चतुर्मास : २० जुलाई से १५ नवम्बर
चतुर्मास शुरू हो
जाता है देवशयनी एकादशी से और कार्तिक की देवउठी एकादशी तक रहता है | इन ४ महीनों
में भगवान नारायण योगनिद्रा में, ब्रह्मसुख में , एकांत
में, सागर में शयन करते हैं तो जल का तेज, प्रभाव बढ़ जाता है
| ऐसे ही साधक श्वासोच्छ्वास में अजपाजप करके ब्रह्मसुख के करीब जाता है तो ऊसके मन-बुद्धि का प्रभाव बढ़ जाता है | इन ४
महीने में शादी – विवाह और सकाम कर्म करनेवाले को घाटा पड़ेगा किन्तु उपवास, मौन, जप, दान, ध्यान और प्रात:
स्नान विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी हैं |
इन ३ महीनों में
भोग-विलास, पति-पत्नी का संबंध, स्पर्श ज्यादा हानि
करेगा और जीवन संयमी रहा तो जैसे भगवान नारायण ब्रह्म में विराजते हैं ऐसे ही आपको
भी ब्रह्मचिंतन, ब्रह्मध्यान, ब्रह्मविश्रांति
में बड़ी मदद मिलेगी |
चतुर्मास में विशेष
लाभदायी
· चतुर्मास में सूर्योदय के
पहले नदी-स्नान, तालाब-स्नान,
सागर-स्नान करें अथवा तो बाल्टी में ३ बिल्वपत्र डालकर घुमा दें या तिल, आँवला और
जौ का चूर्ण बना के रखें | थोडा-सा मिश्रण बाल्टी में दाल दें या कटोरी में घोल
बना के शरीर पर रगड़ दें फिर ‘ॐ नम:शिवाय, ॐ नम: शिवाय...’
अथवा ‘ब्रह्म ही जलरूप बन के आया हैं’, ऐसा चिंतन करके स्नान
करें तो यह पुण्यदायी, पापनाशक, आत्मिक
तेजवर्धक स्नान होगा | इसके सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होगा | सप्तधान्य
उबटन १ में जौ और तिल है अत: वह उबटन भी स्नान के लिए सुखदायी, आनंददायी होता है | और भक्त को हाथ में जल लेकर ‘यह भगवान विष्णु का
चरणोदक है’ ऐसा समझ के वह जल सिर पर डालना
चाहिए | किसी कारण वह नहीं नहा सकता हो तो फिर मानसिक,
मांत्रिक अथवा भस्म का स्नान भी किया जा सकता है |
·
दीपदान करनेवाले की बुद्धि, विचार व व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है |
· पलाश के पत्तो पर भोजन
करनेवाले व्यक्ति की बुद्धि सात्त्विकता- प्रधान होती है और उसे भवान की प्रियता
प्राप्त होती है |
·
चतुर्मास में सप्ताह में एक
दिन उपवास नहीं कर सकें तो १५ दिन में १ दिन उपवास तो नितांत जरूरी है |
यह अवसर चूकना नहीं
चाहिए
- ४ मास तक भगवान अपने बेसामान, बेसाथी और बेमन भाव में रहते हैं | इन दिनों आप भी ऐसे रहेंगे तो यह आध्यात्मिक उन्नति में मददरूप होगा | अपने जीवन को भगवान की प्रेमाभक्ति से, भगवान के ज्ञान व माधुर्य से भरने का अवसर यह चतुर्मास हैं |
- तपस्या, साधन-भजन
करने का यह चातुर्मास का अवसर चूकना नहीं चाहिए | मैंने किया था ४० दिन का
अनुष्ठान, शायद वह चातुर्मास ही होगा जहाँ तक मुझे याद है | और उन ४० दिनों में
मुझे जो शक्तियाँ मिली, जो खजाना मिला उसे बाँटते – बाँटते ५०
साल हो गये किंतु अब भी उसमें कोई कमी नहीं लग रही है |
ऋषिप्रसाद
– जुलाई २०२१ से
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