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Tuesday, June 16, 2020

इन तिथियों का लाभ अवश्य लें




१ जुलाई : देवशयनी एकादशी (महान पुण्यमय, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदाता तथा पापनाशक व्रत), चतुर्मास व्रतारम्भ

५ जुलाई : गुरुपूर्णिमा, ऋषि प्रसाद जयंती, विद्यालाभ योग ( ५ व ६ जुलाई को केवल गुजरात व महाराष्ट्र में )

१५ जुलाई : कलिका एकादशी (इसका व्रत व रात्रि – जागरण करनेवाला मनुष्य न तो कभी भयंकर यमराज का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है |)

१८ जुलाई : चतुर्दशी-आर्दा नक्षत्र योग (ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ? टिप देखें )



२० जुलाई : सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से रात्रि ११:०३ तक ) (तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता-नाश )


ऋषिप्रसाद – जून २०२० से  

स्वास्थ्यप्रद दोहे


सौंफ, इलायची गर्मी में,
                       लौंग सर्दी में खायें |
त्रिफला सदाबहार है,
                   रोग सदैव हर जाय ||
वात – पित्त जब – जब बढ़ें, पहुँचावे अति कष्ट |
सोंठ आँवला द्राक्ष संग, खावै पीड़ा नष्ट ||

यह मौसम है वायु और पित्त का | तो सोंठ, आँवला और द्राक्ष का मिश्रण बनाकर काढ़ा बना लें अथवा ऐसे ही खा लें तो वायु और पित्त के प्रकोप से होनेवाली बीमारियों का शमन होता है |

खाँसी जब-जब भी करे, तुमको अति बेचैन |
सिकी हींग अरु लौंग से, मिले सहज ही चैन ||
दिन के अंत में दूध लो, रात के अंत में पानी |
भोजन के अंत में छाछ लो,
                           क्षण-क्षण सुमिरो स्वामी ||


ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

शराब की लत छोड़ने या छुड़ाने हेतु


(अंतर्राष्ट्रीय नशामुक्ति दिवस : २६ जून)
स्वयं को लत लगी हो तो.....

जिनको शराब की लत गयी हो और शराब नहीं छूटती हो वे अपनी जेब में ३ – ४ बार धोयी हुई थोड़ी किशमिश रखा करें | शराब पीने की इच्छा हो तब १०-१२ ग्राम किशमिश के दाने लें और एक-एक दाना मूँह में डालकर चबाते हुए उसका रस चूसते जायें | यदि आप घर में हों तो किशमिश का शरबत बना के भी पी सकते हैं | इससे दिमाग को ताकत मिलेगी और धीरे-धीरे शराब छोड़ने की क्षमता आ जायेगी | शराब पीने से जो ज्ञानतंतु कमजोर हो गये हैं, नसें कमजोर हो गयी हैं वे किशमिश के सेवन से बलवान हो जायेंगी और आप उत्साह, शक्ति और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे | इस प्रयोग के साथ इस मंत्र का जप करना भी लाभदायक है, जो शराब से विरक्ति दिलाता है : ॐ ह्रीं यं यश्वरायै नम: |
(इसके साथ आश्रम से प्रकाशित ‘नशे से सावधान’ सत्साहित्य का पठन करना विशेष लाभदायी है )

दूसरे किसीको लत लगी हो तो ....

जब शराबी निद्रा में हो तब उसके कुटुम्बी उपरोक्त मंत्र को मन में जपें और उसके श्वासोच्छवास के आगे खड़े होकर भावना करें : ‘आप शराब छोड़ दो, आप शराब छोड़ दो....’ इससे भी शराबी की शराब छूटेगी |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से


भोजन की पवित्रता के लिए


लिंग पुराण के ८५ वें अध्याय में आता है : अन्न और अन्य खाद्य-पेय पदार्थों को देखते हुए ११ बार ‘ॐ नम: शिवाय|’ का पावन जप करके फिर ग्रहण करना चाहिए, इससे वे सारे पवित्र हो जाते हैं |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

