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Sunday, September 5, 2021

श्राद्धकर्म व उसके पीछे का सूक्ष्म रहस्य

 

श्राद्ध पक्ष – २० सितम्बर से ६ अक्टूबर तक


जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सदगति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी ‘श्राद्ध पक्ष’ |

श्राद्ध पक्ष का लम्बा पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि ‘यहाँ चाहे जितनी विजय प्राप्त हो, प्रसिद्धि प्राप्त हो परंतु परदादा के दादा, दादा के दादा, उनके दादा चल बसे, अपने दादा भी चल बसे और अपने पिताजी भी गये या जाने की तैयारी में हैं तो हमें भी जाना हैं |’

श्राद्ध हेतु आवश्यक बातें

जिनका श्राद्ध करना है, सुबह उनका मानसिक आवाहन करना चाहिए | और जिस ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराना है उसको एक दिन पहले न्योता दे आना चाहिए ताकि वह श्राद्ध के पूर्व दिन संयम से रहे, पति – पत्नी के विकारी व्यवहार से अपने को बचा ले | फिर श्राद्ध का भोजन खिलाते समय –

देवताभ्य: पितृभ्यश्च महयोगिभ्य एव च |

नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नम: || 

(अग्निपुराण :११७.२२ )

यह श्लोक बोलकर देवताओं को, पितरों को, महयोगियों को तथा स्वधा और स्वाहा देवियों को नमस्कार किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘मेरे पिता को, माता को..... (जिनका भी श्राद्ध करते हैं उनको ) मेरे श्राद्ध का सत्त्व पहुँचे, वे सुखी व प्रसन्न रहें |’

श्राद्ध के निमित्त गीता के ७ वें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर पाठ कर लें और उसका पुण्य जिनका श्राद्ध करते हैं उनको अर्पण कर दें, इससे भी श्राद्धकर्म सुखदायी और साफल्यदायी होता है |

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

आप श्राद्ध करते हैं तो –

१)   आपको भी पक्का होता है कि ‘हम मरेंगे तब हमारा भी कोई श्राद्ध करेगा परंतु हम वास्तव में नहीं मरते, हमारा शरीर छूटता है |’ तो आत्मा की अमरता का, शरीर के मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व रहता है इसका आपको पुष्टीकरण होता है |

२)     देवताओं, पितरों, योगियों और  स्वधा-स्वाहा देवियों के लिए सद्भाव होता है |

३)  भगवतगीता का माहात्म्य पढ़ते है, जिससे पता चलता है कि पुत्रों द्वारा पिता के लिए किया हुआ सत्कर्म पिता की उन्नति करता है और पिता की शुभकामना से पुत्र-परिवार में अच्छी आत्माएँ आती हैं |

ब्रह्माजी ने सृष्टि करने के बाद देखा कि ‘जीव को सुख-सुविधाएँ दीं फिर भी वह दु:खी है’ तो उन्होंने यह विधान किया कि एक-दूसरे का पोषण करो | आप देवताओं-पितरों का पोषण करो, देवता-पितर आपका पोषण करेंगे | आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, आपले अर्घ्य के सद्भाव से सूर्यदेव पुष्ट होते हैं और यह पुष्टि विरोधियों, असुरों के आगे सूर्य को विजेता बनाती है | जैसे रामजी को विजेता बनाने में बंदर, गिलहरी भी काम आये ऐसे ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो सूर्य विजयपूर्वक अपना दैवी कार्य करते हैं, आप पर प्रसन्न होते हैं और अपनी तरफ से आपको भी पुष्ट करते हैं |

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: |

परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ ||     

गीता :३.११

‘तुम इस यज्ञ (ईश्वरप्राप्ति के लिए किये जानेवाले कर्मों ) के द्वारा देवताओं को तृप्त करो और (उनसे तृप्त हुए ) वे देवगण तुम्हें तृप्त करें | इस प्रकार (नि:स्वार्थ भाव से ) एक-दूसरे को तृप्त या उन्नत करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे |’

देवताओं का हम  पोषण करें तो वे सबल होते हैं और सवल देवता वर्षा करने, प्रेरणा देने, हमारी इन्द्रियों को पुष्ट करने में लगते हैं | इससे सबका मंगल होता है |


ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से


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