ग्राही गृज्जनकस्तीक्ष्णो
वातश्लेष्मार्शसां हित: |
(चरक
संहिता, सूत्रस्थान : २७.१७४)
गाजर स्वाद में मधुर,
कसैली तथा स्निग्ध, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, मल को बाँधनेवाली, मूत्रल, ह्रदय – हितकर,
रक्तशुद्धिकर, वातदोषनाशक, कफ निकालनेवाली, पुष्टिवर्धक, बवासीरवालों के लिए
हितकारी तथा दिमाग एवं नस – नाड़ियों के लिए बलप्रद है |
गाजर के विभिन्न
लाभ
१)
विटामिन ‘ए’ प्रचुर
मात्रा में होने से यह नेत्रज्योतिवर्धक है | दृष्टिमंदता, रतौंधी, पढ़ते समय आँखों
में तकलीफ होना आदि रोगों में कच्ची गाजर या उसके रस का सेवन लाभप्रद है | यह
प्रयोग चश्मे का नम्बर घटा सकता है |
२)
गाजर को खूब चबाकर खाने
से दाँत मजबूत, स्वच्छ एवं चमकदार होते हैं तथा मसूड़े मजबूत बनते हैं |
३)
गाजर के रस का नित्य सेवन
करने से दिमागी कमजोरी दूर होती है | गाजर का हलवा भी मस्तिष्क को पुष्ट करता है |
४)
गाजर का रस पीने से पेशाब
खुलकर आता है, रक्तशर्करा भी कम होती है | इसमें लौह तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में
पाया जाता है |
५)
यह कफ व वात के रोगियों
के लिए हितकारी है | कफशामक होने से यह वसंत ऋतू ( १९ फरवरी से १८ अप्रैल ) में
विशेष लाभकारी है |
सावधानीयाँ :
तीक्ष्ण, उष्णवीर्य होने के कारण पित्त प्रकृति के लोग गाजर का सेवन कम करें |
गाजर को भीतर का पीला भाग निकालकर खाना चाहिए क्योंकि वह अत्यधिक गर्म प्रकृति का
होने से पित्तदोष, वीर्यदोष एवं छाती में जलन उत्पन्न करता है |
ऋषिप्रसाद
– फरवरी २०२० से
No comments:
Post a Comment