हरी सब्जियों में उच्च स्थान प्राप्त करनेवाली चौलाई (तंदुलिया) एक श्रेष्ठ
पथ्य तथा अनेक खनिजो का भंडार है | यह पचने में हलकी, शीतल, रुक्ष व रुचिकर है |
यह भूखवर्धक तथा मल-मूत्र को निकालनेवाली एवं पित्त,कफ, रक्तविकार तथा विष को दूर
करनेवाली है |
चौलाई रक्तशुद्धि करनेवाली होने से खुजली एवं विभिन्न त्वचा-विकारों में भी
लाभदायी है | इसका सेवन पुराने कब्ज, बवासीर, पथरी आदि रोगों में हितकारी है |
इससे गर्मी से उत्पन्न समस्याओं, जैसे हथेलियों, तलवों एव पेशाब की जलन आदि में
लाभ होता है |
चौलाई में कैल्शियम, लौह, मॅग्नेशियम, पोटैशियम, विटामिन ‘ए’ व ‘सी’ प्रचुर
मात्रा में होते हैं | यह रोगी-निरोगी सभीके लिए हितकारी है | इसकी सब्जी बनाकर
खाने की अपेक्षा रस निकाल के सेवन करना अधिक लाभदायी है |
विशेष : चौलाई की सब्जी केवल उबालकर या हलका – सा बघार दे के तैयार करें |
पथ्यरूप में देने के लिए घी का उपयोग करें, तेल का प्रयोग कम-से-कम करें |
औषधीय प्रयोग
१) भूख न लगना व पेट के रोग : चौलाई की सब्जी अथवा रस का दिन
में १ या २ बार सेवन पाचनशक्ति बढाता है, साथ ही पेट के रोगों में भी लाभकारी है |
२) पित्त व कफ जन्य बुखार : चौलाई के पत्तों को पानी में
उबालकर उसीमें निचोड़ लें | इस पानी में स्वादानुसार सेंधा नमक, २ – २ चुटकी काली
मिर्च व सोंठ चूर्ण मिला के दिन में १ – २ बार सेवन करें |
३) पेशाब कम आना व शरीर में सूजन : चौलाई के रस में २ चुटकी
जीरा चूर्ण, चौथाई चम्मच धनिया चूर्ण व १ चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ
होता है |
पोषक तत्त्वों से भरपूर चौलाई के बीज
लाल चौलाई के दाने (बीज) रामदाना व राजगिरा नाम से जाने जाते है | ये भी चौलाई की तरह पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं | गेहूँ की तुलना में इनमें १० गुना से अधिक कैल्शियम, ३ गुना से अधिक वसा एवं दुगने से भी अधिक लौह तत्त्व होता है | रक्त की कमी में राजगिरा व गुड़ के लड्डू या चिक्की उपयोगी है |
राजगिरा की राब : राजगिरे का ३० ग्राम आटा लेकर देशी घी या तेल में सेंकें |
फिर उसमें पानी व मिश्री मिला के २-३ उबाल आने दें | इसमें आवश्यकतानुसार दूध भी
डाल सकते हैं |दूध मिलाना हो तो आटा घी में ही सेंकें | यह पौष्टिक व बल-वीर्यवर्धक
है | इसका सेवन उपवास के दिन विशेषरूप से किया जाता है |
चौलाई के रस की सेवन-मात्रा : २० से ५० मि.ली.
लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२१
से
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