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Thursday, December 30, 2021

भूखवर्धक एवं वात-कफशामक उत्तम औषधि – अदरक

 


रोगों से रक्षा के लिए जठराग्नि को प्रदीप्त रखना अत्यंत आवश्यक है | इसके लिए अदरक का सेवन विशेष हितकारी है | आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश निघंटु में आता है :

भोजनाग्रे  सदा पथ्यं लवणार्दकभक्षणम् |

अग्निसन्दीपनं रुच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनम् ||  

‘भोजन से (आधा घंटा) पहले (सेंधा) नमक व अदरक का सेवन करना सदा पथ्यकर है | यह जठराग्नि  को प्रदीप्त करनेवाला, रुचिकारक तथा जिह्वा व कंठ की शुद्धि करनेवाला हैं |’

 

अदरक उष्ण , तीक्ष्ण, वात-कफनाशक, भूख व भोजन में रूचि बढानेवाला एवं भोजन पचाने में सहायक है | अदरक को सुखाकर बनायी गयी सोंठ सप्तधातुओं का निर्माण कर वीर्यवर्धन का कार्य करती है | अदरक तथा सोंठ वात एवं आमदोश को मिटाकर दर्दनाशक का कार्य करते हैं | अदरक ह्रदय एवं रक्तवहन संस्थान को बल प्रदान करता है | यह सर्दी, जुकाम व दमें में लाभकारी है |

यह गठिया, लकवा, कम्पवात (सिर व हाथ का कम्पन), ग्रुधसी, कमरदर्द आदि वायु-संबंधी बीमारियों में उत्तम व सर्वसुलभ औषधि है | इसका सेवन हिचकी, उलटी, अजीर्ण, अफरा (गैस), पेटदर्द, कृमि, कब्ज, खाँसी, हाथीपाँव आदि रोगों में भी लाभदायी है |

 

सर्दी, खाँसी व दमे में लाभकारी प्रयोग

१ इंच अदरक के छोटे –छोटे टुकड़े कर लें | थोडा-सा गुड़ लेकर उसे गर्म करें | गुड़ पिघल जाने पर अदरक को उसमें अच्छी तरह मिलायें और उतार लें | गुनगुना रहने पर इसका सेवन करें | यह प्रयोग रात को सोते समय करें, फिर पानी से कुल्ला करें किन्तु पानी न पियें | इससे सर्दी, जुकाम, खाँसी व दमे में विशेष फायदा होता है |

 



अदरक पाक

५०० ग्राम कद्दूकश किया हुआ अदरक, ५०० ग्राम पुराना गुड़ और देशी गाय का १२५ ग्राम शुद्ध घी लें | अदरक को घी में लाल होने तक भून लें | गुड़ कि चाशनी बनाकर उसमें भूना हुआ अदरक तथा इलायची, जायफल, जावित्री, लौंग, दालचीनी, काली मिर्च व नागकेशर का ६ – ६ ग्राम (आधा छोटा चम्मच) पूर्ण मिला के पाक को सुरक्षित रख लें |

१० से २० ग्राम पाक सुबह-शाम चबाकर खायें | यह उत्तम वात-कफशामक, भूखवर्धक, पाचक, मल-निस्सारक, रुचिप्रद व कंठ के लिए हितकर है | दमा, खाँसी, जुकाम, आवाज बैठ जाना, अरूचि आदि कफ-वातजन्य विकारों में व मंदाग्नि, कब्ज, भोजन के बाद पेट में भारीपन, अफरा अथवा शरीर के किसी भी अंग में होनेवाले दर्द में इस पाक के सेवन से बहुत लाभ होता है | शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति भी आती है |

 


अदरक की चटनी

अदरक, हरा धनिया, थोड़ी-सी हरी मिर्च, नमक, नींबू आदि मिलाकर बनायी गयी चटनी रुचिकर एवं स्वास्थ्य के लिए उत्तम है |

 

सावधानी : उष्ण और तीक्ष्ण होने के कारण अदरक का प्रयोग बुखार, पेशाब में रुकावट, शरीर के किसी भी अंग से खून बहना, घाव, जलन आदि में तथा ग्रीष्म व शरद ऋतुओं में वर्जित है | पित्तजन्य व्याधिवाले व्यक्ति इसका उपयोग वैद्यकीय सलाहानुसार करें |

