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Sunday, September 5, 2021

पुण्यदायी तिथियाँ व योग

 


६ सितम्बर : सोमवती अमावस्या ( सुबह ७:३९ से ७ सितम्बर सुबह ६:२२ तक )  तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता – नाश



१० सितम्बर : गणेश चतुर्थी, चन्द्र-दर्शन निषिद्ध (चंद्रास्त :रात्रि ९:२०)  (इस दिन ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होता हैं तथा मेधाशक्ति बढती है | इस दिन चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है | यदि भूल से भी चन्द्रमा दिख जाय तो उसके कुप्रभाव को मिटाने के लिए bit.ly/syamantakmanikatha इस लिंक पर दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी की कथा’ पढ़े तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण के निम्नलिखित मंत्र का २१, ५४ या १०८ बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पियें |

सिंह: प्रसेनमवधीत सिंहों जाम्बवता हत: |

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक: ||

१२ सितम्बर : रविवारी सप्तमी (शाम ५:२२ से १३ सितम्बर सूर्योदय तक)

१७ सितम्बर : पद्मा एकादशी (व्रत करने व महात्म्य पढने-सुनने से सब पापों से मुक्ति), षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल :सूर्योदय से दोपहर १२:३४ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल)

२९ सितम्बर : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से रात्रि ८:३० तक)

३० सितम्बर : गुरुपुष्यामृत योग (रात्रि १:३३ [अर्थात १ अक्टूबर १:३३ AM] से १ अक्टूबर सूर्योदय तक ) ध्यान, जप, दान, पुण्य महाफलदायी |

२ अक्टूबर : इंदिरा एकादशी ( बड़े-बड़े पापों का नाशक तथा नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी सदगति देनेवाला व्रत )



७ अक्टूबर : पूज्य संत श्री आशारामजी बापू का ५८ वाँ आत्मसाक्षात्कार दिवस, शारदीय नवरात्र प्रारम्भ

१३ अक्टूबर : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से रात्रि ८:०८ तक)

१५ अक्टूबर : विजयादशमी (पूरा दिन शुभ मुहूर्त), विजय मुहूर्त (दोपहर २:१५ से ३:०१ तक) (संकल्प, शुभारम्भ, नूतन कार्य, सीमोल्लंघन के लिए), दशहरा, गुरु-पूजन, अस्त्र-शस्त्र-शमी वृक्ष-आयुध-वाहन पूजन


ऋषिप्रसाद एवं लोककल्याणसेतु – अगस्त -सितम्बर  २०२१ से

स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने का स्वभाव पर विजय पाने का अवसर – शारदीय नवरात्रि

 शारदीय नवरात्रि : ७ से १४ अक्टूबर

एक होती है शारदीय नवरात्रि और दूसरी चैत्री नवरात्रि | एक नवरात्रि रावण के मरने के पहले शुरू होती है, दशहरे को रावण मरता है और नवरात्रि पूरी हो जाती है | दूसरी नवरात्रि चैत्र मास में रामजी के प्राकट्य के पहले, रामनवमी के पहले शुरू होती है और रामजी के प्राकट्य दिवस पर समाप्त होती है |

राम का आनंद पाना है और रावण की क्रूरता से बचना है तो आत्मराम का प्राकट्य करो | काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा शरीर को ‘मैं’ और संसार को ‘मेरा’ मानना – यह रावण का रास्ता है | आत्मा को ‘मै’ और सारे ब्रह्मांड को आत्मिक दृष्टी से ‘मेरा; मानना – यह रामजी का रास्ता है |

उपवास की महत्ता क्यों है ?

नवरात्रि में व्रत-उपवास, ध्यान, जप और संयम-ब्रह्मचर्य.... पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहें – यह बड़ा स्वास्थ्य-लाभ, पुण्य-लाभ देता है | परंतु इन दिनों में जो सम्भोग करते हैं उनको उसका दुष्फल भी हाथों-हाथ मिलता है | नवरात्रि संयम का संदेश देनेवाली है | यह हमारे ऋषियों की दूरदर्शिता का सुंदर आयोजन है, जिससे हम दीर्घ जीवन जी सकते हैं और दीर्घ सुझबुझ के धनी होकर ऐसे पद पर पहुँच सकते हैं जहाँ इन्द्र का पद भी नन्हा लगे |

