ऋग्वेद (मंडल ९,
सूक्त ८३, मंत्र १) में आता है : ‘हे वेदों के पति परमात्मन ! तुम्हारा स्वरूप
पवित्र है और विस्तृत है |’
परमात्मा में
अज्ञान का अंशमात्र भी नहीं है इसलिए उनमें मलिनता का कोई प्रश्न ही नहीं है |
परमात्मा तो पवित्रता के स्वरूप हैं ही, उनका नाम, स्मरण, उपासना, ज्ञान, ध्यान,
मनन आदि भी पावनकारी हैं |
पवित्राणां
पवित्रं ..... भगवान पवित्र करनेवाले तीर्थादिकों में परम पवित्र हैं |
अग्नि, वायु,
सूर्य, चन्द्र आदि पवित्र समुदाय है | इसे भी पवित्र करनेवाले वे ‘पवित्र’ नामक
भगवान हैं | उनकी कृपा से संसार में पवित्रता है | रोग शरीर को चारों ओर से सताते
हैं, दोष शरीर को दूषित बनाते हैं और उन दोषों से दूषित को भी भगवान अपने सहस्त्र
नामों के जप से स्वयं पवित्र कर देते हैं |
आचार्य चरकजी ने
भी कहा है : “हजार मस्तकवाले, चर-अचर के स्वामी, व्यापक भगवान विष्णु की सहस्त्र
नाम से स्तुति करने से अर्थात विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने से सब प्रकार के ज्वर
छुट जाते हैं |”
लोककल्याणसेतु
– फरवरी २०२० से
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