हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में संध्योपासना तथा किसी भी मांगलिक पूजन में
आरती का एक विशेष स्थान है | शास्त्रों में आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ भी
कहा गया है |
पूज्य बापूजी वर्षों से न केवल आरती की महिमा, विधि, उसके वैज्ञानिक महत्त्व आदि
के बारे में बताते रहे हैं बल्कि अपने सत्संग – समारोहों में सामूहिक आरती द्वारा
उसके लाभों का प्रत्यक्ष अनुभव भी करवाते रहे हैं |
पूज्य बापूजी के सत्संग -अमृत में आता है : “आरती एक प्रकार से वातावरण में शुद्धिकरण
करने तथा अपने और दूसरे के आभामंडलों में सामंजस्य लाने की एक व्यवस्था है | हम आरती
करते हैं तो उससे आभा, ऊर्जा मिलती है | हिन्दू धर्म के ऋषियों ने शुभ प्रसंगों पर
एवं भगवान की, संतो की आरती करने की जो खोज की है वह हानिकारक जीवाणुओं को दूर
रखती है, एक-दूसरे जे मनोभावों का समन्वय करती है और आध्यात्मिक उन्नति में बड़ा
योगदान देती है |
शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है | शुभ
कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण
हो जाती है | स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है | भगवान श्रीकृष्ण कहते
हैं :
मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम |
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ||
‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है,
वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है |’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव
खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)
ज्योत की संख्या का रहस्य
सामान्यत: ५ ज्योतवाले दीपक से आरती की जाती है, जिसे ‘पंचदीप’ कहा जाता है |
आरती में या तो एक ज्योत हो या तो तीन हों या तो पाँच हों | ज्योत विषम संख्या (१,३,५,....)
में जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है | यदि ज्योत की
संख्या सम (२,४,६,...) हो तो ऊर्जा - संवहन की क्रिया निष्क्रिय हो जाती है |
अतिथि की आरती क्यों ?
हर व्यक्ति के शरीर से ऊर्जा, आभा निकलती रहती है | कोई अतिथि आता है तो हम
उसकी आरती करते हैं क्योंकि सनातन संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है | हर
मनुष्य की अपनी आभा है तो घर में रहनेवालों की आभा को उस अतिथि की नयी आभा
विक्षिप्त न करे और वह अपने को पराया न पाये इसलिए आरती की जाती है | इससे उसको
स्नेह-का-स्नेह मिल गया और घर की आभा में घुल-मिल गये | कैसी सुंदर व्यवस्था है
सनातन धर्म की !”
ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से
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