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Monday, August 5, 2013

रक्षाबंधन के पर्व पर दस प्रकार का स्नान -

कल के दिन श्रावण महीने की रक्षाबंधन के पोर्णिमा वाले दिन वेदों में दस प्रकार का स्नान बताया गया है |

Ø भस्म स्नान – उसके लिए यज्ञ की भस्म थोडीसी लेकर वो ललाटपर थोड़ी शरीर पर लगाकर स्नान किया जाता है | थोडा पानी लेटा दिया थोड़ी भस्म लेके लगा दिई | यज्ञ की भस्म अपने यहाँ तो है आश्रम में, पर समजो आप अपने घर पर किसीको बताना चाहें की यज्ञ की भस्म थोड़ी लगाकर श्रावणी पोर्णिमा को दसविद स्नान में पहिला ये बताया है | तो वहाँ यज्ञ की भस्म कहाँसे आयेगी तो गौचंदन धूपबत्ती घरों में जलाते है साधक | श्याम को गौचंदन धूपबत्ती जलाकर जप करें अपने इस्टमंत्र, गुरुमंत्र का तो वो जलते जलते उसकी भस्म तो बचेगी ना | तो जप भी एक यज्ञ है | तो गौचंदन की भस्म होगी यज्ञ की भस्म पवित्र मानी जाती है | वैसे गौचंदन है वो, देशी गाय के गोबर, जडीबुटी और देशी घी से बनती है | तो पहिला भस्म स्नान बताया है |

Ø मृत्तिका स्नान – 
Ø गोमय स्नान – गोमय स्नान माना गौ गा गोबर उसमे थोडा गोझरण ये मिक्स हो उसका स्नान (उसका मतलब थोडा ले लिया और शरीर को लगा दिया ) क्यों वेद ने कहाँ, इसलिए गौमाता के गोबर में (देशी गाय के) लक्ष्मी का वास माना गया है | गोमय वसते लक्ष्मी पवित्रा सर्व मंगला | स्नानार्थम सम संस्कृता देवी पापं हर्गो मय || तो हमारे भीतर भक्तिरूपी लक्ष्मी बढती जाय, बढती जाय जैसे गौ के गोबर में लक्ष्मी का वास वो हमने थोडा लगाकर स्नान किया, हमारे भीतर भक्तिरूपी संपदा बढती जाय | गीता में जो दैवी लक्षणों के २६ लक्षण बतायें है वो मेरे भीतर बढ़ते जायें | ये तीसरा गोमय स्नान |

Ø पंचगव्य स्नान – गौ का गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध के दही, गाय का दूध और घी ये पंचगव्य | कई बार आपको पता है पंचगव्य पीते है | तो पंचगव्य स्नान थोडासा ही बन जाये तो बहोत बढियाँ नहीं बने तो गौ का गोबरवाला तो है | माने पाँच तत्व से हमारा शरीर बना हुआ है वो स्वस्थ रहें, पुष्ट रहें, बलवान रहें ताकि सेवा और साधना करते रहे, भक्ति करते रहें |

Ø गोरज स्नान – गायों के पैरों की मिट्टी थोड़ी ले लिई और वो लगा लिई | गवां ख़ुरेंम ये वेद में आता है इसका नाम है दशविद स्नान | रक्षाबंधन के दिन किया जाता है | गवां ख़ुरेंम निर्धुतं यद रेनू गग्नेगतं | सिरसा तेल सम्येते महापातक नाशनं || अपने सिर पर वो गाय की खुर की मिट्टी लगा दी तो महापातक नाशनं | ये वेद भगवान कहते है |

Ø धान्यस्नान – जो हमारे गुरुदेव सप्तधान्य स्नान की बात बताते है | वो सब आश्रमों में मिलता है | गेंहूँ, चावल, जौ, चना, तील, उड़द और मुंग ये सात चीजे | ये धान्यस्नान बताया | धान्योषौधि मनुष्याणां जीवनं परमं स्मरतं तेन स्नानेन देवेश मम पापं व्यपोहतु | सप्तधान स्नान ये भी पूनम के दिन लगाने का विधान है |

