गुरुकृपा अथवा भगवत्कृपा का निरंतर अनुभव करना चाहते हो तो सत्संग मिलने पर
मिथ्या आग्रह, दुराग्रह न करो, स्वच्छंद (मनमुखी) होकर कर्म न करो, प्रमाद में
शक्ति तथा आलस्य में समय नष्ट न करो और विषयासक्ति का त्याग करो |
शारीरिक, मानसिक
और आत्मिक उन्नति के लिए वासना – विकारों का त्याग अत्यावश्यक है |
स्त्रोत – ऋषि प्रसाद – जनवरी – २०१७ से
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