प्राचीन काल से ही भोजन, घरेलू उपचार व आयुर्वेदिक औषधि के रूप में तथा मांगलिक कार्यो में हल्दी का उपयोग होता आ रहा है | हल्दी रक्तशुद्धिकर होने से शरीर के सभी अंगों पर कार्य करती है | यह यकृत को बलवान बनाती है | रस, रक्त, मेद व शुक्र धातुओं की शुद्धि का कार्य कर असंख्य रोगों से रक्षा करती है एवं शरीर का बल बढाती है | हल्दी में कई प्रकार के जीवाणुओं को नष्ट करने तथा विष का नाश करने का सामर्थ्य पाया जाता है |
चरक
संहिता में इसे ‘बिषघ्नी’ व ‘कुष्ठघ्नी’ ( त्वचा-रोगनाशक) कहा गया है | यह उत्तम
कांतिवर्धक है | उष्ण होने से कफ-वातनाशक और कडवी होने से पित्तशामक भी है | हल्दी
का प्रयोग मुख्यत: रक्त व त्वचा विकार, मधुमेह आदि प्रमेह, कृमि, सूजन तथा कफजन्य
रोग जैसे – जुकाम, खाँसी, दमा, गला बैठ जाना आदि में किया जाता है | यह रक्त की
वृद्धि करती है तथा रक्तस्राव को शीघ्र रोकती है | आमदोष का पाचन करनेवाली होने से
यह बुखार, दस्त, पेचिश व संग्रहणी में उपयोगी है | यह शीतपित्त में बहुत गुणकारी
है | प्रसूति के पश्च्यात गर्भाशय की शुद्धि व उसे बल देने के लिए हल्दी का सेवन
अवश्य करना चाहिए | इसमें माता का दूध भी शुद्ध हो जाता है |
सर्दियों में थोड़ी-सी कच्ची हल्दी नियमितरूप से लेना बहुत लाभदायक है | इससे कई बीमारियों से रक्षा होती है |
बाजारू मिलावटी हल्दी कि अपेक्षा घर कि पीसी हुई शुद्ध हल्दी का उपयोग करें | हल्दी के सूखे कंद पानी में उबालने से नर्म हो जाते है | फिर उन्हें सुखाकर ऊपर का छिलका उतार के पीस लिया जाता है |
प्रमेय कि उत्तम औषधिप्रमेह
प्रमेह (
२० प्रकार के मूत्र-संबंधी विकार, जैसे- मधुमेह, शुक्रमेह आदि) के लिए हल्दी
श्रेष्ठ औषधि है |
शुक्रमेह
अर्थात मूत्र के साथ शुक्र धातु के जाने कि समस्या में १ ग्राम हल्दी का चूर्ण २०
मि.ली. आँवले के रस में अथवा ३ से ५ ग्राम
आँवला चूर्ण व १ चम्मच शहद में मिलाकर सेवन करें | इससे थोड़े ही दिनों में लाभ
होता है |
श्वेतप्रदर
में हल्दी के काढ़े में १ चम्मच शहद मिलाकर पीने से राहत मिलती है तथा गर्भाशय की
शुद्धि व पुष्टि भी होती है |
कुछ
औषधीय प्रयोग
१]
बवासीर : हल्दी को देशी गाय के घी में घिसकर बवासीर पर लगाने से दर्द में आराम
मिलता है |
२] आँख
आना : एक भाग हल्दी को २० भाग पानी में उबाल के काढ़ा बना लें एवं छान के ठंडा कर
लें | इसकी २ – २ बूँदे आँख में दिन में दो बार डालें | इस ठंडे काढ़े में भीगे हुए
सूती कपड़े से आँखों को ढकें | इससे आँख कि वेदना कम होती है तथा कीचड़ आना भी कम
होता है |
३] सुजाक
रोग में : इसमें पेशाब गाढ़ा, वेदनायुक्त, बार-बार और थोडा-थोडा होता है | २००
मि.ली. पानी में २ ग्राम हल्दी और ६ ग्राम आँवला चूर्ण मिलाकर धीमी आँच पर उबालें
| पानी आधा शेष रहने पर छानकर गुनगुना पियें | इससे पेशाब की जलन कम होती है,
पेशाब व मल साफ़ आने लगते हैं |
४] चोट
एवं मोच होने पर : गिरने अथवा किसी प्रकार से अंदरूनी चोट पहुँची हो तो १ – २
ग्राम हल्दी को गुड़ के साथ खाने से अथवा दूध में हल्दी डालकर उबाल के लेने से दर्द
में राहत मिलती है | अंदरूनी चोट व मोच पर हल्दी का गर्म लेप करने से भी लाभ होता
है | चोट लगकर रक्तस्त्राव हो रहा हो तो हल्दी का चूर्ण लगाने से बह तुरंत बंद हो
जाता है, घाव जल्दी भर जाता है व विषाणुओं के संक्रमण से रक्षा भी होती है |
No comments:
Post a Comment