(श्राद्ध पक्ष : १६ से ३० सितम्बर )
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को ‘पितृ पक्ष’ या ‘महालय पक्ष’ बोलते हैं | आपका एक
माह बीतता है तो पितृलोक का एक दिन होता है | साल में एक बार ही श्राद्ध करने से
कुल-खानदान के पितरों को तृप्ति हो जाती है |
श्राद्ध क्यों करें ?
गरुड़ पुराण (१०.५७-५९) में आता है कि ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई
दु:खी नहीं रहता | पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति,
पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है |
‘हारीत स्मृति’ में लिखा है :
न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष: |
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम ||
‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं
होते, कोई निरोग नहीं रहता | लम्बी आयु नहीं होती और किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त
होता ( किसी – न - किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है ) |’
महर्षि सुमन्तु ने कहा : “श्राद्ध जैसा कल्याण – मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या
हो सकता है ! अत: बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए |”
श्राद्ध पितृलोक में कैसे पहुँचता है ?
श्राद्ध के दिनों में मंत्र पढकर हाथ में तिल, अक्षत, जल लेकर संकल्प करते हैं
तो मंत्र के प्रभाव से पितरों को तृप्ति होती है, उनका अंत:करण प्रसन्न होता है और
कुल-खानदान में पवित्र आत्माएँ आती हैं |
‘यहाँ हमने अपने पिता का, पिता के पिता का और उनके कुल-गोत्र का नाम लेकर
ब्राह्मण को खीर खिलायी, विधिवत भोजन कराया और वह ब्राह्मण भी दुराचारी, व्यसनी
नहीं, सदाचारी है | बाबाजी ! हम श्राद्ध तो यहाँ करें तो पितृलोक में वह कैसे
पहुँचेगा ?’
जैसे मनीऑर्डर करते हैं और सही पता लिखा होता है तो मनीऑर्डर पहुँचता है, ऐसे
ही जिसका श्राद्ध करते हो उसका और उसके कुल-गोत्र का नाम लेकर तर्पण करते हो कि ‘आज
हम इनके निमित्त श्राद्ध करते हैं’ तो उन तक पहुँचता है | देवताओं व पितरों के पास
यह शक्ति होती है कि दूर होते हुए भी हमारे भाव और संकल्प स्वीकार करके वे तृप्त
हो जाते हैं | मंत्र और सूर्य की किरणों के द्वारा तथा ईश्वर की नियति के अनुसार
वह आंशिक सूक्ष्म भाग उनको पहुँचता है |
‘महाराज ! यहाँ खिलायें और वहाँ कैसे मिलता हैं ?’
भारत में रूपये जमा करा दें तो अमेरिका में डॉलर और इंग्लैंड में पाउंड होकर
मिलते हैं | जब यह मानवीय सरकार, वेतन लेनेवाले ये कर्मचारी तुम्हारी मुद्रा (
करंसी ) बदल सकते हैं तो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए जो प्रकृति काम करती है, वह
ऐसी व्यवस्था कर दे तो इसमें ईश्वर व प्रकृति के लिए क्या बड़ी बात है ! आपको इस
बात में संदेह नहीं करना चाहिए |
जैसी भावना वैसा फल
देव, पितर, ऋषि, मुनि आदि सभीमें भगवान की चेतना है | निष्काम भाव से उनको
तृप्ति कराने से भगवान में प्रीति होगी | सकाम भाव से उनको तृप्ति कराने से कुल –
खानदान में अच्छी आत्माएँ आयेंगी | भगवान में ५ हजार से भी अधिक वर्ष पहले कहा था “
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रता: |
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ||
‘देवताओं को पूजनेवाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजनेवाले
पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजनेवाले भूतों को प्राप्त होते हैं और
मेरा पूजन करनेवाले भक्त मूझको ही प्राप्त होते हैं | इसलिए मेरे भक्तों का
पुनर्जन्म नहीं होता |’ ( गीता : ९.२५ )
प्रतिमा, मंत्र, तीर्थ, देवता एवं गुरु में जिसकी जैसी बुद्धि, भावना होती है,
उसे वैसा फल मिलता है | पितृलोक में जाने की इच्छा से पूजन करता है तो मरने के बाद
पितृलोक में जायेगा लेकिन पितरों की भलाई के लिए निष्काम भाव से, कर्तव्यबुद्धि
में, भगवान की प्रसन्नता के लिए करता है तो ह्रदय प्रसन्न होकर उसके ह्रदय में
भगवदरस तो आयेगा, तडप बढ़ी तो साकार-निराकार का साक्षात्कार करने में भी सफल होगा |
बहुत-प्रेत की सदगति के लिए कुछ कर लें तो ठीक है लेकिन ‘बहुत-प्रेत मुझे यह
दे दें’ ऐसी कामना की और उनके प्रति स्थायी श्रध्दा और चिंतन हो गया तो भूतानि
यान्ति भूतेज्या....‘भूतों को पूजनेवाले ( मरने के बाद ) भूतों को प्राप्त होते
हैं |’ ( गीता ल ९.२५ )
श्राद्ध फलित होने का आसान प्रयोग
स्वधा देवी पितरों को तृप्त करने में सक्षम है | तो उसी देवी के लिए यह मंत्र
उच्चारण करना है | श्राद्ध करते समय यह मंत्र ३ बार बोलने से श्राद्ध फलित होता है
:
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा |
जो जाने-अनजाने रह गये हों, जिनकी मृत्यु की तिथि का पता न हो, उनका भी
श्राद्ध-तर्पण सर्वपित्री अमावस्या को होता है |
‘सामूहिक श्राद्ध’ का लाभ लें
सर्वपित्री दर्श अमावस्या ( ३० सितम्बर २०१६ ) के दिन विभिन्न स्थानों के संत
श्री आशारामजी आश्रमों में ‘सामूहिक श्राद्ध’ का आयोजन होता है, जिसमें आप सहभागी
हो सकते हैं | इस हेतु अपने नजदीकी आश्रम में २३ सितम्बर तक पंजीकरण करा लें |
अधिक जानकारी हेतु पहले की अपने नजदीकी आश्रम से सम्पर्क कर लें | अगर खर्चे की
परवाह न हो तो अपने घर में भी श्राद्ध करा सकते हैं |
स्रोत – ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१६ से