भय
मन को लगता है , चिंता चित्त को लगती है, बीमारी शरीर को लगती है, दुःख मन को होता है.... हम है अपने-आप, हर
परिस्थिति के बाप ! हम प्रभु के, प्रभु हमारे, ॐ .... ॐ
..... ॐ ..... ॐ.... आनंद, ॐ माधुर्य ॐ |’ जब भी भय लगे बस
ऐसा ॐ ... ॐ..... ॐ.... हा हा हा ( हास्य-प्रयोग करना ).... फिर ढूँढना – ‘ कहाँ
है भय ? कहाँ तू लगा है देखें बेटा ! कहाँ रहता है बबलू ! कहाँ है तू भय ?’ तो भय
भाग जायेगा | भय को भगाने की चिंता मत कर, प्रभु के रस में
रसवान हो जा |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
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