाओं तथा बालक-वालिकाओं में लौह तत्त्व की अधिक
आवश्यकता होती है | रक्ताल्पता से बचने तथा उसे दूर करने हेतु आहार-विकार का सही
होने अत्यंत आवश्यक है | आँते, यकृत व गुर्दे हिमोग्लोबिन बढाने में सहयोगी होते
हैं अत: इन्हें स्वस्थ रखना चाहिए, जिसके लिए
अनुलोम-विलोम व त्रिबंधयुक्त प्राणायाम तथा स्थलबस्ति मददरूप हैं | (पढ़े त्रिबंधयुक्त
प्राणायाम की विधि हेतु पढ़े जून २०२१ टिप्स तथा स्थलबस्ति की विधि हेतू पढ़े जून
२०१९ टिप्स )
रक्ताल्पता में
हितकारी आहार
सब्जियों में चौलाई, पालक, मेथी, हरा धनिया, चुकंदर, लौकी, गाजर, सहजन, पुनर्नवा आदि का सेवन
हितकारी है | फलों में अनार, काले या पके हुए हरे अंगूर, पपीता, सेब, संतरा, मोसम्बी, आँवला, केला, अंजीर, पके मीठे आम आदि का सेवन हितकर है | देशी
गाय का दूध गुणकारी है | रागी व राजगिरा के आटे में लौह तत्त्व विपुल मात्रा में
होता है | खजूर, अंजीर, बादाम, छुहारा, पेठे के बीज, काजू व मूँगफली – इनमे से जो
भी अनुकूल पड़े रात को पानी में भिगोकर सुबह पाचनशक्ति एवं ऋतू के अनुसार उचित
मात्रा में सेवन करना हितकर है |
अहितकर आहार-विहार
१) उष्ण
प्रकृति के पदार्थ, बासी अन्न, मिर्च, गरम मसाले व अन्य तीखे पदार्थ, मिठाई, आलू, कुलथी, सरसों, लहसुन, कचौरी, समोसा तथा पीजा, बर्गर आदि फास्ट फूड
एवं चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स व बाजारू खाद्य पदार्थ का
सेवन अहितकर है |
२) धूप
में या अग्नि के पास काम करना, स्त्री – पुरुष का अधिक
सहवास, चिंता, शोक, जागरण, शक्ति से अधिक परिश्रम, अधिक उपवास
व दिन में शयन अहितकर है |
पूज्य बापूजी द्वारा
बताये गये गुणकारी प्रयोग
१) सूर्य
की सुबह की कोमल लाल किरणें शरीर पर पड़ने से लाल रक्तकण बनते हैं, हिमोग्लोबिन बढ़ता है, खून अच्छा बनता है | प्रसन्न
रहने से भी खून बनता है |
२) खून
की कमी दूर करने के लिए अनार व काली द्राक्ष बहुत फायदा करते हैं |
३) आधा
चम्मच आँवले के चूर्ण में एक चम्मच मिश्री मिला लें या १ चम्मच मिश्रीयुक्त ‘आँवला
चूर्ण’ ले लें, इसे पानी में डाल के घोल बनाकर गुनगुना
करके पियेंगे तो चाय का काम होगा और सादे पानी में पियेंगे तो शरबत का काम होगा, दोनों में से जो अनुकूल पड़े कर सकते हैं |
४) जिसको
खून की कमी है वह किशमिश, मुनक्का आदि खाया करे | रात
को १५ से २० किशमिश अथवा मुनक्का ३-४ बार अच्छे-से धोकर लगभग २५० मि.ली. पानी में
भिगो दें और सुबह जरा-सा गुनगुना करके खा लें व पानी पी लें |
५) आधा
गिलास गाजर का रस दिन में २ बार १५-२० दिन तक पियें | इससे रक्त में लाल कणों की
वृद्धि होती है, रक्त शुद्ध होता है और पित्त शांत होता
है | (गाजर के बिच के पीले भाग का सेवन न करें |)
६) जिनको
जोड़ों का दर्द है .... माइयों को ज्यादा होता है पुरुषों की अपेक्षा क्योंकि मासिक
धर्म में खून का क्षय ज्यादा होने से लौह तत्त्व की कमी हो जाती है .... तो जोड़ों
के दर्द में क्या करना चाहिए कि शुद्ध लोहे की कड़ाही में अथवा लोहे के बर्तन में
दाल बनायें अथवा तो दूध जितना पीते हैं उसमें उतना ही पानी डाल दें और लोहे की
कड़ाही आदि किसी बर्तन में दाल बनायें अथवा दूध जितना है उसमें उतना ही पानी डाल
दें और लोहे की कड़ाही आदि किसी बर्तन में पानी सूखने तक मध्यम आँच पर उबालें | वह
दूध पियो तो जोड़ों के दर्द में भी आराम होगा और खून भी बनेगा | इसमें खर्चा क्या
लगाना है ? दूध तो वही – का – वही और कड़ाही भी वही-की-वही | बस लोहे की कड़ाही हो, स्टील की नहीं |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
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