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Wednesday, March 6, 2019

विविध रोगनाशक एवं स्वास्थ्यरक्षक नीम


प्राकृतिक वनस्पतियाँ लोक-मांगल्य एवं व्याधिनिवारक गुणों से युक्त होने के कारण भारतीय संस्कृति में पूजनीय मानी जाती हैं | इनमें नीम भी एक है | इसकी जड़, फूल-पत्ते, फल, छाल – सभी अंग औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं |

आयुर्वेद अनुसार नीम शीतल, पचने में हलका, कफ-पित्तशामक व थकान, प्यास, खाँसी, बुखार, अरुचि, कृमि, घाव, उलटी, जी मिचलाना, प्रमेह (मूत्र-संबंधी रोगों ) आदि को दूर करनेवाला है |

नीम के पत्ते नेत्रहितकर तथा विषनाशक होते हैं | इसके फल बवासीर में लाभदायी हैं | नीम के सभी अंगों की अपेक्षा इसका तेल अधिक प्रभावशाली होता है | यह जीवाणुरोधी कार्य करता है |

औषधीय प्रयोग


नीम के पत्ते : १] स्वप्नदोष : १० मि.ली. नीम-पत्तों के रस या नीम अर्क में २ ग्राम रसायन चूर्ण मिला के पियें |
२] रक्तशुद्धि व गर्मीशमन हेतु : सुबह खाली पेट १५-२० नीम पत्तों का सेवन करें |

फूल व फल : १] पेट के रोगों से सुरक्षा : नीम के फूल तथा पकी हुई निबौलियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते |

नीम तेल : १] चर्मरोग व पुराने घाव में : नीम का तेल लगायें व इसकी ५-१० बूँदे गुनगुने पानी से दिन में दो बार लें |
२] गठिया व सिरदर्द में : प्रभावित अंगों पर नीम तेल की मालिश करें |
३] जलने पर : आग से जलने से हुए घाव पर नीम तेल लागने से वह शीघ्र भर जाता है |

(नीम अर्क, नीम तेल, मुलतानी नीम तुलसी साबुन एवं रसायन चूर्ण सत्साहित्य सेवाकेंद्रो व संत श्री आशारामजी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)

ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से

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