 

लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०२१ से

Saturday, December 11, 2021

इन तिथियों व योगों का लाभ अवश्य लें

 


१६ दिसम्बर : षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर १२:३४त्क) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल)

२५ दिसम्बर : तुलसी पूजन दिवस (इस अवसर पर तुलसी का पूजन, परिक्रमा आई करें तथा उसके समीप जप, पाठ, कीर्तन, सत्संग-श्रवण करके भगवद-विश्रांति पायें |  विश्वगुरु भारत कार्यक्रम ( २५ दिसम्बर से १ जनवरी)

२६ दिसम्बर : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से रात्रि ८:०९ तक)

३० दिसम्बर :सफल एकादशी ( सर्व कार्य सफल करनेवाला , सुख भोग व मोक्ष प्रदायक व्रत)

९ जनवरी : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से दोपहर ११:१० तक)

१३ जनवरी : पुत्रदा एकादशी ( पुत्र की इच्छा से इसका व्रत करनेवाला पूत पाकर स्वर्ग का अधिकारी भी हो जाता है |)

१४ जनवरी : मकर संक्रांति (पुण्यकाल : दोपहर २:३० से सूर्यास्त तक)

१५ जनवरी : चतुर्दशी-आर्द्रा नक्षत्र योग ( रात्रि १:५८ से १६ जनवरी रात्रि  २:०९ अर्थात १६ जनवरी ००:५८ अच से १७ जनवरी २:०९ अच ) ) ॐकार-जप अक्षय फलदायी)

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

चॉकलेट के घातक दुष्परिणामों से बचकर अपनायें स्वास्थ्य-हितकर तुलसी गोली !

 


पूज्य बापूजी के सत्संग वचनामृत में आता है : “चॉकलेट से बहुत हानि होती है | इसमें कई रसायन पड़ते हैं | इससे चॉकलेट खानेवाले बच्चों में मानसिक व्यग्रता, उत्तेजना, अवसाद, क्रोध, सिरदर्द, पेटदर्द, जोड़ों का दर्द और दाँतों के रोग बढ़ जाते हैं तथा स्वभाव चिडचिडा हो जाता है |

चॉकलेट बनानेवाले आपकी जेब के और आपके बच्चों के स्वास्थ्य के दुश्मन हैं | इसलिए चॉकलेट बच्चों को भूलकर भी नहीं खिलाना चाहिए | हमने एक टॉफ़ी ( तुलसी गोली) बनवायी, जिसमें त्रिकुट ( सोंठ, काली मिर्च व पीपर ) है | इसके सेवन से बच्चे के पेट के कृमि मिट जायेंगे, उसको कफ व खाँसी हो तो वे भी दूर हो जायेंगे, भूख भी अच्छी लगेगी और टॉफी खाने का स्वाद भी आयेगा |”

कई शोधों के बाद वैज्ञानिक भी अब यह बात बोलने लगे हैं कि चॉकलेट का सेवन कई घातक बीमारियों का कारण है |

चॉकलेट में पायें जानेवाले हानिकारक तत्त्व व उनके घातक दुष्परिणाम

चॉकलेट में कैफीन, सीसा, कैडनियम, थियोब्रोमाइन, वैसोएक्टिव एमाईस, सैच्युरेटेड फैट्स व अतिरिक्त शर्करा, थियोफिलिन, ट्रिप्तोफान जैसे हानिकारक तत्त्व पाये जाने से इसका सेवन कई प्रकार की विकृतियाँ पैदा करता है, जैसे –

१] बौद्धिक विकास में रुकावट होती है |

२] रक्तचाप बढ़ता है | यकृत, गुर्दों और हड्डियों को हानि पहुँचती हैं |

३] अपच, पेटदर्द, सिरदर्द, अरुचि, जी मिचलाना, उलटी, दस्त, अनिद्रा, चिडचिडापन, चक्कर आना, बेचैनी, ह्रदयरोग, मोटापा, दंतक्षय, त्वचा का लाल होना, पेशाब में कठिनाई, त्वचा पर चकत्ते, साँस लेने में तकलीफ, थकान आदि समस्याएँ होती है |