नवरात्रि के उपवास स्वास्थ्य के लिए वरदान है | अन्न से शरीर में पृथ्वी-तत्त्व होता है और शरीर कई अनपचे और अनावश्यक तत्त्वों को लेकर बोझा ढो रहा होता है | मौका मिलने पर, ऋतू-परिवर्तन पर वे चीजें उभरती हैं और आपको रोग पकड़ता है | अत: इन दिनों में जो उपवास नहीं रखता और खा-खा-खा.... करता है वह थका-थका, बीमार-बीमार रहेगा, उसे बुखार-वुखार आदि बहुत होता है |

इस ढंग से उपवास देगा पूरा लाभ

शरीर में ६ महीने तक के जो विजातीय द्रव्य जमा हैं अथवा जो डबलरोटी, बिस्कुट या मावा आदि खाये और उनके छोटे-छोटे कण आँतों में फँसे हैं, जिनके कारण कभी डकारें, कभी पेट में गडबड , कभी पेट में गड़बड़, कभी कमर में गड़बड़, कभी ट्यूमर बनने का मसला तैयार होता है, वह सारा मसाला उपवास से चट हो जायेगा | तो नवरात्रियों में उपवास का फायदा उठायें |

नवरात्रि के उपवास करें तो पहले अन्न छोड़ दें और २ दिन तक सब्जियों पर रहें, जिससे जठर पृथ्वी-तत्त्व संबंधी रोग स्वाहा कर ले | फिर २ दिन फल पर रहें | सब्जियाँ जल-तत्त्व प्रधान होती हैं और फल अग्नि-तत्त्व प्रधान होता है | फिर फल पर भी थोडा कम रहकर वायु पर अथवा जल पर रहें तो अच्छा लेकिन यह मोटे लोगों के लिए है |

पतले – दुबले लोग किशमिश, द्राक्ष आदि थोडा खाया करें और इन दिनों में गुनगुना पानी हलका-फुलका (थोड़ी मात्रा में ) पियें | ठंडा पानी पियेंगे तो जठराग्नि मंद हो जायेगी |  

अगर मधुमेह, कमजोरी, बुढापा नहीं है, उपवास कर सकते हो तो कर लेना | ९ दिन के नवरात्रि के उपवास नहीं रख सकते तो कम-से-कम सप्तमी, अष्टमी और नवमी का उपवास तो रखना ही चाहिए |

विजय का डंका बजाओ !

५ ज्ञानेन्द्रियों (जीभ, आँख, कान, नासिका व त्वचा) और ४ अंत:करण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) – ये तुम्हें उलझाते हैं | इन नवों को जीतकर तुम यदि नवरात्रि मना लेते हो तो नवरात्रि का फल विजयादशमी होता है ..... जैसे रामजी ने रावण को जीता, महिषासुर को माँ दुर्गा ने जीता और विजय का डंका बजाया ऐसे ही तुम्हारे चित्त में छुपी हुई आसुरी सम्पदा को, धारणाओं को जीतकर जब तुम परमात्मा को पाओगे तो तुम्हारी भी विजय तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगी |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से


उन्नतिकारक कुंजियाँ

 

हलका भोजन करने से शरीर में स्थूलता कम होती है, मन भी सूक्ष्म होता है | सूक्ष्म मन प्रसन्नता का द्योतक है |

भृकुटी में तिलक करने से ज्ञानशक्ति का विकास होता है |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

ऐसा चिंतन करे बुद्धि का विकास !

 

सुबह नींद में से उठे तो थोड़ी देर चुप बैठे | फिर ऐसा चिंतन करें : ‘आज मै कभी भी फरियाद का चिंतन नहीं करूँगा, अपने मन को दृढ़ रखूँगा क्योंकि मेरे मन की गहराई में मेरे भगवान हैं | भगवान सदा एकरस हैं, दृढ़ हैं तो मन दृढ़ होगा तो उसमें भगवान की सत्ता आयेगी | मेरी बुद्धि को दृढ़ करूँगा, बुरी संगति नहीं करूँगा, बुरे विचारों में नहीं गिरूँगा | मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं | प्रभु ! आप मेरे हैं न ! आप चेतनस्वरूप हैं, आनंदस्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, आप शांत आत्मा हैं | 

इस प्रकार का चिंतन करने से बुद्धि बढ़ेगी | क्या करूँ, कैसे करूँ, मेरा ऐसा हो गया | .... फिर जो पढ़ा है अथवा जो पढना है उसका थोडा चिंतन करो | चिंतन से बुद्धि का विकास होता है और चिंता से बुद्धि का विनाश होता है |

सूर्यनारायण को अर्घ्य देना, भगवन्नाम का जप करना, भगवान को एकटक देखते-देखते फिर उनको आज्ञाचक्र में देखना | इनसे बुद्धि का विकास होता है |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

आरती क्यों करते है ?

