वर्षा ऋतु – २० जून से २१ अगस्त
क्या करें
१] भोजन में मधुर, खट्टे व लवण रसवाले, चिकनाईयुक्त, वातशामक, जठराग्निरक्षक
द्रव्यों की प्रधानता हो | ( चरकसंहिता, भावप्रकाश)
२] पुराने जौ, गेहूँ, चावल, काला-नमक युक्त मूँग का सूप, शहद व अन्य सुपाच्य
पदार्थों का सेवन करें | ( चरक संहिता, अष्टांगह्रदय )
३] सोंठ, काली मिर्च, तेजपत्ता, दालचीनी, जीरा, धनिया, अजवायन, राई, हींग,
पपीता, नाशपाती, सूरन, परवल, तोरई,बैंगन, सहजन, मूँग दाल, कुलथी, नींबू, करेला, पुनर्नवा,
पुदीना, आँवला व तुलसी का सेवन लाभदायी है |
४] पहले का खाया हुआ पच जाने पर जब खुलकर भूख लगे व शरीर में हलकापन लगे तभी
दूसरा भोजन करें | (अष्टांगह्रदय आदि )
५] गर्म करके ठंडा या गुनगुना किया हुआ पानी पीना चाहिए | (अष्टांगह्रदय, चरक
संहिता )
६] सूखे स्थान पर रहें | घर में नमी न रहे इसका ध्यान रखें |
७] हलके, सूती कपड़े पहने | सफेद वस्त्र विशेष लाभदायी है |
क्या न करें
१] हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, पत्तागोभी, मेथी आदि तथा पचने में भारी,
वातवर्धक एवं बासी पदार्थ का सेवन न करें |
२] उड़द, चना, अरहर, चौलाई, आलू, केला, आम, अंकुरित अनाज, मैदा, मिठाई, शीतल
पेय, आइसक्रीम, दही व सत्तू का सेवन न करें |
३] दिन में सोना, ओस गिरते समय उसमें बैठना या घूमना, बारिश में भीगना, अधिक
व्यायाम एवं मैथुन छोड़ देना चाहिए | ( चरक संहिता आदि )
४] रात्रि में खुले आकाश के नीचे न सोयें |
५] स्नान के बाद या बारिश में भीगने के बाद गीले शरीर कपड़े न पहनें | शरीर को
अच्छे-से पोछकर ही कपड़े न पहने |
६] खुले बदन न घूमें |
७] देर रात को भोजन न करें |
८] रात्रि-जागरण न करें |
ऋषिप्रसाद – जून २०२० से
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