अत: हानिकारक द्रव्यों से युक्त चॉकलेट का सेवन करने की अपेक्षा स्वास्थ्य, स्मृति व बल वर्धक तुलसी गोलियों का सेवन करें | ये तुलसी के बीज, सोंठ, काली मिर्च, पीपर आदि बहुगुणी औषधियों से युक्त होने से सभीके लिए लाभदायी है |

       ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

 

अपने घर को बनाइये मंगलमय

 



सुविचार के द्वारा आप अपने घर को भी मंगलमय बना सकते हैं | कुछ सात्त्विक प्रयोग भी है, जैसे – पर्व के दिन घर के मुख्य द्वार पर हल्दी और चावल के आटे का घोल बनाकर या केवल हल्दी से ‘ॐ’ या स्वस्तिक बना दो | यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है | पर्व के दिन द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण बाँध दें | उसके नीचे से आने-जानेवाले कि रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी, जाते-आते उसमें ऊँचे विचारों का संचरण होगा, घर में सुख -शान्ति रहेगी |

घर में कभी गोमूत्र से पोंछा लगा लो तो हानिकारक जीवाणु तो चले जायेंगे, साथ ही गोमूत्र में जो गाय के सात्त्विक अंश का और सूर्य की दिव्य किरणों का प्रभाव होता है वह तुम्हारे फर्श को, तुम्हारे वातावरण को सुंदर और पवित्र रखेगा | थोडा खड़ा नमक लाकर घर में रख दो | ऐसा नहीं कि ‘आयोडीन-आयोडीन’ करके लुत्नेवालों का नमक खरीदकर खुद को लुटवाते रहो |अमावस्या को खड़े नमकवाले खारे पानी से घर में पोंछा लगा दो और घर में आश्रम से नि:शुल्क मिलनेवाला ग्रहदोषनिवारक स्वस्तिक रखो | इससे ऋणायन  बनेंगे, धनात्मक ऊर्जा बढ़ेगी और नकारात्मक ऊर्जा चली जायेगी |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से


शीत ऋतू में विशेष हितकर पौष्टिक एवं रुचिकर राब

 

लाभ: यह राब सुपाच्य, पौष्टिक एवं भूख व बल वर्धक है | इसमें बाजरा व गुड का मेल होने से यह सर्दियों में विशेष हितकर हैं | बाजरे में भरपूर कैल्शियम होने से यह राब हड्डियों की मजबूती के लिए उपयोगी है | यह रक्ताल्पता, मोटापा तथा कफजन्य रोगों में भी लाभकारी है | मधुमेह में नमकीन राब फायदेमंद है |

विधि : १ कटोरी राब बनाने हेतु किसी बर्तन में १.५ से २ कटोरी पानी लेकर उसमें ३ – ४ चम्मच सेंका हुआ बाजरे का आटा मिला के पकने चढ़ा दें | इसमें थोड़ी-सी सौंफ और आवश्कता अनुसार गुड़ डाल दें | दूसरे बर्तन में आधा से १ चम्मच चावल इस प्रकार पकायें कि खिचड़ी की तरह न घुलें, खुले- खुले रहें | अच्छी की तरह पक जाने पर राब में चावल डाले दें | बस , मीठी राब तैयार है | इस विधि से बनायी गयी राब रुचिकारक व सादिष्ठ बनती है |

नमकीन राब बनानी हो तो तेल में जीरे व कढ़ीपत्ते का छौंक लगा लें | इसमें १.५ से २ कटोरी पानी डाल के ३ से ४ चम्मच सेंका हुआ बाजरे का आटा मिला लें और हल्दी, नमक, धनिया आदि डालकर पका लें | फिर उपरोक्त विधि में बताये अनुसार चावल पका के इसमें मिला लें | बफ, नमकीन राब तैयार है |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

जकड़ाहट, आमवात, जोड़ों का दर्द आदि हो तो....