 

हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में संध्योपासना तथा किसी भी मांगलिक पूजन में आरती का एक विशेष स्थान है | शास्त्रों में आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ भी कहा गया है |

पूज्य बापूजी वर्षों से न केवल आरती की महिमा, विधि, उसके वैज्ञानिक महत्त्व आदि के बारे में बताते रहे हैं बल्कि अपने सत्संग – समारोहों में सामूहिक आरती द्वारा उसके लाभों का प्रत्यक्ष अनुभव भी करवाते रहे हैं |

पूज्य बापूजी के सत्संग -अमृत में आता है : “आरती एक प्रकार से वातावरण में शुद्धिकरण करने तथा अपने और दूसरे के आभामंडलों में सामंजस्य लाने की एक व्यवस्था है | हम आरती करते हैं तो उससे आभा, ऊर्जा मिलती है | हिन्दू धर्म के ऋषियों ने शुभ प्रसंगों पर एवं भगवान की, संतो की आरती करने की जो खोज की है वह हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है, एक-दूसरे जे मनोभावों का समन्वय करती है और आध्यात्मिक उन्नति में बड़ा योगदान देती है |

शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है | शुभ कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण हो जाती है | स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है | भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :

मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम |

सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ||

‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है, वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है |’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)

ज्योत की संख्या का रहस्य 



सामान्यत: ५ ज्योतवाले दीपक से आरती की जाती है, जिसे ‘पंचदीप’ कहा जाता है | आरती में या तो एक ज्योत हो या तो तीन हों या तो पाँच हों | ज्योत विषम संख्या (१,३,५,....) में जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है | यदि ज्योत की संख्या सम (२,४,६,...) हो तो ऊर्जा - संवहन की क्रिया निष्क्रिय हो जाती है |

अतिथि की आरती क्यों ?

हर व्यक्ति के शरीर से ऊर्जा, आभा निकलती रहती है | कोई अतिथि आता है तो हम उसकी आरती करते हैं क्योंकि सनातन संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है | हर मनुष्य की अपनी आभा है तो घर में रहनेवालों की आभा को उस अतिथि की नयी आभा विक्षिप्त न करे और वह अपने को पराया न पाये इसलिए आरती की जाती है | इससे उसको स्नेह-का-स्नेह मिल गया और घर की आभा में घुल-मिल गये | कैसी सुंदर व्यवस्था है सनातन धर्म की !”

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

त्रिफला-सेवन के अनेक लाभ

 



स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदायक एक बहुश्रुत औषधि है – त्रिफला चूर्ण | आँवला, बेहडा और हरड के सम्मिश्रण से बना यह चूर्ण त्रिदोषशामक, विशेषरूप से कफ-पित्तशामक,नेत्रों के लिए परम हितावह, जठराग्नि – प्रदीपक, भोजन में रूचि उत्पन्न करनेवाला, पेट साफ़ व घाव को ठीक करनेवाला, रक्त व त्वचा विकारों को दूर करनेवाला, ह्रदय-हितकर, उत्तम रसायन और शरीर में किसी भी स्थान में संचित  सूक्ष्म मल को साफ़ करनेवाला है | 

सेवन-वर्ष के अनुसार लाभ

अगर कोई व्यक्ति नियमितरुप से प्रात: बिना कुछ खाये – पिये ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करता है तो अनेक लाभ होते हैं |

त्रिफला-सेवन के बाद २ से २.५ घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए | शुरू में इसके सेवन से एक या दो पतले दस्त हो सकते हैं किंतु इससे घबरायें नहीं | वृद्ध तथा किसी रोग से ग्रस्त व्यक्ति सेवन की मात्रा वैद्यकीय सलाह-अनुसार निश्चित करें |

त्रिफला रुक्ष होता है अत: लम्बे समय तक सेवन करने के लिए देशी गाय के घी अथवा काले तिल के तेल के साथ मिलाकर ऊपर से गर्म पानी पीना अधिक हितकारी होता है | (घीयुक्त त्रिफला रसायन विशेषकर अहमदाबाद, सुरत, करोलबाग – दिल्ली, गोरेगाँव-मुंबई आदि और सेवाकेन्द्रोंपर प्राप्त हो सकता है |)

