तं पूर्वापररात्रेषु
युत्र्जान: सततं बुध: |
लघ्वाहारो
विशुद्धात्मा पश्यत्यात्मानमात्मनि ||
‘जो विद्वान परिमित
आहार करके रात के पहले और अंतिम प्रहर में सदा ध्यानयोग का अब्यास करता है, वह अंत:करण शुद्ध होने प्रे अपने ह्रदय में ही आत्मा का साक्षात्कार कर
लेता है |’ (महाभारत शांति पर्व : १८७.२९)
ऋषिप्रसाद
– नवम्बर २०२० से
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