 

शरीर जकड़ा हुआ है, आमवात, जोड़ो का दर्द, घुटनों का दर्द आदि कि शिकायत ज्यादा है तो भोजन के समय १ गिलास गुनगुना पानी रखो | उसमें अदरक के रस की १०-१२ बुँदे डाल दो अथवा चौथाई ग्राम ( १ चनाभर) सौंठ-चूर्ण मिला दो | भोजन के बीच-बीच में २ -२ घूँट वह पानी पियो |

८० ग्राम लहसुन कि कलियाँ कूट के १०० ग्राम अरंडी के तेल में डाल दें और गर्म करें | कलियाँ जल जायें तो वह तेल उतार के रख लें | इससे घुटनों को, जोड़ों को मालिश करने से फायदा होता है |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

बहुमूल्य वनोषधियों से निर्मित दीर्घायु व यौवन प्रदाता ‘च्यवनप्राश’

 


अभी सर्दियों का मौसम चल रहा है | जैसे रिजर्व फंड (आरक्षित निधि) बैंक में पड़ा होता है तो कभी भी काम आता है ऐसे ही इस समय किया हुआ च्यवनप्राश का सेवन वर्षभर रोगप्रतिकारक शक्ति को मजबूत बनाये रखता है | आचार्य चरकजी ने च्यवनप्राश को ‘रसायन’ कहा है | रसायन शरीर की पाचन-प्रक्रिया को सुधारकर शरीर के कोशों को नवीन करता है | यह यौवन और दीर्घायु प्रदायक व सप्तधातुओं को पुष्ट करनेवाला है |

ऐसा सर्वगुणसंपन्न ‘च्यवनप्राश’ आश्रम के पवित्र एवं आध्यात्मिक वातावरण में सेवाभावी साधकों द्वारा तैयार किया जाता है | इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसमें शरद पूनम की  चाँदनी में पुष्ट हुए ताजे, वीर्यवान आँवलों व ५६ से भी अधिक बहुमूल्य वनौषधियों का समावेश होता है | यह बल-वीर्य, स्मरणशक्ति और बुद्धिशक्ति बढानेवाला तथा शरीर को कांतिमान बनानेवाला है | यह वीर्य-विकार और स्वप्नदोष दूर करता है | यह फेफड़ों को मजबूत करता है, ह्रदय को ताकत देता है, पुरानी खाँसी और दमे में बहुत फायदा करता है | इसका सेवन बालक, वृद्ध सभी वर्षभर कर सकते हैं |

सेवन-मात्रा : सुबह खाली पेट बच्चे ५ से १० ग्राम तथा बड़े १० से २० ग्राम सेवन करें |

विशेष : उपरोक्त च्यवनप्राश के साथ केसरयुक्त स्पेशल च्यवनप्राश भी आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों व समितियों से प्राप्त हो सकता है | स्पेशल च्यवनप्राश में ५६ बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के साथ हिमालय से लायी गयी दिव्य औषधि वज्रबला तथा चाँदी, लौह, बंग व अभ्रक भस्म, केसर आदि भी मिलाये जाते हैं, जिससे यह विशेष गुणवान और प्रभावशाली हो जाता है |

दमे कि समस्या में ख़ास प्रयोग सुबह १० से २० ग्राम च्यवनप्राश गुनगुने पानी में घोलकर लें | इससे श्वसन-संस्थान व प्राणों को बल मिलता है | वज्र रसायन टेबलेट कि एक गोली सुबह शहद के साथ लेना भी हितकर हैं |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

उठाये श्रेष्ठ कंद का लाभ और बचें निकृष्ट कंद से

 


अनेक बीमारियों में लाभकारी श्रेष्ठ कंद ‘सूरन’

आयुर्वेद के भावप्रकाश ग्रंथ में आता है : ‘सर्वेषां कन्द्शाकानां सूरण: श्रेष्ठ उच्यते|’ अर्थात सम्पूर्ण कंदशाकों में सूरन  श्रेष्ठ कहलाता है |

सूरन कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन आदि का अच्छा स्त्रोत है | इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन ‘ए’, ‘सी’ व ओमेगा-३ फैटी एसिड भी पाये जाते हैं | यह पौष्टिक, बल-वीर्यवर्धक, भूखवर्धक, रुचिकारक तथा कफ व वात शामक होता है |

यह बवासीर में लाभदायी है | इससे यकृत कि कार्यशीलता बढती है व शौच साफ़ होता है | यह अरुचि आँतों कि कमचोरी, खाँसी, दमा, प्लीहा की वृद्धि, आमवात, गठिया, कृमि, कब्ज आदि समस्याओं में लाभकारी है |

