बुद्धि का नाश कैसे होता है और विकास कैसे होता है ? विद्यार्थियों को तो ख़ास समझना चाहिए न ! बुद्धि नष्ट कैसे होती है ? बुद्धि: शोकेन नश्यति | भूतकाल कि बातें याद क्रेक ‘ऐसा नहीं हुआ, वैसा नही हुआ...’ ऐसा करके जो चिंता करते हैं न , उनकी बुद्धि का नाश होता है | और ‘मैं ऐसा करके ऐसा बनूँगा, ऐसा बनूँगा....’ यह चिंतन बुद्धि-नाश तो नहीं करता लेकिन बुद्धि को भ्रमित कर देता है | और ‘मैं कौन हूँ ? सुख-दुःख को देखनेवाला कौन ? बचपन बीत गया फिर भी जो नहीं बीता बह कौन ? जवानी बदल रही है, सुख-दुःख बदल रहा है , सब बदल रहा है इसको जाननेवाला मैं कौन हूँ ? प्रभु ! मुझे बताओ ...’ इस प्रकार का चिंतन, थोडा अपने को खोजना, भगवान के नाम का जप और शास्त्र का पठन करना- इससे बुद्धि ऐसी बढ़ेगी, ऐसी बढ़ेगी कि दुनिया का प्रसिद्द बुद्धिमान भी उसके चरणों में सिर झुकायेगा |
बुद्धि बढाने के ४ तरीके
१] शास्त्र का पठन
२] भगवन्नाम-जप, भगवद-ध्यान
३] आश्रम आदि पवित्र स्थानों में
जाना
४] ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का
सत्संग-सान्निध्य
जप करने से, ध्यान करने से बुद्धि
का विकास होता है | जरा – जरा बात में दु:खी काहे को होना ? जरा – जरा बात में
प्रभावित काहे को होना? ‘यह मिल गया, यह
मिल गया...’ मिल गया तो क्या है !
ज्यादा सुखी - दु:खी होना यह कम
बुद्धिवाले का काम है | जैसे बच्चे कि कम बुद्धि होती है तो जरा- से चॉकलेट में,
जरा-सी चीज में खुश हो जाता है और जरा-सी चीज हटी तो दु:खी हो जाता है लेकिन जब
बड़ा होता है तो चार आने का चॉकलेट आया तो क्या, गया तो क्या ! ऐसे ही संसार की
जरा-जरा सुबिधा में जो अपने को भाग्यशाली मानता है उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता
और जो जरा-से नुकसान में आपने को अभागा मानता है उसकी बुद्धि मारी जाती है | अरे !
यह सब सपना है, आता-जाता है | जो रहता है उस नित्य तत्त्व में जो टिके उसकी बुद्धि
तो गजब की विकसित होती है ! सुख-दुःख में, लाभ-हानि में, मान-अपमान में सम रहना तो
बुद्धि परमात्मा में स्थित रहेगी और स्थित बुद्धि ही महान हो जायेगी |
ऋषिप्रसाद – जनवरी
२०२२ से
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