बीमारी को भगाओ, उससे दबो नहीं


जिसको सत्संग नहीं मिला है वे बीमार होते हैं तो बड़े दु:खी होते है, ‘मैं बीमार हो गया..... मैं बीमार हो गया.... |’ लेकिन सत्संगी समझते हैं, ‘मैं बीमार नहीं हूँ, शरीर बीमार है | मैं बीमारी को जानता हूँ | यह निगुरी आयी है, इसको भगाऊँगा लेकिन में बीमार हूँ ऐसा सोचकर इससे दबूँगा नहीं | हरि ॐ... ॐ....ॐ....| बीमारी शरीर को आयी है और दुःख मन में आया है | मन में दुःख आया, उसको भी मैं जानता हूँ और शरीर में बीमारी आयी, उसको भी में जानता हूँ | चित्त में चिंता आयी, उसको भी मैं जानता हूँ | हम हैं अपने-आप, इन सभीके बाप !’

बीमारी में चिंतन करें कि ‘मैं बीमार नही हूँ, यह शरीर का तप हो रहा है....मेरे कर्म कट रहे हैं ....|’ इस भावना से बीमारी के कष्ट को सहते हुए उसे निवृत्त करने का यत्न करें | इससे कर्म भी कटेंगे, तपस्या भी होगी और आरोग्यता भी प्राप्त हो जायेगी | आपका मन जैसा दृढ़ संकल्प करता है उसी प्रकार की आपको मदद मिलती है |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

वर्षा ऋतु में - क्या करें ? क्या न करें ?

वर्षा ऋतु – २० जून से २१ अगस्त
क्या करें
१] भोजन में मधुर, खट्टे व लवण रसवाले, चिकनाईयुक्त, वातशामक, जठराग्निरक्षक द्रव्यों की प्रधानता हो | ( चरकसंहिता, भावप्रकाश)

२] पुराने जौ, गेहूँ, चावल, काला-नमक युक्त मूँग का सूप, शहद व अन्य सुपाच्य पदार्थों का सेवन करें | ( चरक संहिता, अष्टांगह्रदय )

३] सोंठ, काली मिर्च, तेजपत्ता, दालचीनी, जीरा, धनिया, अजवायन, राई, हींग, पपीता, नाशपाती, सूरन, परवल, तोरई,बैंगन, सहजन, मूँग दाल, कुलथी, नींबू, करेला, पुनर्नवा, पुदीना, आँवला व तुलसी का सेवन लाभदायी है |

४] पहले का खाया हुआ पच जाने पर जब खुलकर भूख लगे व शरीर में हलकापन लगे तभी दूसरा भोजन करें | (अष्टांगह्रदय आदि )

५] गर्म करके ठंडा या गुनगुना किया हुआ पानी पीना चाहिए | (अष्टांगह्रदय, चरक संहिता )

६] सूखे स्थान पर रहें | घर में नमी न रहे इसका ध्यान रखें |

७] हलके, सूती कपड़े पहने | सफेद वस्त्र विशेष लाभदायी है |

क्या न करें
१] हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, पत्तागोभी, मेथी आदि तथा पचने में भारी, वातवर्धक एवं बासी पदार्थ का सेवन न करें |

२] उड़द, चना, अरहर, चौलाई, आलू, केला, आम, अंकुरित अनाज, मैदा, मिठाई, शीतल पेय, आइसक्रीम, दही व सत्तू का सेवन न करें |

३] दिन में सोना, ओस गिरते समय उसमें बैठना या घूमना, बारिश में भीगना, अधिक व्यायाम एवं मैथुन छोड़ देना चाहिए | ( चरक संहिता आदि )

४] रात्रि में खुले आकाश के नीचे न सोयें |

५] स्नान के बाद या बारिश में भीगने के बाद गीले शरीर कपड़े न पहनें | शरीर को अच्छे-से पोछकर ही कपड़े न पहने |

६] खुले बदन न घूमें |

७] देर रात को भोजन न करें |

८] रात्रि-जागरण न करें |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

बीमारी क्या खबर देती हैं ?