पुष्टिदायक व पथ्यकर सूरन की सब्जी

सूरन के टुकडो को उबाल लें और देशी गाय के घी अथवा कच्ची घानी के तेल में जीरा डालकर छौंक लगायें व धनिया, हल्दी, काली मिर्च, सेंधा नमक आदि डाल के रसेदार सब्जी बनायें | यह सब्जी रुचिकारक, पथ्यकर व पुष्टिदायक होती है | बवासीर में सूरन की सब्जी में मिर्च नहीं डालें |

बवासीरवालों के लिए ख़ास प्रयोग

अर्श (बवासीर) की समस्यावालो के लिए उत्तम औषधि होने से सूरन को अर्शोघ्न’ भी कहा जाता है | भोजन में सूरन की सब्जी तथा ताजे दही से बनाये तक्र ( ताजा मट्ठा) में आधा से १ ग्राम जीरा-चूर्ण व सेंधा नमक मिलाकर लें | दिन में दोपहर तक थोडा-थोडा मट्ठा पिनालाभ्कारी होता है | इस प्रयोग से सभी प्रकार की बवासीर में लाभ होता है | यह प्रयोग ३० से ४५ दिन तक करें | इस प्रयोग के पहले व बीच-बीच में सामान्य रेचन द्वारा कोष्ठशुद्धि (पेट कि सफाई) कर लेनी चाहिए | रेचन हेतु त्रिफला चूर्ण अथवा त्रिफला टेबलेट का उपयोग  कर सकते हैं |

सावधानी :तीक्ष्ण व उष्ण होने से गर्भवती महिलाओं तथा रक्तपित्त व त्वचा-विकारवालों को सूरन का सेवन नहीं करना चाहिए | इसके अधिक सेवन से कब्ज होने की सम्भावना होती है | सूरन के उपयोग से यदि गले में जलन या खुजली जैसा हो तो नीबू अथवा इमली का सेवन करें |

अनेक बीमारियों का जनक निकृष्ट कंद ‘आलू’

आचार्य चरकजी ने चरक संहिता (सूत्रस्थान :२५:३९) में आलू को सभी कंदों में सर्वाधिक अहितकर बताया है |

आलू शीतल, रुक्ष, पचने में भारी, जठराग्नि को मंद करनेवाला, मलावरोधक तथा कफ व वायु को बढानेवाला है | आलू को तलने से वह विषतुल्य बन जाता है | इसके सेवन से मोटापा, मधुमेह, सर्दी, बुखार, दमा, सायटिका, जोड़ों का दर्द, आमवात, ह्रदय-विकार आदि समस्याएँ उप्तन्न होती हैं |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

 

विषैले जीवाणुनाशक तथा शुभत्ववर्धक उपाय

 


अपने घर के ईशान कोण में तुलसी-पौधा अवश्य होना चाहिए| प्रात: स्नानादि के बाद उसमें शुद्ध जल चढाने तथा शाम के समय घी या तेल का दीपक जलाने से वातावरण में विचरण करनेवाले विषैले जीवाणु समाप्त होते हैं तथा शुभत्व बढ़ता है |


ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

आरती क्यों करते हैं ?

 

आरती को कैसे व कितनी बार घुमाये ?

पूज्य बापूजी के सत्संग – वचनामृत में आता है : जो भी देव हैं उनका एक बीजमन्त्र होता है | आरती करते हैं तो उनके बीजमन्त्र के अनुसार आकृति बनाते हैं ताकि उन देव कि ऊर्जा, स्वभाव हममें आयें और उनकी आभा में हमारी आभा का तालमेल हो और हमारी आभा देवत्व को उपलब्ध हो | इसलिए देवता, सद्गुरु, भगवान् कि आरती की जाती है |

