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Monday, December 29, 2014

कुक्कुटासन

लाभ – इसके अभ्यास से हाथ, कोहनी, सम्पूर्ण भुजाओं में असीम बल आता है, कंधों की मांसपेशियों को शक्ति प्राप्त होती है एवं वक्ष का विस्तार होता है | मूलाधार चक्र के उद्दीपन के कारण इसका उपयोग कुंडलिनी जागरण के लिए किया जाता है | जिनके कार्य में हाथों पर अधिकांश जोर पड़ता हो उन्हें यह आसन अधिक करना चाहिए | इस आसन के अभ्यास से आलस्य कम आता है और थोड़े ही सोने से अधिक विश्राम मिलता है | कुक्कुट (मुर्गे) की भाँती ब्राह्ममुहूर्त में ही निद्रा खुल जाती है | जिनका सीना कमजोर या मांसहिन हो और जिनकी बाहू टेढ़ी हो, उनको इस आसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए | लिखते समय जिनके हाथों में कम्पन हो अथवा थक जाते हों उनके लिए भी यह आसन लाभदायी है |



विधि –
पद्मासन में बैठकर हाथों को पिंडलियों एवं जाँघों के बीच से निकाल लें | हथेलियों को जमीन पर दृढ़ता से इस प्रकार रखें कि उँगलियाँ समाने की ओर रहें | हाथ के दोनों पंजों के बीच ४ अंगुल का अंतर रहे | हाथों को सीधा एवं आँखों को सामने किसी बिंदु पर स्थिर रखें और शरीर को धीरे-धीरे जमीन से ऊपर उठाते हुए जाँघों को कोहनियों तक लायें | पूरा शरीर केवल हाथों पर संतुलित रहना चाहिए | पीठ सीधी रखें | जब तक आराम से रह सकते हों, तब तक अंतिम स्थिति में रहें | फिर जमीन पर वापस आ जायें और धीरे-धीरे हाथों एवं पैरों को शिथिल बनायें | पैरों की स्थिति बदलकर इस अभ्यास को दोहराये |

श्वास : शरीर को ऊपर उठाते हुए श्वास छोड़ें | अंतिम स्थिति में सामान्य श्वासोच्छ्वास | शरीर को नीचे लाते हुए श्वास छोड़ें |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

प्रसव में बिलम्ब होने पर प्रयुक्त उपचार (भाग – १)

प्रसव पीड़ा कम या दूर करने के लिए उपयोग में आनेवाली पेनकिलर दवाएँ माता व बालक के बीच पय:पान (दुग्धपान) के समय स्नेह संबंध विकसित होने में बाधा पैदा करती है | संशोधकों ने देखा है कि पेनकिलर दवा लेने से माता में तरल मातृत्व हार्मोन ऑक्सिटोसिन स्त्रावित नहीं होता | इससे नवजात शिशु जन्म के समय चेतनाशून्य या स्तम्भ हो जाता है | यही कारण हैं कि वह अपने प्रारम्भिक क्षणों में माता के प्रति आकृष्ट नहीं होता और स्वत: पय:पान करने की कोशिश भी नहीं करता | इसके विपरीत जो माताएँ पेनकिलर दवा का सेवन नहीं करती, उनमें यह हार्मोन स्त्रावित होने से माता और बालक के बीच स्तनपान के हर अवसर पर दोनों और से प्रेम बढ़ता देखा गया हैं |

अत: पेनकिलर दवाइयों का सेवन न करके निम्न उपचारों में से किसी भी एक का प्रयोग करें :

१] स्वच्छ चारा खानेवाली देशी गाय के ताजे गोबर का एक चम्मच (१० मि.ली.) रस आसन्न प्रसवा (जिसकी प्रसूति का समय निकट आ गया हो) को पिलाने से प्रसव सुलभ हो जाता है |

२] पीपर (पिप्पली) व वचा चूर्ण जल में पीसकर एरंड तेल के साथ मिला के नाभि में लेप करने से अनेक कष्टों से पीड़ित स्त्री भी सुखपूर्वक प्रसव करती है |

