सिंघाड़े मधुर,
शीतल, वीर्यवर्धक, पित्तशामक तथा रक्त-विकार, जलन और सूजन को दूर करनेवाले, पचने
में भारी तथा वात एवं कफ कारक हैं | ये विटामिन बी-१, बी-२, बी -९, सी तथा
कैल्शियम, ताँबा, लौह तत्त्व, पोटैशियम, मैंगनीज आदि पोषक तत्त्वों के अच्छे
स्त्रोत हैं | एंटी ऑक्सीडेट्स का समृद्ध स्त्रोत होने से सिंघाड़े उच्च रक्तचाप
में एवं ह्रदय के लिए भी लाभकारी हैं |
सिंघाड़े के आटे से
कई प्रकार के पौष्टिक व आरोग्यप्रद व्यंजन बनाये जाते हैं | आटा बनाने हेतु इसकी
गिरी को निकालकर धूप में सुखा लें, फिर पिसवा लें | इसे उपवास में भी खा सकते हैं
| पाचनशक्ति के अनुसार २०-३० ग्राम सिंघाड़े के आटे से बने हलवे का सेवन करने से
श्वेतप्रदर व रक्तप्रदर में लाभ होता है, साथ ही शरीर भी पुष्ट होता है |
सिंघाड़े का हलवा
१०० ग्राम सिंघाड़े
के आटे को घी में धीमी आँच पर सुनहरा होने तक भून लें | कढ़ाई को उतार के आटे को
ठंडा होने दें | फिर इसमें १ कप गुनगुना दूध व स्वादानुसार मिश्री मिलाकर धीमी आँच
पर पकायें | सिंघाड़े का यह हलवा लौह तत्त्व से भरपूर है | रक्ताल्पता एवं मासिक
संबंधी रोगों में उपयोगी होने के साथ यह पौष्टिक और बलप्रद भी है |
सिंघाड़े की
पुष्टिदायी गोलियाँ
सिंघाड़े के आटे को
घी में सेंक लें | आटे के समभाग खजूर को मिक्सी में पीसकर आटे में मिला लें | अब
इसे हलका-सा सेंककर बेर के आकार की गोलियाँ बना लें | २ – ४ गोलियाँ सुबह चूसकर
खायें, थोड़ी देर बाद दूध पियें |
इससे अतिशीघ्रता
से रक्त की वृद्धि होती है | उत्साह, प्रसन्नता व वर्ण में निखार आता है | गर्भिणी
माताएँ गर्भावस्था के छठे महीने से यह प्रयोग शुरू करें | इससे गर्भ का पोषण व
प्रसव के बाद मातृदुग्ध में वृद्धि होगी | माताएँ बालकों को हानिकारक चॉकलेटस की
जगह ये पुष्टिदायी गोलियाँ खिलायें |
पुष्टिकारक खीर
सिंघाड़े का २ छोटे
चम्मच आटा, १ चम्मच घी, ३०० मि.ली. दूध, १०० मि.ली. पानी, स्वादानुसार
मिश्री
व थोड़ी इलायची लें | सिंघाड़े के आटे को घी डालकर धीमी आँच पर सुनहरा लाल होने तक
भूल लें | फिर इसमें दूध तथा पानी डाल के पकायें | पकने पर मिश्री व थोड़ी इलायची
डालें | यह स्वादिष्ट तथा पौष्टिक खीर रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, शुक्रधातु की
दुर्बलता, रक्तपित्त (शरीर के किसी भी भाग से खून आना ) आदि समस्याओं में तथा
गर्भिणी व प्रसूता माताओं के लिए लाभकारी है | इसके सेवन से वजन व बल की वृद्धि
होती है |
गर्भस्थापक व
गर्भपोषक पाक
सिंघाडा
सगर्भावस्था में अत्यधिक लाभकारी होता है | यह गर्भस्थापक अर्थात गर्भपात से रक्षा
करनेवाला
तथा गर्भपोषक है | इसका नियमित और उचित मात्रा में सेवन गर्भस्थ शिशु को कुपोषण से
बचाकर स्वस्थ व सुंदर बनाता है | यदि गर्भाशय की दुर्बलता या पित्त की अधिकता के
कारण गर्भ न ठहरता हो, बार-बार गर्भस्त्राव या गर्भपात हो जाता हो तो सिंघाड़े के
आटे से बने पाक का सेवन करें |
सामग्री : २००
-२०० ग्राम सिंघाड़े व गेहूँ का आटा, ४०० ग्राम देशी घी, १०० ग्राम पिसा हुआ खजूर,
१०० ग्राम बबूल का पिसा हुआ गोंद, ४०० ग्राम पीसी मिश्री |
विधि : गोंद को घी
में भून लें | फिर उसमें सिंघाड़े व गेहूँ का आटा मिलाकर धीमी आँच पर सेंकें | जब
मंद सुगंध आने लगे तब पिसा हुआ खजूर व मिश्री मिला दें | पाक बनने पर थाली में
फैलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट के रख लें |
सेवन-विधि : २
टुकड़े (लगभग २० ग्राम ) सुबह-शाम खायें | ऊपर से दूध पी सकते हैं |
सावधानियाँ : सिंघाड़ा
या उसके आटे का सेवन पाचनशक्ति के अनुसार करें | कफ प्रकृति के लोग इसका सेवन अल्प
मात्रा में करें | कब्ज हो तो इसका सेवन न करें |
लोककल्याण
सेतु – जनवरी २०२० से
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