Ø फल स्नान – वेद भगवान कहता है फल स्नान मतलब कोई भी फल का थोडा रस लगा दिया | और कोई नहीं तो आँवला बढियाँ फल है | आँवला हरा तो मिलेगा नहीं तो थोडा आँवले की पावडर ले लिया और लगा दिया हो गया फल स्नान | मतलब हमारे जीवन में अनंत फल की प्राप्ति हो और संसारिक फल की आसक्ति छुट जाय | इसलिए आज पोर्णिमा को हे भगवान फल से रस से थोडा स्नान कर रहें है | किसीको और फल मिल जाये और थोडा लगा दिये जाय तो कोई घाटा नहीं है |

Ø सर्वोषौधि स्नान – सर्वोषौधि माना आयुर्वेदिक औषधि खाना नहीं | इस स्नान में कई जडीबुटी आती है | उसमे दूर्वा, सरसों, हल्दी, बेलपत्र ये सब डालते है उसमें वो थोडासा पावडर लेके शरीरपर रगड के स्नान किया जाता है | मेरे सब इन्द्रियाँ आँख, कान, नाक, जीभ,त्वचा ये सब पवित्र हो | इसमें सर्वोषौधि स्नान, और मेरा मन पवित्र रहें| मेरे मन में किसी बुरे विचार न आये |

Ø कुशोधक स्नान – कुश होता है वो थोडा पानी में मिला दिया और थोडा पानी हिला दिया | क्योंकि जो अपने घरमें कुश रखते है ना तो उनके पास कोई मलिन आत्माएँ नहीं आ सकती | भुत, प्रेत आदि का जोर नहीं चलता | कुश क्या है ? जब भगवान का धरती पर वराह अवतार हुआ था | तो उनके शरीर से वो उखरकर जमीन पर गिरे, लगे वही आज कुश के रूप में पाये जाते है, वो परम पवित्र है | वो कुश जहाँ पर हो वहाँ पर मलिन आत्मा नहीं आती हो तो भाग जाती है | तो कुश में पानी में थोडा हिला दिया और प्रार्थना कर दी की, मेरे मन जो मलिन विचार है, गंधे विचार है या कभी कभी आ जाते है वो सब भाग जाये | हरि ॐ ... हरि ॐ ... ॐ ,... करके उसे पानी में नहा दिया |

Ø हिरण्य स्नान – हिरण्य स्नान माने अगर अपने पास कोई सोने की चीज है | कोई सोने का गहेना वो बालटी में डाल दिया, हिला दिया और स्नान कर लिया | हिलाने के बाद वो निकाल लेना बालटी पड़ा नहीं रहेना |

तो ये दशविद स्नान वेद में बताया | श्रावण मास के पोर्णिमा का दिन किया जाता है | आप इसमें से आप जितने कर सकते हो उतने कर लेना | १ – २ न कर पाये तो जय सियाराम ... कह दे प्रभु ! हमसे जितना हो सकता था वो किया |

और जब शरीर पर पानी डाल रहे है तो ये श्लोक बोलना –

नमामि गंगे तव पाद पंकजं सुरासुरैः वंदित दिव्यरूपं |

भुक्तिचं मुक्तिचं ददासनित्यं भावानुसारें न सारे न सदा स्मरानाम ||

गंगेच यमुनेच गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी | जलस्म्ये सन्निधिं कुरु ||

ॐ ह्रीं गंगाय ॐ ह्रीं स्वाहा
||

तीर्थों का स्मरण करते हुये स्नान करें | तो ये बड़ा पुण्यदायी स्नान श्रावण पोर्णिमा (रक्षाबंधन) के दिन प्रभात को किया जाना चाहिये ऐसा वेद का आदेश है |

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- श्री सुरेशानंदजी

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