खजूर को ‘सर्दियों का मेवा’ कहा जाता है | पूर्णरूप से परिपक्व खजूर मांसल एवं
नर्म होती है और सेवन हेतु उत्तम मानी जाती है | यह मधुर रसयुक्त, वायु एवं पित्त
के रोगों में लाभदायी, शीतल,भोजन में रूचि बढ़ानेवाली, ह्रदय के लिए हितकर, बलवर्धक
एवं पौष्टिक है | जब पूर्णरूप से पकने से पहले ही खजूर को तोड़ लिया जाता है तो ऐसी
खजूर कड़ी होती है, यह हलकी गरम होती है |
१] खजूर में शीघ्र पचनेवाली शर्करा जैसे कि ग्लूकोज व फ्रुक्टोज प्रचुर मात्रा
में पायी जाती है | इसके सेवन से शीघ्र ही ऊर्जा का संचार होता है |
२] इसमें विटामिन ‘ए’ व ‘बी’ पाये
जाने से आँखों, त्वचा व आँतों के लिए विशेष लाभदायी है | यह कोलेस्ट्रॉल को कम
करने व रतौंधी में लाभदायी है |
३] प्रचुर मात्रा में लौह तत्त्व, पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनीज, ताँबा आदि खनिज
तत्त्व होने से यह हड्डियों, दाँतों, मांसपेशियों एवं नाड़ी – तंत्र को मजबूत बनाने
में उपयोगी है | खून व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | कैंसर से सुरक्षा करने में
सहायक है |
४] इसमें फैटी एसिड्स व प्रचुर मात्रा में रेशे पाये जाते हैं जिससे यह
ह्रदयरोग, कब्ज, आँतों के कैंसर आदि विभिन्न रोगों से रक्षा करती है |
मात्रा : ५ से ७ खजूर अच्छी तरह धोकर रात को भिगो के सुबह खायें | बच्चों के
लिए २ से ४ खजूर पर्याप्त हैं | दूध या घी में मिलाकर खाना विशेष लाभदायी है |
(परिपक्व व उत्तम खजूर सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व समितियों के
सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं | )
स्त्रोत – ऋषि प्रसाद – जनवरी – २०१७ से
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