३] सूर्यमुखी की जड़ को डोरी में बाँधकर प्रसूता के हाथ या सिर पर बाँधने से शीघ्र प्रसव होता है |

४] प्रसूता के हाथ-पैर के नाख़ून व् नाभि पर थूहर के दूध का लेप करें |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

पंचामृत रस

लाभ : यह अनुभूत रामबाण योग है, जो सर्दी के दिनों में तो विशेष लाभदायी हैं |

१] इससे पेट साफ़ रहता है |

२] रोगप्रतिकारक शक्ति बढती है |

३] रक्तशुद्धि होती है एवं रक्तसंचरण भी सुचारू रूप से होने लगता है |

४] शरीर में स्फूर्ति बढती है |

५] ओज-तेज की वृद्धि के लिए बहुत ही फायदेंमंद है |

६] कोलेस्ट्राँल के बढ़ने से होनेवाली बीमारियाँ, जैसे – ह्रदयरोग, मस्तिष्क के रोग, उच्च रक्तचाप आदि में लाभदायी है |


विधि : १ किलो आँवला, १०० ग्राम कच्ची ताज़ी हल्दी, १०० ग्राम ताजा अदरक, १०० ग्राम पुदीना, ५० से १०० तुलसी के पत्ते, पाँचों का रस निकालकर छान के मिला लें और काँच की बोतल में भर के ठंडे स्थान या फ्रिज में रखे | यह रस करीब ५ दिन टिक जाता है, फिर नया बना लें |

मात्रा – रोज बोतल हिलाकर ५० मिली रस सुबह खाली पेट लें ( बच्चों के लिए आधी मात्रा) पानी या शहद के साथ ले सकते है | कोलेस्ट्राँल की समस्याओं में १०० ग्राम लहसुन का रस मिलाकर लेने से विशेष लाभ होता है |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

स्वास्थ्यवर्धक आँवला

आँवला एक ऐसा श्रेष्ठ फल है जो वात, पित्त व कफ तीनों दोषों का शमन करता है तथा मधुर, अम्ल, कड़वा, तीखा व कसैला इन पाँच रसों की शरीर में पूर्ति करता हैं | आँवले के सेवन से आयु, स्मृति, कांति एवं बल बढ़ता है | ह्रदय एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलती है | आँखों के तेज में वृद्धि, बालों की जड़ें मजबूत होकर बाल काले होना आदि अनेकों लाभ होते हैं | शास्त्रों में आँवले का सेवन पुण्यदायी माना गया हैं | अत: अस्वस्थ एवं निरोगी सभी को आँवले का किसी-न-किसी रूप में सेवन करना ही चाहिए |

आँवले के मीठे लच्छे

सामग्री :
५०० ग्राम आँवला, ५ ग्राम काला नमक, चुटकीभर सादा नमक, चुटकीभर हींग, ५०० ग्राम मिश्री, आधा चम्मच नींबू का रस, १५० ग्राम तेल |

विधि :
आँवलों को धोकर कद्दूकश कर लें | गुलाबी होने तक इनको तेल में सेंके फिर कागज पर निकालकर रखें ताकि कागज सारा तेल सोख लें | इनमे काला नमक व नींबू का रस मिलाकर अलग रख दें | मिश्री की चाशनी बना के इनको उसमें थोड़ी देर पका लें | बस, हो गए आँवले के मीठे लच्छे तैयार ! इन्हें काँच के बर्तन में भरकर रख लें |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

सरल और लाभकारी एक्यूप्रेशर चिकित्सा

हमारे शरीर में हाथों, पैरों तथा चेहरे पर एक्यूप्रेशर के प्रतिबिम्ब केंद्र (reflex center) पाये जाते हैं, जिन्हें दबाने से शरीर में रोगप्रतिरोधक शक्ति जागृत होती है | एक्यूप्रेशर में इन केन्द्रों पर दबाव डाला जाता है | यह प्राकृतिक व् प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति है, जिसमे दबाव द्वारा बिल्कुल सुरक्षित इलाज हो जाता है और किसीप्रकार के नुकसान की सम्भावना भी नहीं होती | इसके अभ्यास से अनेक रोगों को दूर भी रखा जा सकता है |

