शरद ऋतू : २२ अगस्त से २२ अक्टूबर
वर्षा ऋतू में संचित पित्तदोष शरद ऋतू में प्रकुपित होता है | आयुर्वेद में
पित्त को नष्ट करने के लिए आहार में छ: रसों में से ३ रस अर्थात कषाय (कसैला),
मधुर व तिक्त (कड़वा ) रस-प्रधान पदार्थों का सेवन हितकारी बताया गया है |
मधुर रसयुक्त पदार्थ : देशी गाय का दूध व घी, शहद, केला,नारियल, गन्ना, काली
द्राक्ष, किशमिश, मिश्री, मधुर फल आदि |
कड़वे रसयुक्त पदार्थ : नीम, चिरायता, गिलोय, हल्दी, करेला, अडूसा आदि |
कसैले रसयुक्त पदार्थ : आँवला, हरड, त्रिफला, जामुन, पालक, अनार आदि |
पित्त-प्रकोप से फोड़े-फुंसी, दाद, खाज, खुजली, रक्तपित्त, त्वचा-रोग, शीतपित्त,
अम्लपित्त, अजीर्ण जैसे लक्षण दिखाई देते हैं |
पित्तदोष दूर करने के लिए एलोपैथिक दवाइयों के सेवन से पित्त को दबाना नहीं
चाहिए अन्यथा रक्त की अशुद्धि व पित्त की समस्याएँ और अधिक बढ़ने की सम्भावना होती
है |
पित्तदोष-निवारण हेतु घरेलू उपाय
· देशी
गाय का शुद्ध घी : उत्तम जठराग्नि-प्रदीपक व श्रेष्ठ पित्तशामक है | २ छोटे चम्मच
घी भोजन के साथ सेवन करें | अथवा सुबह खाली पेट १ चम्मच घी हलका गुनगुना करके गर्म
पानी के साथ सेवन करें व बाद में भूख लगने पर भोजन करें |
· मक्खन-मिश्री
खाने से भी लाभ होता है | (हमेशा ताजे-मक्खन का ही उपयोग करें | बाजार में
बिकनेवाले कई दिन पुराने मक्खन से परहेज रखना चाहिए |)
· आँवला
रस : आँवले का मुरब्बा या आँवला कैंडी, पित्त को कम करने के लिए काफी प्रभावशाली
है |
· ८ से १० काले मुनक्के रात को पानी में भिगोकर सुबह पानी के साथ लें | मुनक्का पित्तशामक व मृदु विरेचक होता है | इससे पेट भी अच्छे-से साफ़ होगा |
·
१ – १
चम्मच गुलकंद दिन में १ – २ बार ले सकते हैं |
ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से
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