जिसको सत्संग नहीं मिला है वे बीमार होते हैं तो बड़े दु:खी होते है, ‘मैं
बीमार हो गया..... मैं बीमार हो गया.... |’ लेकिन सत्संगी समझते हैं, ‘मैं बीमार
नहीं हूँ, शरीर बीमार है | मैं बीमारी को जानता हूँ | यह निगुरी आयी है, इसको
भगाऊँगा लेकिन में बीमार हूँ ऐसा सोचकर इससे दबूँगा नहीं | हरि ॐ... ॐ....ॐ....|
बीमारी शरीर को आयी है और दुःख मन में आया है | मन में दुःख आया, उसको भी मैं
जानता हूँ और शरीर में बीमारी आयी, उसको भी में जानता हूँ | चित्त में चिंता आयी,
उसको भी मैं जानता हूँ | हम हैं अपने-आप, इन सभीके बाप !’
बीमारी में चिंतन करें कि ‘मैं बीमार नही हूँ, यह शरीर का तप हो रहा
है....मेरे कर्म कट रहे हैं ....|’ इस भावना से बीमारी के कष्ट को सहते हुए उसे
निवृत्त करने का यत्न करें | इससे कर्म भी कटेंगे, तपस्या भी होगी और आरोग्यता भी
प्राप्त हो जायेगी | आपका मन जैसा दृढ़ संकल्प करता है उसी प्रकार की आपको मदद
मिलती है |
ऋषिप्रसाद – जून २०२० से
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