जिह्वा के गुलाम न बनकर
सात्त्विक, ताजा आहार ही लेना, भूख से थोडा कम खाना तथा पेट साफ़ रखना – यह स्वस्थ
जीवन के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही ध्यान-भजन में मन लगने व शीघ्र आध्यात्मिक
उन्नति के लिए भी अत्यावश्यक है | कहा भी गया है :
कम खाओ, गम खाओ | पेट पर ध्यान दो
|
लंघन अर्थात उपवास स्वास्थ्य का परम हितैषी एवं रोगी का परम मित्र है | वाग्भट्टजी ने इसे परम औषध कहा है : ‘लड़घनं परमौषधम |’
अष्टांगह्रदय (सूत्रस्थान : २.१९ ) में आता है: जीर्णे हितं मितं चाधान्न |’ पहले किये हुए भोजन के पच जाने के पश्चात जो हितकर भोजन हो उसे भूख से थोड़ी कम मात्रा में खायें |’ यह स्वास्थ्य का मूल मन्त्र है |
ऋषिप्रसाद – जनवरी
२०२२ से
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