त्रिफला सेवन-मात्रा : चूर्ण – ३ से ५ ग्राम अथवा गोलियाँ – ३ से ४ 


मास-अनुसार त्रिफला का अनुपान       

मासों के अनुसार त्रिफला के साथ उसमें उसकी मात्रा के छठे भाग बराबर निम्नलिखित द्रव्यों को मिला के सेवन करने से उसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है |

१] श्रावण और भाद्रपद : सेंधा नमक

२] आश्विन और कार्तिक : शर्करा (मिश्री या खाँड अर्थात अपरिष्कृत शक्कर)

३] मार्गशीर्ष और पौष : सोंठ चूर्ण

४] माघ तथा फाल्गुन : पीपर का चूर्ण

५] चैत्र और वैशाख : शहद

६] ज्येष्ठ तथा आषाढ़ : पुराना गुड़


इस प्रकार त्रिफला शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने में सहायक व प्रसादरूप है |

ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से


शरद ऋतू में स्वास्थ्य – सुरक्षा

 

शरद ऋतू : २२ अगस्त से २२ अक्टूबर

वर्षा ऋतू में संचित पित्तदोष शरद ऋतू में प्रकुपित होता है | आयुर्वेद में पित्त को नष्ट करने के लिए आहार में छ: रसों में से ३ रस अर्थात कषाय (कसैला), मधुर व तिक्त (कड़वा ) रस-प्रधान पदार्थों का सेवन हितकारी बताया गया है |

मधुर रसयुक्त पदार्थ : देशी गाय का दूध व घी, शहद, केला,नारियल, गन्ना, काली द्राक्ष, किशमिश, मिश्री, मधुर फल आदि |

कड़वे रसयुक्त पदार्थ : नीम, चिरायता, गिलोय, हल्दी, करेला, अडूसा आदि |

कसैले रसयुक्त पदार्थ : आँवला, हरड, त्रिफला, जामुन, पालक, अनार आदि |


पित्त-प्रकोप से फोड़े-फुंसी, दाद, खाज, खुजली, रक्तपित्त, त्वचा-रोग, शीतपित्त, अम्लपित्त, अजीर्ण जैसे लक्षण दिखाई देते हैं |


पित्तदोष दूर करने के लिए एलोपैथिक दवाइयों के सेवन से पित्त को दबाना नहीं चाहिए अन्यथा रक्त की अशुद्धि व पित्त की समस्याएँ और अधिक बढ़ने की सम्भावना होती है |


पित्तदोष-निवारण हेतु घरेलू उपाय

·     देशी गाय का शुद्ध घी : उत्तम जठराग्नि-प्रदीपक व श्रेष्ठ पित्तशामक है | २ छोटे चम्मच घी भोजन के साथ सेवन करें | अथवा सुबह खाली पेट १ चम्मच घी हलका गुनगुना करके गर्म पानी के साथ सेवन करें व बाद में भूख लगने पर भोजन करें |

·       मक्खन-मिश्री खाने से भी लाभ होता है | (हमेशा ताजे-मक्खन का ही उपयोग करें | बाजार में बिकनेवाले कई दिन पुराने मक्खन से परहेज रखना चाहिए |)

·       आँवला रस : आँवले का मुरब्बा या आँवला कैंडी, पित्त को कम करने के लिए काफी प्रभावशाली है |

·       ८ से १० काले मुनक्के रात को पानी में भिगोकर सुबह पानी के साथ लें | मुनक्का पित्तशामक व मृदु विरेचक होता है | इससे पेट भी अच्छे-से साफ़ होगा |

·        १ – १ चम्मच गुलकंद दिन में १ – २ बार ले सकते हैं |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

सर्वलाभ की कुंजी

 

कैसा भी बीमार व्यक्ति हो, उसको हरिनाम की, ‘हरि ॐ’ की साधना दे दो, चंगा होने लगेगा | बिल्कुल पक्की बात है ! 