जो भी बिमारी आती है वह खबर देती है कि तुम खान-पान में संयम करो | पेट बाहर है तो हफ्ते में एकाध उपवास करो अथवा १५ दिन में एकादशी का व्रत रखो | कुछ नही खाओ, केवल नीबूं पानी अथवा गुनगुना पानी पियो | लड़्घनं परमौषधम |.....अर्धरोगहरि निद्रा सर्वरोगहरि क्षुधा | उपवास और आराम बीमारियों को खा जायेगा | व्यक्ति दवाई से इतना जल्दी ठीक नहीं होता जितना उपवास से ठीक होता है |

उपवास में कमजोरी लगे तो १५ से २५ ग्राम किशमिश धो के खा लो, बस हो गया | सारी बीमारी निकल जाती है | द्राक्ष, किशमिश लोग ऐसे ही खा लेते है | इन पर जंतुनाशक दवा डालते हैं, जो कि जहरी, हानिकारक होती है | इन्हें ३-४ बार अच्छी तरह धोकर ही खाना चाहिए | कभी गोमूत्र (या गोमूत्र अर्क) की कुछ बूँदे पानी में डाल के उससे भी धो सकते हैं |

प्राणायाम करो, सूर्यनारायण को अर्ध्य दो और नाभि पर सूर्यनारायण का ध्यान करो | इससे आरोग्य प्राप्त होता है  |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

वायु की तकलीफ हो तो ...


किसीको वायु की तकलीफ है तो १-२ काली मिर्च अथवा सफेद मिर्च, ५-७ तुलसी-पत्ते और १ चम्मच घी खा ले तो कैसी भी वायु हो, नियंत्रित हो जायेगी | दोनों हाथों की सबसे छोटी उँगलियों के आखिरी, बाहरी पोर को एक साथ दाँतों से दबा दे तो भी वायु-प्रकोप शांत होता है | ह्रदय की कोई तकलीफ होती है अचानक या गैस होती है तो ऐसा करे, नियंत्रित हो जायेगी |

किसीको वायु और गैस की तकलीफ ज्यादा है तो उसे आलू, चावल और चने की दाल आदि से परहेज रखना चाहिए | ये वायु करते हैं | वायु का रोगी दूध पिये तो १-२ काली मिर्च डालकर पियें |

ऋषिप्रसाद - जून २०२० से  

ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ?


[चतुर्दशी-आर्दा नक्षत्र योग : १८ जुलाई रात्रि १२:४२ से १९ जुलाई रात्रि ९:४० तक)] 
(ॐकार का जप अक्षय फलदायी )

ॐकार का अर्थ क्या होता है ?

ॐ = अ  + उ + म + अर्धमात्रा (“)| ॐ का ‘अ’कार स्थूल जगत का आधार है | ‘म’ कार कारण जगत का आधार है | अर्धमात्रा जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता-स्फूर्ति-चेतना लेते हैं फिर भी जिसमें तिलभर भी फर्क नहीं पड़ता उस परमात्मा की द्योतक है | अथवा विश्व, तैजस, प्राज्ञ-ये ३ अधिष्ठाता है | जैसे एक नगर है, वहाँ की नगरपालिका का मुख्य है नगरपालिका अध्यक्ष | एक राष्ट्र है तो राष्ट्रपति उसका मुख्य है | ऐसे ही पुरे ब्रम्हांड में जो स्थूल तत्त्व है, उस स्थूल जगत का जो मुख्य है उसको विश्व कहते हैं, सूक्ष्म जगत के मुख्य को तैजस और कारण जगत के मुख्य को प्राज्ञ कहते हैं |

ॐ में ३ मात्राएँ होती हैं ‘अ’कार, ‘उ’कार, ‘म’कार – विश्व, तैजस और प्राज्ञ | इन तीनों के ऊपर है अर्धमात्रा, उसको बोलते हैं तुरीय |

