आयुर्वेदीय ग्रंथ
चरक संहिता में आचार्य चरकजी बताते हैं : “जो व्यक्ति स्वस्थवृत का विधिपूर्वक
पालन करता है, वह १०० वर्ष की रोगरहित आयु से पृथक नहीं होता तथा सज्जन एवं
साधुपुरुषों द्वारा प्रशंसित होकर इस लोक में अपना यश फैला के धर्म-अर्थ को
प्राप्त कर, प्राणिमात्र का हित करने से कारण सबका
बंधु बन जाता है | इसप्रकार वह पुण्यकार्य करनेवाला पुरुष मरणोपरांत भी उत्तम गति
को प्राप्त करता है | इसलिए सभी मनुष्यों को सर्वदा सद्वृत का पालन करना चाहिए |”
क्या करें
१] निश्चित, निर्भीक, लज्जायुक्त, बुद्धिमान, उत्साही, दक्ष, क्षमावान, धार्मिक और आस्तिक बनें |
२] सभी प्राणियों के
साथ बंधुवत व्यवहार करें |
३] सत्यप्रतिज्ञ,
शान्ति को प्रधानता देनेवाला एवं दुसरे के कठोर वचनों को सहनेवाला बनें |
४] भयभीत व्यक्तियों
को आश्वासन व दीन-दु:खी को सहायता देनवाले हों |
५] अमर्ष
(असहिष्णुता, क्रोध ) का नाशक,
शांतिमान और राग-द्वेष उत्पन्न करनेवाले कारणों का नाश करनेवाला होना चाहिए |
६] गंदे कपड़े, अपवित्र केश का त्याग करनेवाला होना चाहिए |
७] सिर व पैर में
प्रतिदिन तेल लगाये |
क्या न करें
१] आध्यात्मिक, पागल, पतित, भ्रूणहत्यारे और क्षुद्र तथा दुष्ट
व्यक्तियों के साथ न बैठे |
२] पापी के साथ भी
पाप का व्यवहार न करें |
३] दूसरे की गुप्त
बातें जानने की चेष्टा न करें |
४] चैत्य (मंदिर
आदि), झंडा, गुरु तथा आदरणीय, प्रशस्त कल्याणकारी
वस्तुओं की छाया को न लाँघे |
५] अधिक चमक या तेज
से युक्त पदार्थ, जैसे – सूर्य, अग्नि आदि को तथा अप्रिय, अपवित्र और निंदित
वस्तुओं को न देखे |
६] बिना शरीर की
थकावट दूर किये, बिना मुख धोये एवं नग्न
होकर स्नान न करें |
७] स्नान के बाद
खोले हुए वस्त्रों को पुन: न पहनें |
८] जिस कपड़े को
पहनकर स्नान किया गया हो उसी कपड़े से सिर का स्पर्श न करें |
ऋषिप्रसाद
– नवम्बर २०२० से
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