(चतुर्मास : १ जुलाई से २६ नवम्बर २०२० )
देवशयनी एकादशी से देवउठी एकादशी तक के ४ महीने भगवान नारायण ध्यानमग्न रहते
हैं | (पुरुषोत्तम मास होने से इस बार लगभग ५ महीने का चातुर्मास है |) अत: ये मास
सनातन धर्म के प्रेमी लोगों के बीच आराधना-उपासना के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण माने
जाते हैं | चतुर्मास में अन्न, जल, दूध, दही, घी, मट्ठा व गौ का दान तथा वेदपाठ,
हवन आदि महान फल देते हैं |
स्कंद पुराण ( ब्राह्म खंड, चातुर्मास्य माहात्म्य : ३.११) में लिखा हैं :
सद्धर्म: सत्कथा चैव सत्सेवा दर्शनं सताम |
विष्णुपूजा रतिर्दाने चातुर्मास्यसुदुर्लभा ||
‘सद्धर्म (सत्कर्म), सत्कथा. सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन-सत्संग,
भगवान का पूजन और दान में अनुराग – ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं
|’
चतुर्मास में करणीय
चतुर्मास में प्रतिदिन सुबह नक्षत्र दिखे उसी समय उठ जाय और नक्षत्र-दर्शन करे
| इन दिनों २४ घंटे में के बार भोजनं
करनेवाले व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है | यज्ञ में जो आहुति दे
सकें सात्विक भोजन की, वैसा ही यज्ञोचित भोजन करें | ब्रह्मचर्य का पालन करें |
चतुर्मास में पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को
प्राप्त करनेवाला होता है | वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना भी पुण्यदायी
कहा गया है | पुरे चतुर्मास में पलाश की पत्तल पर भोजन करें तो धनवान, रूपवान और
मान योग्य व्यक्ति बन जायेगा |
पंचगव्य का शरीर के सभी रोगों और पापों को मिटाने तथा प्रसन्नता देने में बड़ा
प्रभाव है | चातुर्मास में केवल दूध पर रहनेवाले को साधन-भजन में बड़ा बल मिलता है
अथवा केवल फल-सेवन बड़े-बड़े पापों को नष्ट करता है |
इस समय पित्त-प्रकोप होता है | गुलकंद या त्रिफला का सेवन, मुलतानी मिट्टी से
स्नान, दूध पीना पित्त-शमन करता है | हवन आदि में यदि तिल-चावल की आहुति देते हैं
तो आप निरोग हो जाते हैं |
चतुर्मास में त्यागने योग्य
चतुर्मास में गुड़ व भोग-सामग्री का त्याग कर देना चाहिए | जो दही का त्याग
करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है | नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है |
परनिंदा त्यागने की बहुत प्रशंसा शास्त्रों में लिखी है | चतुर्मास में परनिंदा
महापाप है, महाभय को देनेवाली है | इन ४ महीनों में शादी और सकाम यज्ञ, कर्म आदि
करना मना है |
आध्यात्मिक कोष अवश्य भरें
चतुर्मास में बादल, बरसात की रिमझिम, प्राकृतिक सौंदर्य का लहलहाना यह सब
साधन-भजनवर्धक है, उत्साहवर्धक है | अत: तपस्या, साधन-भजन करने का यह मौका चूकना
नहीं चाहिए | अपनी योग्यता के अनुसार व्यक्ति कोई-न-कोई छोटा-बड़ा नियम ले सकता है
| इन दिनों ज्यादा भूख नहीं लगती | उपवास, ध्यान, जप, शांति, आनंद, मौन,
भगवत्स्मृति,सात्विक खुराक, स्नान-दान ये विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है
| चतुर्मास में संकल्प कर लें कि ८ महीने तो संसार का धंधा-व्यवहार करते हैं,
सर्दी में शरीर की तंदुरुस्ती और दिनों में धन का कोष भरा जाता है किंतु इन ४
महीनों में साधना का खजाना, आध्यात्मिक कोष भरेंगे |’
ऋषिप्रसाद – जून २०२० से
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