आँखों के लिए :
आँखों की किसी भी तकलीफ में दर्शाये गये मुख्य तथा सहायक बिन्दुओं पर दबाव देने से लाभ होता है |

मुख्य दबाव बिंदु
: चित्रानुसार दोनों पैरों तथा हाथों में अँगूठे के साथवाली दो ऊँगलियाँ जहाँ तलवों तथा हथेलियों से क्रमश: मिलती हैं |

सहायक दबाव बिंदु : दोनों पैरों तथा हाथों की सभी ऊँगलियों के अग्रभाग पर दबाव दें |

विशेष : इलाज के दौरान संबंधित बिंदु पर ४ - ५ सेंकड तक दबाव दें फिर १ – २ सेंकड ले लिए हटा लें | इसप्रकार प्रत्येक बिंदु पर सुबह-शाम १५ सेंकड से २ मिनट तक सहनशक्ति के अनुसार उपचार करें | इसके अलावा पलक झपकाकर आँखों की कसरत करना भी लाभदायी हैं | गंभीर रोगों की लिए वैद्यकीय उपचार आवश्यक है | आँखों के साधारण रोग के उपचार में कुछ दिन तथा गम्भीर रोगों में कुछ महीने लग सकते हैं |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

शीघ्र उन्नति के लिए


‘ॐकार’ का दीर्घ उच्चारण करे फिर शांत हो जायें, फिर श्वासोच्छ्वास में ‘ॐकार’ को देखें | यह प्रयोग एक ही समय में कम-से-कम २० बार करना है | अधिकस्य अधिकं फलम् | अधिक करें तो और अच्छा है | सभी यह प्रयोग करें |


- पूज्य बापूजी ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

Wednesday, December 24, 2014

भयंकर कमरदर्द और स्लिप्ड डिस्क का अनुभूत प्रयोग

ग्वारपाठे (घृतकुमारी) का छिलका उतारकर गूदे को कुचल के बारीक पीस लें | आवश्यकतानुसार आटा लेकर उसे देशी घी में गुलाबी होने तक सेंक लें | फिर उसमें ग्वारपाठे का गुदा मिलाकर सेंकें | जब घी छूटने लगे तब उसमें पिसी मिश्री मिला के २०-२० ग्राम के लड्डू बना लें | आवश्कतानुसार तीन-चार सप्ताह तक रोज सुबह खाली पेट एक लड्डू खाते रहने से भयंकर कमरदर्द समाप्त हो जाता हैं |

सावधानी : देशी ग्वारपाठे का ही उपयोग करें, हाइब्रिड नहीं |

- ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१४ से

सर्दियों के लिए बल व पुष्टि का खजाना

Ø रात को भिगोयी हुई १ चम्मच उड़द की डाल सुबह महीन पीसकर उसमें २ चम्मच शुद्ध शहद मिला के चाटें | १ - १.३० घंटे बाद मिश्रीयुक्त दूध पियें | पूरी सर्दी यह प्रयोग करने से शरीर बलिष्ठ और सुडौल बनता है तथा वीर्य की वृद्धि होती है |

Ø दूध के साथ शतावरी का २ – ३ ग्राम चूर्ण लेने से दुबले-पतले व्यक्ति, विशेषत: महिलाएँ कुछ ही दिनों में पुष्ट जो जाती हैं | यह चूर्ण स्नायु संस्थान को भी शक्ति देता हैं |

Ø रात को भिगोयी हुई ५ – ७ खजूर सुबह खाकर दूध पीना या सिंघाड़े का देशी घी में बना हलवा खाना शरीर के लिए पुष्टिकारक है |

Ø रोज रात को सोते समय भुनी हुई सौंफ खाकर पानी पीने से दिमाग तथा आँखों की कमजोरी में लाभ होता है |

Ø आँवला चूर्ण, घी तथा शहद समान मात्रा में मिलाकर रख लें | रोज सुबह एक चम्मच खाने से शरीर के बल, नेत्रज्योति, वीर्य तथा कांति में वृद्धि होती है | हड्डियाँ मजबूत बनती हैं |