आपको स्वस्थ रहना है तो भी भगवान का नाम, प्रसन्न तथा निरहंकारी रहना है तो भगवान का नाम, उद्योगी एवं साहसी होना है तो भगवान का नाम और पूर्वजों का मंगल करना है तो भी भगवान का नाम....|


ऋषिप्रसाद -सितम्बर २०२१ से

श्राद्धकर्म व उसके पीछे का सूक्ष्म रहस्य

 

श्राद्ध पक्ष – २० सितम्बर से ६ अक्टूबर तक


जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सदगति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी ‘श्राद्ध पक्ष’ |

श्राद्ध पक्ष का लम्बा पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि ‘यहाँ चाहे जितनी विजय प्राप्त हो, प्रसिद्धि प्राप्त हो परंतु परदादा के दादा, दादा के दादा, उनके दादा चल बसे, अपने दादा भी चल बसे और अपने पिताजी भी गये या जाने की तैयारी में हैं तो हमें भी जाना हैं |’

श्राद्ध हेतु आवश्यक बातें

जिनका श्राद्ध करना है, सुबह उनका मानसिक आवाहन करना चाहिए | और जिस ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराना है उसको एक दिन पहले न्योता दे आना चाहिए ताकि वह श्राद्ध के पूर्व दिन संयम से रहे, पति – पत्नी के विकारी व्यवहार से अपने को बचा ले | फिर श्राद्ध का भोजन खिलाते समय –

देवताभ्य: पितृभ्यश्च महयोगिभ्य एव च |

नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नम: || 

(अग्निपुराण :११७.२२ )

यह श्लोक बोलकर देवताओं को, पितरों को, महयोगियों को तथा स्वधा और स्वाहा देवियों को नमस्कार किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘मेरे पिता को, माता को..... (जिनका भी श्राद्ध करते हैं उनको ) मेरे श्राद्ध का सत्त्व पहुँचे, वे सुखी व प्रसन्न रहें |’

श्राद्ध के निमित्त गीता के ७ वें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर पाठ कर लें और उसका पुण्य जिनका श्राद्ध करते हैं उनको अर्पण कर दें, इससे भी श्राद्धकर्म सुखदायी और साफल्यदायी होता है |

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

आप श्राद्ध करते हैं तो –

१)   आपको भी पक्का होता है कि ‘हम मरेंगे तब हमारा भी कोई श्राद्ध करेगा परंतु हम वास्तव में नहीं मरते, हमारा शरीर छूटता है |’ तो आत्मा की अमरता का, शरीर के मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व रहता है इसका आपको पुष्टीकरण होता है |

२)     देवताओं, पितरों, योगियों और  स्वधा-स्वाहा देवियों के लिए सद्भाव होता है |

३)  भगवतगीता का माहात्म्य पढ़ते है, जिससे पता चलता है कि पुत्रों द्वारा पिता के लिए किया हुआ सत्कर्म पिता की उन्नति करता है और पिता की शुभकामना से पुत्र-परिवार में अच्छी आत्माएँ आती हैं |

ब्रह्माजी ने सृष्टि करने के बाद देखा कि ‘जीव को सुख-सुविधाएँ दीं फिर भी वह दु:खी है’ तो उन्होंने यह विधान किया कि एक-दूसरे का पोषण करो | आप देवताओं-पितरों का पोषण करो, देवता-पितर आपका पोषण करेंगे | आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, आपले अर्घ्य के सद्भाव से सूर्यदेव पुष्ट होते हैं और यह पुष्टि विरोधियों, असुरों के आगे सूर्य को विजेता बनाती है | जैसे रामजी को विजेता बनाने में बंदर, गिलहरी भी काम आये ऐसे ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो सूर्य विजयपूर्वक अपना दैवी कार्य करते हैं, आप पर प्रसन्न होते हैं और अपनी तरफ से आपको भी पुष्ट करते हैं |

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: |

परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ ||     

गीता :३.११

‘तुम इस यज्ञ (ईश्वरप्राप्ति के लिए किये जानेवाले कर्मों ) के द्वारा देवताओं को तृप्त करो और (उनसे तृप्त हुए ) वे देवगण तुम्हें तृप्त करें | इस प्रकार (नि:स्वार्थ भाव से ) एक-दूसरे को तृप्त या उन्नत करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे |’

देवताओं का हम  पोषण करें तो वे सबल होते हैं और सवल देवता वर्षा करने, प्रेरणा देने, हमारी इन्द्रियों को पुष्ट करने में लगते हैं | इससे सबका मंगल होता है |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से


अन्नपूर्णा प्रयोग

 

प्रति पूर्णिमा को घर के अन्न – भंडार के स्थान पर कपास तेल का दीपक जलायें | इसके प्रभाव से घर की रसोई में बहुत बरकत होती है | यह अन्नपूर्णा प्रयोग हैं |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा

