Search This Blog

Sunday, May 20, 2018

धातुपुष्टिकर, बलवर्धक एवं पौष्टिकता के लिए – भिंडी

आयुर्वेद के अनुसार भिंडी मधुर, स्निग्ध, शीतल, रुचिकर, बलवर्धक एवं पौष्टिक होती है | यह वात-पित्तशामक, पचने में भारी एवं मूत्रल है | सूजाक, मूत्रकृच्छ (मूत्र-संबंधी तकलीफें) एवं पथरी के रोगी के लिए भिंडी का सेवन हितकारी है |

इसके सेवन से अनैच्छिक विर्यस्त्राव बंद होता है | २ से ५ भिंडी रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से धातु की पुष्टि होती है और शक्ति आती है |

भिंडी में रेशे अधिक मात्रा में होते हैं | यह आँतों को साफ़ करती है, भूख को बढ़ाती है | इसमें कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस , पोटैशियम, फ़ॉलिक एसिड, विटामिन ‘ए’, ‘सी’ व ‘के’ आदि पोषक तत्त्व पाये जाते हैं |

भिंडी का काढ़ा
काढ़ा बनाने के लिए ९० ग्राम ताज़ी भिंडीयों को खड़ी काट लें | अब आधा लीटर पानी में डाल के चौथाई भाग (१२५ मि.ली.) पानी शेष रहने तक उबालें तथा छान के मिश्री मिलाकर पियें |

यह काढ़ा मूत्रवर्धक होता है | इसे रोज सुबह पीने से मूत्रमार्ग में जलन, सूजाक, श्वेतप्रदर आदि में लाभ होता है |

भिंडी के कुछ औषधीय प्रयोग
१] हाथ-पैरों, सिर व आँखों की जलन :  भिंडी को सुखाकर बनाये गये ५ ग्राम चूर्ण को पानी के साथ लेने से लाभ होता है |
२] पेंशाब की जलन:  भिंडी के आधा चम्मच ताजे बीज पीस लें | इसमें मिश्री मिला के सुबह-शाम सेवन करने से फायदा होता है |

सावधानी: बड़ी, पके हुए व सख्त बीजोंवाली, पीली, मुरझायी हुई एवं सख्त भिंडी का उपयोग नहीं करना चाहिए |


लोककल्याण सेतु – मई २०१८ से 

No comments: