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Monday, January 13, 2020

पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये गठिया रोग में अत्यंत लाभकारी प्रयोग


एलोपैथी की दवाई रोगों को दबाती है जबकि प्राणायम, आसन, उपवास आदि रोगों की जड़ को उखाड़कर फेंक देते हैं | इन उपायों से जो फायदा होता है वह एलोपैथी के कैप्सूल, इंजेक्शन आदि से नही होता है | वातरोग के ८० प्रकार हैं | उनमें से किसी भी प्रकार के वातरोग (गठिया आदि ) में ये उपाय लाभदायी हैं |

१] वायु मुद्रा : दोनों हाथों की अँगूठे के पासवाली प्रथम ऊँगली को मोड़कर अँगूठे से हलका-सा दबायें | शेष तीनों उंगलियाँ सीधी रहें | ५ -१० मिनट दिन में ४-५ बार यह मुद्रा करें |

२] प्राणायाम :

प्रयोग :१] वायु मुदा में बैठो | फिर बायाँ नथुना बंद ककरके दायें नथुने से खूब श्वास भरो फिर जहाँ पर वातरोग का प्रभाव हो- चाहे घुटने का दर्द हो, चाहे कमर का दर्द हो, चाहे कहीं भी दर्द हो- उस भाग को हिलाओ-डुलाओ |

भरे हुए श्वास को १ मिनट अंदर रोको और गुरुमंत्र या भगवन्नाम का मानसिक जप करो | फिर दायाँ नथुना बंद करके बायें नथुने से श्वास धीरे-धीरे निकाल दो | फिर ६५ सेकंड. ७० सेकंड.... इस प्रकार धीरे-धीरे कुछ दिनों के अंतराल में ५ – ५ सेकंड श्वास अंदर रोकना बढ़ाते जाओ | इस प्रकार ८०-१०० सेकंड श्वास भीतर रोको | ऐसे ८ से १० प्राणायाम करो तो दर्द में फायदा होता है (इससे किसीको गर्मी महसूस हो तो तथा ग्रीष्म ऋतू में ३ से ५ प्राणायाम करें ) | रक्त दाब (बी.पी.) अधिक हो तो श्वास कम समय रोकें |

प्रयोग -२] वायु मुद्रा में बैठकर दायें नथुने से श्वास लें , बायें से छोड़ें तथा बायें से लें, दायें से छोड़ें – ऐसा ८-१० बार करें | फिर दोनों नथुनों से गहरा श्वास भरें | अब गुदा को सिकोड़ लें व पेट को अंदर खींचे ( ये क्रमश: मूलबंध व उड्डियान बंध हुए ), फिर इस मंत्र का मानसिक जप करें – “नासै रोग हरै सब पीरा | जपत निरंतर हनुमत बीरा ||” ६० से ९० सेकंड श्वास अंदर रोकें और फिर धीरे-धीरे छोड़ दें | २ – ४ – ५ श्वास स्वाभाविक लें फिर पूरा श्वास बाहर निकाल के ५० से ८० सेकंड बाहर ही रोके रहें | मन में जप चलता रहे, मुद्रा यही बनी रहे | फिर श्वास ले लें | गठिया हो या कैसी भी वायु-संबंधी बीमारी होगी वह ऐसे भागेगी जैसे सूर्य के आने से रात्रि भाग जाती है |  ( यह प्राणायाम ५ से १० बार करें |)

प्रयोग के दिनों में १ – २ काली मिर्च, ७ तुलसी-पत्ते और १ चम्मच पिघला हुआ देशी गाय का घी सुबह खाली पेट लें |

(ध्यान दें : उपरोक्त दो में से कोई एक ही प्रयोग करें व लगातार करें, बीच में बदलें नहीं | )

सावधानी : प्राणायाम के २५-३० मिनट बाद ही किसी आहार अथवा पेय पदार्थ का सेवन करें | प्राणायाम का अभ्यास खाली पेट ही करे अथवा भोजन के ३ – ४ घंटे के बाद करें |

३] लहसुन प्रयोग : लहसुन की एक कली के ३ टुकड़े कर लें | सुबह खाली पेट एक टुकड़ा मुँह में डाल के थोडा-सादबा दिया और पानी का घूँट पी लिया | फिर दूसरा टुकड़ा भी ऐसे ही ले लिया और तीसरा अपने ऊपर से उतारकर फेक दिया | और ‘मैं ठीक हो रहा हूँ’ यह भावना करें | ऐसा ८ दिन तक करें और ९ वें दिन तीनों टुकड़े एक-एक करके खा लें | गठियावात हो, उसका बाप हो, भांजा हो, चाचा हो – सब भाग जायेंगे बोरिया-बिस्तर बाँधकर ! (लहसुन लेने के बाद १ घंटे तक कुछ भी खायें – पियें नहीं |)

अगर मंत्रदीक्षा ली है तो उसमें दियें हुए स्वास्थ्य मंत्र की १-२ माला जपे और यह प्रयोग करें तो इस रोग में और भी फायदा होता है |

४] बीजमंत्रसहित प्रयोग : ३ बिल्वपत्र के साथ १-२ काली मिर्च खरल में रगड़ के या चबाकर खा लें | इससे वायु-प्रकोप में आराम मिलता है | महाशिवरात्रि ( २१ फरवरी) की रात को वायु मुद्रा में बैठकर ‘ॐ बं बं ....’ – इस प्रकार ‘बं’ बीजमंत्र का सवा लाख जप करें | गठिया, गठिया का बाप भाग जायेगा एक ही रात में |

ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२० से

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