जिस देवता का जो बीजमन्त्र होता है, आरती की थाली से उस प्रकार कि आकृति बना के आरती करते हैं तो ज्यादा लाभ होता है “ जैसे आप रामजी कि आरती करते हैं तो उनका ‘रां’ बीजमन्त्र है तो ‘रां’ शब्द आरती में बनाना ज्यादा लाभ करेगा | देवी की आरती करते हैं तो सरस्वतीजी का ‘ऐं’ अथवा लक्ष्मीजी का ‘श्रीं’ बना दें | गणपतिजी का बीजमंत्र है ‘गं’ तो थाली से उस प्रकार कि आकृति बना दें | अब कौन-से देव का कौन-सा बीजमन्त्र है यह पता नहीं है तो सब बीजमन्त्रो का एक मुख्य बीजमन्त्र है ‘ॐ’कार | आरती घुमाते – घुमाते आप ॐकार बना दें | सभी देवी-देबताओं के अंदर जो परब्रह्म-परमात्मा है उसकी स्वाभाविक ध्वनि ॐ है |

तो ‘ॐ’ बनाये अथवा देव के चरणों से घुटनों तक ( ४ बार) फिर नाभि के सामने (२ बार) फिर मुखारविंद के सामने (१ बार) फिर एक साथ सभी अंगो में (७ बार) आरती घुमाये| इमने देव के गुण व स्वभाव आरती घुमानेवाले के स्वभाव में थोड़े थोड़े आने लगते हैं |

आरती का वैज्ञानिक आधार

अभी तो बिज्ञानी भी दंग रह गये कि भारत की इस पूजा-पद्धति से कितना सारा लाभ होता है ! उनको भी आश्चर्यकारक परिणाम प्राप्त हुए | अब विज्ञानी बोलते हैं कि आरती करने से अगर विशेष व्यक्ति है तो उसकी विशेष ओरा और सामान्य व्यक्ति कि ओरा एकाकार होने लगती है | वैज्ञानिकों की दृष्टि में केवल आभा है तो भी धन्यवाद ! किन्तु आभा के साथ-साथ विचार भी समान होते हैं, साथ ही हमारे और सामनेवाले के शरीर से निकलनेवाली तरंगो का विपरीत स्वभाव मिटकर हमारे जीवन में प्रकाश का भाव पैदा होता है |

आयु-आरोग्य प्राप्ति व शत्रुवृद्धि शमन हेतु

आरती करने से इतने सारे लाभ होते हैं और आरती देखने से भी लाभ होता है : गुरुद्वार पर कि हुई आरती के दर्शन करने से आपके ऊपर शत्रुओं की डाली नही गलती | दीपज्योती आयु-आरोग्य प्रदायक और शत्रुओ कि वृद्धि का शमन करनेवाली है | पड़ोसी या प्रतिस्पर्धी एक-दूसरे के इतने शत्रु नहीं होते जितने मनुष्य जीवन में काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु हैं | तो आरती के दर्शन करने से शत्रुओ कि वृद्धि का शमन होता |

शास्त्रों के अनुसार जो धूप व आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती को लेता है वह अपनी अनेक पीढ़ियों का उद्धार करता है तथा भगवान विष्णु के परम पद को प्राप्त होता है |

ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से

५ आयु-आरोग्यवर्धक चीजें एवं ५ आयुनाशक चीजें

 

५ चीजों से आयुष्य और आरोग्य बढ़ता है :

१] संयम : पति – पत्नी हैं फिर भी अलग रहें, थोडा संयम से रहें |

२] उपवास : १५ दिन में एक उपवास करें |

३] सूर्यकिरणों का सेवन : रोज सुबह सिर को ढककर शरीर पर कम-से-कम वस्त्र धारण करके ८ मिनट सूर्य की ओर मुख व १० मिनट पीठ करके बैठे | सूर्य से आँखें न लडाये |

४] प्राणायाम : प्रात:काल ३ से ५ बजे के बीच प्राणायाम करना विशेष लाभकारी है | यह समय प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति, मन:शक्ति, बुद्धिशक्ति विकसित करने हेतु बेजोड़ है |

५] मंत्रजप :मंत्रजप से आयुष्य, आरोग्य बढ़ता है और भाग्य निखरता है |

इन ५ कारणों से आयुष्य नष्ट होता है :

१] अति शरीरिक परिश्रम

२] भय

३] चिंता

४] कामविकार का अधिक भोग     

५] अंग्रेजी दवाइयाँ, कैप्सूल, इंजेक्शन, ऑपरेशन आदि की गुलामी


ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०२१ से