जैसे इस शरीर के जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति के तुम प्रकाशक हो, इस शरीर के स्थूल-सूक्ष्म-कारण के तुम जानकार हो ऐसे ही समष्टि के स्थूल, सूक्ष्म और कारण को जो जान रहा है उसीका सांकेतिक नाम है ‘ॐ’ |

‘ॐ’ आत्मिक बल देता है | ॐकार के उच्चारण से जीवनीशक्ति ऊर्ध्वगामी होती है | इसके ७ बार के उच्चारण से शरीर के रोगों के कीटाणु दूर होने लगते हैं एवं चित्त से हताशा- निराशा भी दूर होती है | यही कारण है कि ऋषि-मुनियों ने प्राय: सभी मंत्रों के आगे ‘ॐ’ जोड़ा है | शास्त्रों में ‘ॐ’की बड़ी भारी महिमा गायी गयी हैं |

शास्त्रों में ॐकार की महिमा
‘प्रणववाद’ ग्रंथ में ॐकार मंत्र से संबंधित २२ हजार श्लोकों का समावेश है | 
पतंजलि महाराज ने कहा है : तस्य वाचक: प्रणव: | (पातंजल योगदर्शन ) ‘ॐ’(प्रणव) परमात्मा का वाचक है, उसकी स्वाभाविक ध्वनि है | और सबमें अपने-आप यह ध्वनि हो रही है लेकिन आज का मनुष्य इतना बहरा है, इतना बहिर्मुख है कि ॐकार को बाहर से, भीतर से नही सुन पाता है इसलिए गुरुदेव देते हैं मंत्र |

‘ॐ’ बीजमंत्र है | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है : प्रणव: सर्ववेदेषु.... वेदों में मैं ‘ॐ’ हूँ |
प्रणव अर्थात ‘ॐ’ | संसार की सारी विद्याएँ जिन शब्दों से उच्चारित होती है उनका मूल है ‘ॐ’ | शास्त्रों में इसका व्यापक रूप से वर्णन किया गया है |

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

जीवन में उचित उद्द्यम हो


अपने जीवन में उचित उद्द्यम हो | सुबह नींद में से उठो न, तो थोड़ी देर चुप बैठो | फिर मन में बोलो, ‘जिस भगवान की शक्ति से मन की, बुद्धि की पुष्टि हुई है, मै उस भगवान का चिंतन करता हूँ.....ॐ .....ॐ ....|’ दोनों भौंहों के बीच में मन से सद्गुरु या को देखो और ॐकार का मानसिक जप करो | यह उद्द्यम शुरू में ५ मिनट करो फिर बढ़ाते जाओ, फिर देखो किसी भी क्षेत्र में भक्ति में, साधना में, पढ़ाई में .... सबमें आगे बढ़ते जाओगे |
                                                                                                                              
और रात को सोते समय भगवान को प्रार्थना करो की ‘प्रभु ! हमारे जीवन में उद्द्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम दें | हम संसार में भी सफल होंगे और तुमको भी पायेंगे प्रभु ! हरि ॐ ..... ॐ .....


ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

इससे धन्य हो जायेंगे


भगवान की कृपा से जिनके जीवन में ऐसा भाग्योदय हुआ है कि ब्रह्मवेत्ता श्रीगुरु मिले हैं अथवा किन्हीं ब्रह्मवेत्ता संत में श्रद्धा हुई हैं, वे सर्वात:करण से श्रीगुरु की शरण लें, उनके बालक बनकर अनन्य भाव से उनकी सेवा करें इससे धन्य हो जायेंगे, कृतकृत्य हो जायेंगे |

तीन काम बड़े महत्त्व के हैं : 
१] प्राणिमात्र पर दया करके उनके दुःखों को दूर करना |
२] निर्बलों और असहायों की सहायता करना और 
३] शत्रु को भी दुःख तथा निंदा से बचाना |


ऋषिप्रसाद – जून २०२० से

आध्यात्मिक कोष भरने का काल – चतुर्मास


(चतुर्मास : १ जुलाई से २६ नवम्बर २०२० )

