१. विद्या किसको कहते हो ?
विद्या का यह एल. एल. बी., एम.ए. अथवा डी. लिट. की बड़ी-बड़ी उपाधियाँ प्राप्त की
जायें | वह विद्या किस काम की जो शर्म गँवाये | विद्या का अर्थ है जानकारी अथवा
ज्ञान | वह प्रकाश, वह ज्ञान, जिसके जानने से हमें पता पड़े कि धर्म क्या है, अधर्म
क्या है, हमारे कर्तव्य क्या हैं, जिन्हें पालने से सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है
| विद्या पढ़कर उस पर आचरण न किया तो फिर वह विद्या किस काम की ?
२.
प्रात: उठने एवं रात्रि को
सोते समय प्रतिदिन भगवान से प्रार्थना करो की ‘प्रभु ! हमें अच्छी बुद्धि और शक्ति
दें ताकि हम अच्छे काम करें, आपस में सहानुभूति, मिलाप तथा प्रेम से चलें |’
३. सिनेमा चरित्र पर बुरा
प्रभाव डालता है, इससे विचार और संकल्प खराब होते हैं | इसे बिल्कुल न देखा करो |
४.
कभी भी मन में अपवित्र विचार
उत्पन्न होने न दो | ज्ञान के अंकुश से अशुभ विचारों को दबा दो |
५. अभ्यास द्वारा मन को वश में
करते रहो | अभ्यास अर्थात मन को कुमार्ग से निकालकर सुमार्ग पर चलाना | बार-बार
उसे सुमार्ग पर चलाते जाओगे तो आखिर तुम्हारी विजय होगी |
६.
‘सत्संग’ बुद्धि के लिए मानो
भोजन है | सत्संग करने से बुद्धि का विकास होता है |
७.
जिन कार्यों को करने से
हानि-ही-हानि हो ऐसे कार्यों को करते रहने से रुदन के अतिरिक्त अन्य कुछ हाथ नहीं
लगता |
८.
पुरुषार्थ और प्रयत्न से तुम
बड़े- से – बडी खराब अवस्था को भी बदल सकते हो |
९.
यदि पहली बार तुम्हें सफलता
नहीं मिलती तो फिर यत्न करो, लगातार प्रयत्न करते रहो तो सफलता अवश्य मिलेगी |
१०. परस्त्री को माता अथवा बहन
मानना चाहिए | सबसे प्रेम एवं सच्चाई से मिलो | दूसरों के दुःख दूर करो | सबको सुख
दो |
११. बच्चों को बचपन से ही जल्दी
उठने की आदत डालनी चाहिए |
१२. हमें सदैव हँसमुख रहना चाहिए
|
१३. विषय-विकारों के पंजे में एक
बार फँसे तो फिर रोग आकर तुम पर आक्रमण करेंगे, फिर वहाँ से छूटना कठिन हो जायेगा
| अत: विषय-विकारों से बचो |
१४. दूसरों का कभी बुरा न चाहो |
यदि कोई तुमसे किसी बात में आगे हो गया हो तो उसे गिराने का प्रयत्न न करो बल्कि
कोशिश करके अधिक गुण स्वयं में धारण करो |
-भगवत्पाद
साँई श्री लीलाशाहजी महाराज
ऋषिप्रसाद – मार्च २०१९ से
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