आयुर्वेद के अनुसार
भिंडी मधुर, स्निग्ध, शीतल, रुचिकर, बलवर्धक एवं पौष्टिक होती है | यह
वात-पित्तशामक, पचने में भारी एवं मूत्रल है | सूजाक, मूत्रकृच्छ (मूत्र-संबंधी
तकलीफें) एवं पथरी के रोगी के लिए भिंडी का सेवन हितकारी है |
इसके सेवन से अनैच्छिक
विर्यस्त्राव बंद होता है | २ से ५ भिंडी रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से धातु की
पुष्टि होती है और शक्ति आती है |
भिंडी में रेशे अधिक
मात्रा में होते हैं | यह आँतों को साफ़ करती है, भूख को बढ़ाती है | इसमें
कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस , पोटैशियम, फ़ॉलिक एसिड, विटामिन ‘ए’, ‘सी’ व ‘के’ आदि पोषक
तत्त्व पाये जाते हैं |
भिंडी का काढ़ा
काढ़ा बनाने के लिए ९०
ग्राम ताज़ी भिंडीयों को खड़ी काट लें | अब आधा लीटर पानी में डाल के चौथाई भाग (१२५
मि.ली.) पानी शेष रहने तक उबालें तथा छान के मिश्री मिलाकर पियें |
यह काढ़ा मूत्रवर्धक होता
है | इसे रोज सुबह पीने से मूत्रमार्ग में जलन, सूजाक, श्वेतप्रदर आदि में लाभ
होता है |
भिंडी के कुछ औषधीय
प्रयोग
१] हाथ-पैरों, सिर व
आँखों की जलन : भिंडी को सुखाकर बनाये गये ५ ग्राम चूर्ण को
पानी के साथ लेने से लाभ होता है |
२] पेंशाब की जलन: भिंडी के आधा चम्मच ताजे बीज पीस लें | इसमें
मिश्री मिला के सुबह-शाम सेवन करने से फायदा होता है |
सावधानी: बड़ी, पके हुए व सख्त बीजोंवाली, पीली, मुरझायी हुई एवं सख्त
भिंडी का उपयोग नहीं करना चाहिए |
लोककल्याण सेतु – मई २०१८ से
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