Ø १०० ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को २० ग्राम घी में मिलाकर मिट्टी के पात्र में रख दें | सुबह ३ ग्राम चूर्ण दूध के साथ नियमित लेने से कुछ ही दिनों में बल-वीर्य की वृद्धि होकर शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है |

Ø शक्तिवर्धक खीर : ३ चम्मच गेहूँ का दलिया व २ चम्मच खसखस रात को पानी में भिगो दें | प्रात: इसमें दूध और मिश्री डालकर पकायें | आवश्यकता अनुसार मात्रा घटा-बढ़ा सकते हैं | यह खीर शक्तिवर्धक है |

Ø हड्डी जोडनेवाला हलवा : गेहूँ के आटे में गुड व ५ ग्राम बला चूर्ण डाल के बनाया गया हलवा (शीरा) खाने से टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाति है | दर्द में भी आराम होता है |

Ø सर्दियों में हरी अथवा सुखी मेथी का सेवन करने से शरीर के ८० प्रकार के वायु-रोगों में लाभ होता है |

Ø सब प्रकार के उदर-रोगों में मठ्ठे और देशी गाय के मूत्र का सेवन अति लाभदायक है | (गोमूत्र न मिल पाये तो गोझरण अर्क का उपयोग कर सकते हैं |)

- ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१४ से

गुप्तासन

लाभ : इसका गुण भी गुप्त है और इसमें दोनों पैरों को छिपाकर बैठा जाता है | यह ऐसा आसन हैं जिसके द्वारा सूक्ष्म-से-सूक्ष्म नाड़ियों पर सूक्ष्म प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता | यह गुप्तासन स्त्री, पुरुष, योगी, भोगी और चंचल चित्तवाले – सभी को लाभ पहुँचाता है |

इस आसन के अभ्यास से स्वप्नदोष दूर होता हैं | वीर्यदोष तथा वीर्य की चंचलता दूर होती है तथा अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि होती है | यह मूत्र-संबंधी बीमरियों के लिये परम उपयोगी हैं | इसके अभ्यास से चित्राख्या नाड़ी पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं, जिससे जननेंद्रिय में भलीभाँति रक्त का संचार होने लगता है | गुदा और जननेंद्रिय संबंधित बहुत-सी बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है | गुप्तासन को उड्डीयान और मूल बंध के साथ करने से कुंडलिनी शक्ति अतिशीघ्र जागृत होती है |

विधि – जमीन पर बैठकर बायें पैर को इसप्रकार रखें कि एड़ी ऊपर की तरफ गुदा से लग जाय | तत्पश्चात नितम्बों को ऊपर उठाकर दायें पैर को बायें पैर की पिंडली और जंघा के बीच में इसप्रकार छिपायें कि पंजे का हिस्सा बाहर न हो | बायें पैर का पंजा दायें पैर के नीचे छिपा हो | तत्पश्चात दोनों हाथों को घुटनों पर रखते हुए कमर के ऊपरी भाग को बिल्कुल सीधा रखे | ध्यान रखें कि दायें पैर की एड़ी का हिस्सा गुदा के साथ-साथ सिवनी नाड़ी को भी पूर्णतया दबाता रहे अर्थात गुदा के पास से बिल्कुल उठने न पाये |

- ऋषिप्रसाद – नवम्बर- २०१४ से

Monday, November 3, 2014

गर्भिणी का आहार




आचार्य चरक कहते हैं कि गर्भिणी के आहार का आयोजन तीन बातों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए – गर्भवती के शरीर का पोषण, स्तन्यनिर्मिती की तैयारी व गर्भ की वृद्धि | माता यदि सात्त्विक, संतुलित, पथ्यकर एवं सुपाच्य आहार का विचारपूर्वक सेवन करती है तो बालक सहज ही हृष्ट-पुष्ट होता है | प्रसव भी ठीक समय पर सुखपूर्वक होता है |
अत: गर्भिणी रुचिकर, सुपाच्य, मधुर रसयुक्त, चिकनाईयुक्त एवं जठराग्नि प्रदीपक आहार लें |
पानी – सगर्भा स्त्री पतिदिन आवश्यकता के अनुसार पानी पिये परन्तु मात्रा इतनी अधिक ण हो कि जठराग्नि मंद हो जाय | पानी को १५-२० मिनट उबालकर ही लेना चाहिये | सम्भव हो तो पानी उबालते समय उसमें उशीर (सुंगधीबाला ), चंदन, नागरमोथ आदि डालें तथा शुद्ध चाँदी या सोने (२४ कैरेट) का सिक्का या गहना साफ़ करके डाला जा सकता है |
दूध – दूध ताजा व शुद्ध होना चाहिये | फ्रीज का ठंडा दूध योग्य नहीं हैं | यदि दूध पचता न हो या वायु होती हो तो २०० मि.ली. दूध में १०० मि.ली. पानी के साथ १० नग वायविडंग व १ से.मी. लम्बा सौंठ का टुकड़ा कूटकर डालें व उबालें | भूख लगनेपर एक दिन में १-२ बार लें सकते हैं | नमक, खटाई, फलों और दूध के बीच २ घंटे का अंतर रखें |
छाछ – सगर्भावस्था के अंतिम तीन-चार मासों में मस्से या पाँव पर सूजन आने की सम्भावना होने से मक्खन निकाली हुई एक कटोरी ताज़ी छाछ दोपहर के भोजन में नियमित लिया करें |
घी – आयुर्वेद ने घी को अमृत सदृश बताया है | अत: प्रतिदिन १-२ चम्मच घी पाचनशक्ति के अनुसार सुबह-शाम लें |
दाल – घी का छौंक लगा के नींबू का रस डालकर एक कटोरी दाल रोज सुबह के भोजन में लेनी चाहिये, इससे प्रोटीन प्राप्त होते है | दालों में मूंग सर्वश्रेष्ठ है | अरहर भी ठीक है | कभी-कभी राजमा, चना, चौलाई, मसूर कम मात्रा में लें | सोयाबीन पचने में भारी होने से न लें तो अच्छा है |
सब्जियाँ -  लौकी, गाजर, करेला, भिन्डी, पेठा, तोरई, हरा ताजा मटर तह सहजन बथुआ, सुआ, पुदीना आदि हरे पत्तेवाली सब्जियाँ रोज लेनी चाहिये | ‘भावप्रकाश निघुंट’ ग्रन्थ के अनुसार सुपाच्य, ह्र्द्यपोषक, वाट-पित्त का संतुलन करनेवाली, वीर्यवर्धक एवं सप्तधातु पोषक ताज़ी, मुलायम लौकी की सब्जी, कचूमर (सलाद), सूप या हलवा बनाकर रूचि अनुसार उपयोग करें |
शरीर में रक्तधातू लौह तत्त्व पर निर्भर होने से लौहवर्धक काले अंगूर, किशमिश, काले खजूर, चुकन्दर, अनार, आँवला, सेब, पुराना देशी गुड़ एवं पालक, मेथी हरा धनिया जैसी शुद्ध व ताज़ी पत्तोंवाली सब्जियाँ लें | लौह तत्त्व के आसानी से पाचन के लिये विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, अत: सब्जी में नींबू निचोड़कर सेवन करें | खाना बनाने के लिये लोहे की कढाई, पतीली व तवे का प्रयोग करे |
फल -  हरे नारियल का पानी नियमितसे गर्भोदक जल की उचित मात्रा बनी रहने में मदद मिलती है | मीठा आम उत्तम पोषक फल हैं, अत: उसका उचित मात्र में सेवन करे | वर, कैथ, अनन्नास, स्ट्राँबेरी, लीची आदि फल ज्यादा न खायें | चीकू, रामफल, सीताफल, अमरुद, तरबूज, कभी-कभी खा सकती हैं | पपीते का सेवन कदापि ण करें | कोई भी फल काटकर तुरंत खा लें | फल सूर्यास्त के बाद न खाये |
गर्भिणी निम्न रूप से भोजन का नियोजन करे :
-    सुबह – ७ – ७.३० बजे नाश्ते में रात के भिगोये हुए १-२ बादाम, १-२ अंजीर व ७-८ मुनक्के अच्छे-से चबाकर खाये |
-    साथ में पंचामृत पाचनशक्ति के अनुसार ले | वैद्यकीय सलाहानुसार आश्रमनिर्मित शक्तिवर्धक योग – सुवर्णप्राश, रजतमालती, च्यवनप्राश आदि ले सकती हैं |
-    सुबह ९ से ११ के बीच तथा शाम को ५ से ७ ले बीच प्रकृति-अनुरूप ताजा , गर्म, सात्त्विक, पोषक एवं सुपाच्य भोजन करें |
-    भोजनसे पूर्व हाथ-पैर धोकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके सीधे बैठकर ‘गीता’ के १५ वे अध्याय का पाठ करे और भावना करे कि ‘ह्रदयस्थ प्रभु को भोजन करा रही हूँ |’ पाँच प्राणों को नीचे दिये मंत्रसहित मानसिक आहुतियाँ देकर भोजन करना चाहिये |
ॐ प्राणाय स्वाहा |
ॐ अपानाय स्वाहा |
ॐ व्यानाय स्वाहा |
ॐ उदानाय स्वाहा |
ॐ समानाय स्वाहा |
-    ऋषिप्रसाद अक्टूबर २०१४ से

