स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदायक एक बहुश्रुत औषधि है – त्रिफला चूर्ण | आँवला,
बेहडा और हरड के सम्मिश्रण से बना यह चूर्ण त्रिदोषशामक, विशेषरूप से
कफ-पित्तशामक,नेत्रों के लिए परम हितावह, जठराग्नि – प्रदीपक, भोजन में रूचि
उत्पन्न करनेवाला, पेट साफ़ व घाव को ठीक करनेवाला, रक्त व त्वचा विकारों को दूर
करनेवाला, ह्रदय-हितकर, उत्तम रसायन और शरीर में किसी भी स्थान में संचित सूक्ष्म मल को साफ़ करनेवाला है |
सेवन-वर्ष के अनुसार लाभ
अगर कोई व्यक्ति नियमितरुप से प्रात: बिना कुछ खाये – पिये ताजे पानी के साथ
त्रिफला का सेवन करता है तो अनेक लाभ होते हैं |
त्रिफला-सेवन के बाद २ से २.५ घंटे तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए | शुरू में
इसके सेवन से एक या दो पतले दस्त हो सकते हैं किंतु इससे घबरायें नहीं | वृद्ध तथा
किसी रोग से ग्रस्त व्यक्ति सेवन की मात्रा वैद्यकीय सलाह-अनुसार निश्चित करें |
त्रिफला रुक्ष होता है अत: लम्बे समय तक सेवन करने के लिए देशी गाय के घी अथवा
काले तिल के तेल के साथ मिलाकर ऊपर से गर्म पानी पीना अधिक हितकारी होता है |
(घीयुक्त त्रिफला रसायन विशेषकर अहमदाबाद, सुरत, करोलबाग – दिल्ली, गोरेगाँव-मुंबई
आदि और सेवाकेन्द्रोंपर प्राप्त हो सकता है |)
त्रिफला सेवन-मात्रा : चूर्ण – ३ से ५ ग्राम अथवा गोलियाँ – ३ से ४
मास-अनुसार त्रिफला का अनुपान
मासों के अनुसार त्रिफला के साथ उसमें उसकी मात्रा के छठे भाग बराबर
निम्नलिखित द्रव्यों को मिला के सेवन करने से उसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है |
१] श्रावण और भाद्रपद : सेंधा नमक
२] आश्विन और कार्तिक : शर्करा (मिश्री या खाँड अर्थात अपरिष्कृत शक्कर)
३] मार्गशीर्ष और पौष : सोंठ चूर्ण
४] माघ तथा फाल्गुन : पीपर का चूर्ण
५] चैत्र और वैशाख : शहद
६] ज्येष्ठ तथा आषाढ़ : पुराना गुड़
इस प्रकार त्रिफला शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ
प्राप्त करने में सहायक व प्रसादरूप है |
ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०२१ से
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