Search This Blog

Tuesday, January 28, 2020

पौष्टिक सिंघाड़ा


सिंघाड़े मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, पित्तशामक तथा रक्त-विकार, जलन और सूजन को दूर करनेवाले, पचने में भारी तथा वात एवं कफ कारक हैं | ये विटामिन बी-१, बी-२, बी -९, सी तथा कैल्शियम, ताँबा, लौह तत्त्व, पोटैशियम, मैंगनीज आदि पोषक तत्त्वों के अच्छे स्त्रोत हैं | एंटी ऑक्सीडेट्स का समृद्ध स्त्रोत होने से सिंघाड़े उच्च रक्तचाप में एवं ह्रदय के लिए भी लाभकारी हैं |

सिंघाड़े के आटे से कई प्रकार के पौष्टिक व आरोग्यप्रद व्यंजन बनाये जाते हैं | आटा बनाने हेतु इसकी गिरी को निकालकर धूप में सुखा लें, फिर पिसवा लें | इसे उपवास में भी खा सकते हैं | पाचनशक्ति के अनुसार २०-३० ग्राम सिंघाड़े के आटे से बने हलवे का सेवन करने से श्वेतप्रदर व रक्तप्रदर में लाभ होता है, साथ ही शरीर भी पुष्ट होता है |

सिंघाड़े का हलवा

१०० ग्राम सिंघाड़े के आटे को घी में धीमी आँच पर सुनहरा होने तक भून लें | कढ़ाई को उतार के आटे को ठंडा होने दें | फिर इसमें १ कप गुनगुना दूध व स्वादानुसार मिश्री मिलाकर धीमी आँच पर पकायें | सिंघाड़े का यह हलवा लौह तत्त्व से भरपूर है | रक्ताल्पता एवं मासिक संबंधी रोगों में उपयोगी होने के साथ यह पौष्टिक और बलप्रद भी है |


सिंघाड़े की पुष्टिदायी गोलियाँ

सिंघाड़े के आटे को घी में सेंक लें | आटे के समभाग खजूर को मिक्सी में पीसकर आटे में मिला लें | अब इसे हलका-सा सेंककर बेर के आकार की गोलियाँ बना लें | २ – ४ गोलियाँ सुबह चूसकर खायें, थोड़ी देर बाद दूध पियें |

इससे अतिशीघ्रता से रक्त की वृद्धि होती है | उत्साह, प्रसन्नता व वर्ण में निखार आता है | गर्भिणी माताएँ गर्भावस्था के छठे महीने से यह प्रयोग शुरू करें | इससे गर्भ का पोषण व प्रसव के बाद मातृदुग्ध में वृद्धि होगी | माताएँ बालकों को हानिकारक चॉकलेटस की जगह ये पुष्टिदायी गोलियाँ खिलायें |

पुष्टिकारक खीर

सिंघाड़े का २ छोटे चम्मच आटा, १ चम्मच घी, ३०० मि.ली. दूध, १०० मि.ली. पानी, स्वादानुसार
मिश्री व थोड़ी इलायची लें | सिंघाड़े के आटे को घी डालकर धीमी आँच पर सुनहरा लाल होने तक भूल लें | फिर इसमें दूध तथा पानी डाल के पकायें | पकने पर मिश्री व थोड़ी इलायची डालें | यह स्वादिष्ट तथा पौष्टिक खीर रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, शुक्रधातु की दुर्बलता, रक्तपित्त (शरीर के किसी भी भाग से खून आना ) आदि समस्याओं में तथा गर्भिणी व प्रसूता माताओं के लिए लाभकारी है | इसके सेवन से वजन व बल की वृद्धि होती है | 

गर्भस्थापक व गर्भपोषक पाक

सिंघाडा सगर्भावस्था में अत्यधिक लाभकारी होता है | यह गर्भस्थापक अर्थात गर्भपात से रक्षा
करनेवाला तथा गर्भपोषक है | इसका नियमित और उचित मात्रा में सेवन गर्भस्थ शिशु को कुपोषण से बचाकर स्वस्थ व सुंदर बनाता है | यदि गर्भाशय की दुर्बलता या पित्त की अधिकता के कारण गर्भ न ठहरता हो, बार-बार गर्भस्त्राव या गर्भपात हो जाता हो तो सिंघाड़े के आटे से बने पाक का सेवन करें |

सामग्री : २०० -२०० ग्राम सिंघाड़े व गेहूँ का आटा, ४०० ग्राम देशी घी, १०० ग्राम पिसा हुआ खजूर, १०० ग्राम बबूल का पिसा हुआ गोंद, ४०० ग्राम पीसी मिश्री |

विधि : गोंद को घी में भून लें | फिर उसमें सिंघाड़े व गेहूँ का आटा मिलाकर धीमी आँच पर सेंकें | जब मंद सुगंध आने लगे तब पिसा हुआ खजूर व मिश्री मिला दें | पाक बनने पर थाली में फैलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट के रख लें |

सेवन-विधि : २ टुकड़े (लगभग २० ग्राम ) सुबह-शाम खायें | ऊपर से दूध पी सकते हैं |

सावधानियाँ : सिंघाड़ा या उसके आटे का सेवन पाचनशक्ति के अनुसार करें | कफ प्रकृति के लोग इसका सेवन अल्प मात्रा में करें | कब्ज हो तो इसका सेवन न करें |

लोककल्याण सेतु – जनवरी २०२० से
              


No comments: