आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठिरेव च |
स्तब्धता चाभिमानित्वं तथात्यागित्वमेव च |
एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मता: ||
‘आलस्य, मद-मोह, चंचलता, गोष्ठी (इधर-उधर की व्यर्थ बातें
करना), जड़ता (मूर्खता), अभिमान तथा स्वार्थ-त्याग का अभाव – ये सात विद्यार्थियों
के लिए सदा ही दोष हैं |’
(महाभारत, उद्योग पर्व :४०.५)
ऋषिप्रसाद –मार्च २०१९ से
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