 

अगर अशांति मिटानी है तो दोनों नथुनों से श्वास लें और ‘ॐ शान्ति:...... शान्ति:’ जप करें और फिर फूँक मार के अशांति को, बाहर फेंक दें | जब तारे नहीं दिखते हों, चन्द्रमा नहीं दिखता हो और सूरज अभी आनेवाले हों तो वह समय मंत्रसिद्धि योग का है, मनोकामना-सिद्धि योग का है | 

इस काल में किया हुआ यह प्रयोग अशांति को भगाने में बड़ी मदद देगा | अगर निरोगता प्राप्त करनी है तो आरोग्यता के भाव से श्वास भरें और आरोग्य का मंत्र ‘नासै रोग हरै सब पीरा | जपत निरंतर हनुमत बीरा ||’ जपकर ‘रोग गया’ ऐसा भाव करके फूँक मारें | ऐसा १० बार करें | कैसा भी रोगी, कैसा भी अशांत और कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से

बहुगुणी चौलाई के स्वास्थ्य - लाभ

 


हरी सब्जियों में उच्च स्थान प्राप्त करनेवाली चौलाई (तंदुलिया) एक श्रेष्ठ पथ्य तथा अनेक खनिजो का भंडार है | यह पचने में हलकी, शीतल, रुक्ष व रुचिकर है | यह भूखवर्धक तथा मल-मूत्र को निकालनेवाली एवं पित्त,कफ, रक्तविकार तथा विष को दूर करनेवाली है |

चौलाई रक्तशुद्धि करनेवाली होने से खुजली एवं विभिन्न त्वचा-विकारों में भी लाभदायी है | इसका सेवन पुराने कब्ज, बवासीर, पथरी आदि रोगों में हितकारी है | इससे गर्मी से उत्पन्न समस्याओं, जैसे हथेलियों, तलवों एव पेशाब की जलन आदि में लाभ होता है |

चौलाई में कैल्शियम, लौह, मॅग्नेशियम, पोटैशियम, विटामिन ‘ए’ व ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होते हैं | यह रोगी-निरोगी सभीके लिए हितकारी है | इसकी सब्जी बनाकर खाने की अपेक्षा रस निकाल के सेवन करना अधिक लाभदायी है |

विशेष : चौलाई की सब्जी केवल उबालकर या हलका – सा बघार दे के तैयार करें | पथ्यरूप में देने के लिए घी का उपयोग करें, तेल का प्रयोग कम-से-कम करें |

औषधीय प्रयोग

१)   भूख न लगना व पेट के रोग : चौलाई की सब्जी अथवा रस का दिन में १ या २ बार सेवन पाचनशक्ति बढाता है, साथ ही पेट के रोगों में भी लाभकारी है |

२)  पित्त व कफ जन्य बुखार : चौलाई के पत्तों को पानी में उबालकर उसीमें निचोड़ लें | इस पानी में स्वादानुसार सेंधा नमक, २ – २ चुटकी काली मिर्च व सोंठ चूर्ण मिला के दिन में १ – २ बार सेवन करें |

३)     पेशाब कम आना व शरीर में सूजन : चौलाई के रस में २ चुटकी जीरा चूर्ण, चौथाई चम्मच धनिया चूर्ण व १ चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है |

पोषक तत्त्वों से भरपूर चौलाई के बीज

लाल चौलाई के दाने (बीज) रामदाना व राजगिरा नाम से जाने जाते है | ये भी चौलाई की तरह पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं | गेहूँ की तुलना में इनमें १० गुना से अधिक कैल्शियम, ३ गुना से अधिक वसा एवं दुगने से भी अधिक लौह तत्त्व होता है | रक्त की कमी में राजगिरा व गुड़ के लड्डू या चिक्की उपयोगी है |

राजगिरा की राब : राजगिरे का ३० ग्राम आटा लेकर देशी घी या तेल में सेंकें | फिर उसमें पानी व मिश्री मिला के २-३ उबाल आने दें | इसमें आवश्यकतानुसार दूध भी डाल सकते हैं |दूध मिलाना हो तो आटा घी में ही सेंकें | यह पौष्टिक व बल-वीर्यवर्धक है | इसका सेवन उपवास के दिन विशेषरूप से किया जाता है |

चौलाई के रस की सेवन-मात्रा : २० से ५० मि.ली.

      

  लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२१ से