आँखों की समस्याओं और नेत्रज्योति-वृद्धि के उपाय

१) कान के पीछे गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मालिश करे |

२) पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन में या कुर्सी पर आराम से बैठ जायें | रीढ़ की हड्डी, गला व सिर को सीधा रखें | आँखों के बराबर ऊँचाई पर रखे दीपक की ज्योति को एक मिनट तक एकटक देखें | फिर आँखों को एकाध मिनट बंद रखे | यह क्रिया ५ बार दोहरायें | इससे एकाग्रता व नेत्रज्योति दोनों में वृद्धि होती है |

३) आँखों को स्वच्छ जल से धोकर नेत्रबिंदु डालें | ॐ... ॐ.....मम आरोग्यशक्ति जाग्रय –जाग्रय’ अथवा ‘ॐ...ॐ.... मेरी आरोग्यशक्ति जाग्रत हो, जाग्रत हो ‘ – ऐसा कहते हुए या चितन करते हुए हाथों की हथेलियाँ आपस में रगडकर आँखों पर रखें | मौका मिले तो आँखों की पुतलियों को गोल घुमायें, फिर दायीं ओर व उसके बाद बायीं ओर ले जायें | सुबह मुँह में एक कुल्ला पानी भर लें, फिर कटोरी में थोडा पानी भर के उसमें आँखें डुबाकर पटपटायें, जिससे आँखों व् सिर की गर्मी निकल जाए | इससे सिरदर्द में आराम व नेत्रज्योति में वृद्धि होती है |

नेत्र –सुरक्षा व नेत्रज्योति-वृद्धि के लिये

· आँखों को सीधी धूप से बचायें |

· सुबह नंगे पैर हरी घास पर चलें |

· हरी पत्तेदार सब्जियाँ, ताजे फल व दूध का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें (दूध व् फल में २ घंटे का अंतर रखे ) |

