[चतुर्दशी-आर्दा नक्षत्र योग : १८ जुलाई रात्रि १२:४२ से १९ जुलाई रात्रि ९:४०
तक)]
(ॐकार का जप अक्षय फलदायी )
ॐकार का अर्थ क्या होता है ?
ॐ = अ + उ + म + अर्धमात्रा (“)| ॐ का
‘अ’कार स्थूल जगत का आधार है | ‘म’ कार कारण जगत का आधार है | अर्धमात्रा जो इन
तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता-स्फूर्ति-चेतना लेते
हैं फिर भी जिसमें तिलभर भी फर्क नहीं पड़ता उस परमात्मा की द्योतक है | अथवा
विश्व, तैजस, प्राज्ञ-ये ३ अधिष्ठाता है | जैसे एक नगर है, वहाँ की नगरपालिका का
मुख्य है नगरपालिका अध्यक्ष | एक राष्ट्र है तो राष्ट्रपति उसका मुख्य है | ऐसे ही
पुरे ब्रम्हांड में जो स्थूल तत्त्व है, उस स्थूल जगत का जो मुख्य है उसको विश्व
कहते हैं, सूक्ष्म जगत के मुख्य को तैजस और कारण जगत के मुख्य को प्राज्ञ कहते हैं
|
ॐ में ३ मात्राएँ होती हैं ‘अ’कार, ‘उ’कार, ‘म’कार – विश्व, तैजस और प्राज्ञ |
इन तीनों के ऊपर है अर्धमात्रा, उसको बोलते हैं तुरीय |
जैसे इस शरीर के जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति के तुम प्रकाशक हो, इस शरीर के
स्थूल-सूक्ष्म-कारण के तुम जानकार हो ऐसे ही समष्टि के स्थूल, सूक्ष्म और कारण को
जो जान रहा है उसीका सांकेतिक नाम है ‘ॐ’ |
‘ॐ’ आत्मिक बल देता है | ॐकार के उच्चारण से जीवनीशक्ति ऊर्ध्वगामी होती है |
इसके ७ बार के उच्चारण से शरीर के रोगों के कीटाणु दूर होने लगते हैं एवं चित्त से
हताशा- निराशा भी दूर होती है | यही कारण है कि ऋषि-मुनियों ने प्राय: सभी मंत्रों
के आगे ‘ॐ’ जोड़ा है | शास्त्रों में ‘ॐ’की बड़ी भारी महिमा गायी गयी हैं |
शास्त्रों में ॐकार की महिमा
‘प्रणववाद’ ग्रंथ में ॐकार मंत्र से संबंधित २२ हजार श्लोकों का समावेश है |
पतंजलि महाराज ने कहा है : तस्य वाचक: प्रणव: | (पातंजल योगदर्शन ) ‘ॐ’(प्रणव)
परमात्मा का वाचक है, उसकी स्वाभाविक ध्वनि है | और सबमें अपने-आप यह ध्वनि हो रही
है लेकिन आज का मनुष्य इतना बहरा है, इतना बहिर्मुख है कि ॐकार को बाहर से, भीतर
से नही सुन पाता है इसलिए गुरुदेव देते हैं मंत्र |
‘ॐ’ बीजमंत्र है | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है : प्रणव: सर्ववेदेषु.... वेदों
में मैं ‘ॐ’ हूँ |
प्रणव अर्थात ‘ॐ’ | संसार की सारी विद्याएँ जिन शब्दों से उच्चारित होती है
उनका मूल है ‘ॐ’ | शास्त्रों में इसका व्यापक रूप से वर्णन किया गया है |
ऋषिप्रसाद – जून २०२० से
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