देवशयनी एकादशी से देवउठी एकादशी तक के ४ महीने भगवान नारायण ध्यानमग्न रहते हैं | (पुरुषोत्तम मास होने से इस बार लगभग ५ महीने का चातुर्मास है |) अत: ये मास सनातन धर्म के प्रेमी लोगों के बीच आराधना-उपासना के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं | चतुर्मास में अन्न, जल, दूध, दही, घी, मट्ठा व गौ का दान तथा वेदपाठ, हवन आदि महान फल देते हैं |

स्कंद पुराण ( ब्राह्म खंड, चातुर्मास्य माहात्म्य : ३.११) में लिखा हैं :

सद्धर्म: सत्कथा चैव सत्सेवा दर्शनं सताम |
विष्णुपूजा रतिर्दाने चातुर्मास्यसुदुर्लभा ||

‘सद्धर्म (सत्कर्म), सत्कथा. सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन-सत्संग, भगवान का पूजन और दान में अनुराग – ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं |’

चतुर्मास में करणीय
चतुर्मास में प्रतिदिन सुबह नक्षत्र दिखे उसी समय उठ जाय और नक्षत्र-दर्शन करे | इन दिनों  २४ घंटे में के बार भोजनं करनेवाले व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है | यज्ञ में जो आहुति दे सकें सात्विक भोजन की, वैसा ही यज्ञोचित भोजन करें | ब्रह्मचर्य का पालन करें | चतुर्मास में पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को प्राप्त करनेवाला होता है | वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना भी पुण्यदायी कहा गया है | पुरे चतुर्मास में पलाश की पत्तल पर भोजन करें तो धनवान, रूपवान और मान योग्य व्यक्ति बन जायेगा |

पंचगव्य का शरीर के सभी रोगों और पापों को मिटाने तथा प्रसन्नता देने में बड़ा प्रभाव है | चातुर्मास में केवल दूध पर रहनेवाले को साधन-भजन में बड़ा बल मिलता है अथवा केवल फल-सेवन बड़े-बड़े पापों को नष्ट करता है |

इस समय पित्त-प्रकोप होता है | गुलकंद या त्रिफला का सेवन, मुलतानी मिट्टी से स्नान, दूध पीना पित्त-शमन करता है | हवन आदि में यदि तिल-चावल की आहुति देते हैं तो आप निरोग हो जाते हैं |

चतुर्मास में त्यागने योग्य
चतुर्मास में गुड़ व भोग-सामग्री का त्याग कर देना चाहिए | जो दही का त्याग करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है | नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है | परनिंदा त्यागने की बहुत प्रशंसा शास्त्रों में लिखी है | चतुर्मास में परनिंदा महापाप है, महाभय को देनेवाली है | इन ४ महीनों में शादी और सकाम यज्ञ, कर्म आदि करना मना है |

आध्यात्मिक कोष अवश्य भरें
चतुर्मास में बादल, बरसात की रिमझिम, प्राकृतिक सौंदर्य का लहलहाना यह सब साधन-भजनवर्धक है, उत्साहवर्धक है | अत: तपस्या, साधन-भजन करने का यह मौका चूकना नहीं चाहिए | अपनी योग्यता के अनुसार व्यक्ति कोई-न-कोई छोटा-बड़ा नियम ले सकता है | इन दिनों ज्यादा भूख नहीं लगती | उपवास, ध्यान, जप, शांति, आनंद, मौन, भगवत्स्मृति,सात्विक खुराक, स्नान-दान ये विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है | चतुर्मास में संकल्प कर लें कि ८ महीने तो संसार का धंधा-व्यवहार करते हैं, सर्दी में शरीर की तंदुरुस्ती और दिनों में धन का कोष भरा जाता है किंतु इन ४ महीनों में साधना का खजाना, आध्यात्मिक कोष भरेंगे |’

ऋषिप्रसाद – जून २०२० से