· रात्रि-जागरण से बचे |

- ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से

घुटनों के दर्द का अनुभूत प्रयोग




६ ग्राम विजयसार की लकड़ी, २५० ग्राम दूध, ३७५ ग्राम पानी, २ चम्मच मिश्री (या चीनी) डालकर धीमी आँच पर पकायें | जब दूध २५० ग्राम रह जाय, तब छानकर सोने से १ घंटा पहले पिये | इससे घुटनों की हड्डियों का कैल्शियम तर रहता है, जिससे वृद्धावस्था में कैल्शियम की कमी के कारण होनेवाली घुटनों की समस्या से रक्षा होती है | पूरानी चोट का दर्द दूर होता है | इससे टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है | कमर व घुटनों का दर्द भी दूर होता है |
इसका सेवन करनेवाले की वृद्धावस्था में भी कभी गर्दन व हाथ नहीं कॉपेंगे और हाथ-पैरों व शरीर की हड्डियाँ चोट लगने पर सहज में नहीं टूटेंगी | यह प्रयोग सर्दियों में ही करना चाहिये |
जोड़ो की कड़कड़ाहट दूर हड्डियों बने मजबूत
नीचे दिये प्रयोग को करने से हड्डियाँ मजबूत होती है व जोड़ों की कडकड बंद होती है | यह मधुमेह में भी लाभप्रद है |
विधि – १] विजयसार की लकड़ी का ६ ग्राम बुरादा रात को एक काँच के बर्तन में २५० ग्राम पानी में भिगो दें और प्रात: छानकर पी लें | इसी तरह सुबह का भिगोया हुआ पानी शाम को पियें | यह पानी एक बार में इस्तेमाल करे और हर बार नया बुरादा भिगोयें |
२] पारिजात (हरसिंगार) की ५ से ११ पत्तियाँ १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी शेष रहने पर छानकर प्रातः खाली पेट पियें | कुछ दिन लगातार यह प्रयोग करने से जोड़ों का दर्द, गठिया अथवा अन्य कारणों से शरीर में होनेवाले पीड़ा में राहत मिलती है | पथ्यकर आहार लें |
-    ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से

तुलसी महिमा










· तुलसी के निकट जिस मन्त्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वश सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है |

· प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत, दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते है |

· ब्रह्महत्या आदि पाप तथा पाप और खोटे विचार से उत्पन्न होनेवाले रोग तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से नष्ट हो जाते है |

· तुलसी का पूजन, रोपण व धारण पाप को जलाता है और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है |

· श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है |

· जो चोटी में तुलसी स्थापित करके प्राणों का परित्याग करता है, वह पापराशि से मुक्त हो जाता है |

· तुलसी के नाम-उच्चारण से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है |

· तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है |

· तुलसी पत्ते से टपकता हुआ जल जो अपने सिर पर धारण करता है, उसे गंगास्नान और १० गोदान का फल प्राप्त होता है |

 पद्मपुराण (ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४ से )

Saturday, October 11, 2014

ज्यादा नमक हो सकता हैं जानलेवा

‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन’ में प्रकाशित शोध के अनुसार ज्यादा नमक खाने से उपजे ह्रदयरोगों से वर्ष २०१० में विश्व में १६.५ लाख लोगों की मृत्यु हुई | ज्यादा नमक खाना तम्बाकू सेवन करने जैसा है | शोध में बताया गया कि एक व्यक्ति को प्रतिदिन सिर्फ दो ग्राम नमक ही खाना चाहिए लेकिन भारतीय औसतन ७.६ ग्राम नमक खाते हैं | ज्यादा नमक खाने से हाई ब्लडप्रेशर, ह्रदयरोग के अलावा और भी कई सारी बीमारियाँ होती हैं | अत: सभी आश्रमों के रसोईघरों में, साधकों के घरों में ‘शक्कर-नमक : कितने खतरनाक !’ वाला लेख लगा देना चाहिए | (लेख हेतु देखें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘आरोग्यनिधि’ भाग- १ पृष्ठ १३१)

- लोककल्याण सेतु – सितंबर २०१४ से

एक्यूप्रेशर के दो उपयोगी बिंदु




सुर्यबिंदु : सुर्यबिंदु छाती के पर्दे (डायाफ्राम) के नीचे आये हुए समस्त अवयवों का संचालन करता हैं | नाभि खिसक जाने पर अथवा डायाफ्राम के नीचे के किसी भी अवयव के ठीक से कार्य न करने पर सुर्यबिंदु पर दबाव डालने से लाभ होता हैं |
शक्तिबिंदु : जब बहुत थकान हो या रात्रि को नींद न आयी हो, तब इस बिंदु को दबाने से लाभ होगा |
- लोककल्याण सेतु – सितंबर  २०१४ से