एलोपैथी की दवाई रोगों को दबाती है जबकि प्राणायम, आसन,
उपवास आदि रोगों की जड़ को उखाड़कर फेंक देते हैं | इन उपायों से जो फायदा होता है
वह एलोपैथी के कैप्सूल, इंजेक्शन आदि से नही होता है | वातरोग के ८० प्रकार हैं |
उनमें से किसी भी प्रकार के वातरोग (गठिया आदि ) में ये उपाय लाभदायी हैं |
१] वायु मुद्रा : दोनों हाथों की अँगूठे के पासवाली प्रथम
ऊँगली को मोड़कर अँगूठे से हलका-सा दबायें | शेष तीनों उंगलियाँ सीधी रहें | ५ -१०
मिनट दिन में ४-५ बार यह मुद्रा करें |
२] प्राणायाम :
प्रयोग :१] वायु मुदा में बैठो | फिर बायाँ नथुना बंद ककरके
दायें नथुने से खूब श्वास भरो फिर जहाँ पर वातरोग का प्रभाव हो- चाहे घुटने का
दर्द हो, चाहे कमर का दर्द हो, चाहे कहीं भी दर्द हो- उस भाग को हिलाओ-डुलाओ |
भरे हुए श्वास को १ मिनट अंदर रोको और गुरुमंत्र या भगवन्नाम
का मानसिक जप करो | फिर दायाँ नथुना बंद करके बायें नथुने से श्वास धीरे-धीरे
निकाल दो | फिर ६५ सेकंड. ७० सेकंड.... इस प्रकार धीरे-धीरे कुछ दिनों के अंतराल
में ५ – ५ सेकंड श्वास अंदर रोकना बढ़ाते जाओ | इस प्रकार ८०-१०० सेकंड श्वास भीतर
रोको | ऐसे ८ से १० प्राणायाम करो तो दर्द में फायदा होता है (इससे किसीको गर्मी
महसूस हो तो तथा ग्रीष्म ऋतू में ३ से ५ प्राणायाम करें ) | रक्त दाब (बी.पी.)
अधिक हो तो श्वास कम समय रोकें |
प्रयोग -२] वायु मुद्रा में बैठकर दायें नथुने से श्वास लें
, बायें से छोड़ें तथा बायें से लें, दायें से छोड़ें – ऐसा ८-१० बार करें | फिर
दोनों नथुनों से गहरा श्वास भरें | अब गुदा को सिकोड़ लें व पेट को अंदर खींचे ( ये
क्रमश: मूलबंध व उड्डियान बंध हुए ), फिर इस मंत्र का मानसिक जप करें – “नासै रोग
हरै सब पीरा | जपत निरंतर हनुमत बीरा ||” ६० से ९० सेकंड श्वास अंदर रोकें और फिर
धीरे-धीरे छोड़ दें | २ – ४ – ५ श्वास स्वाभाविक लें फिर पूरा श्वास बाहर निकाल के
५० से ८० सेकंड बाहर ही रोके रहें | मन में जप चलता रहे, मुद्रा यही बनी रहे | फिर
श्वास ले लें | गठिया हो या कैसी भी वायु-संबंधी बीमारी होगी वह ऐसे भागेगी जैसे
सूर्य के आने से रात्रि भाग जाती है | (
यह प्राणायाम ५ से १० बार करें |)
प्रयोग के दिनों में १ – २ काली मिर्च, ७ तुलसी-पत्ते और १
चम्मच पिघला हुआ देशी गाय का घी सुबह खाली पेट लें |
(ध्यान दें :
उपरोक्त दो में से कोई एक ही प्रयोग करें व लगातार करें, बीच में बदलें नहीं | )
सावधानी : प्राणायाम के २५-३० मिनट
बाद ही किसी आहार अथवा पेय पदार्थ का सेवन करें | प्राणायाम का अभ्यास खाली पेट ही
करे अथवा भोजन के ३ – ४ घंटे के बाद करें |
३] लहसुन प्रयोग : लहसुन की एक कली के ३ टुकड़े कर लें |
सुबह खाली पेट एक टुकड़ा मुँह में डाल के थोडा-सादबा दिया और पानी का घूँट पी लिया
| फिर दूसरा टुकड़ा भी ऐसे ही ले लिया और तीसरा अपने ऊपर से उतारकर फेक दिया | और
‘मैं ठीक हो रहा हूँ’ यह भावना करें | ऐसा ८ दिन तक करें और ९ वें दिन तीनों टुकड़े
एक-एक करके खा लें | गठियावात हो, उसका बाप हो, भांजा हो, चाचा हो – सब भाग
जायेंगे बोरिया-बिस्तर बाँधकर ! (लहसुन लेने के बाद १ घंटे तक कुछ भी खायें –
पियें नहीं |)
अगर मंत्रदीक्षा ली है तो उसमें दियें हुए स्वास्थ्य मंत्र
की १-२ माला जपे और यह प्रयोग करें तो इस रोग में और भी फायदा होता है |
४] बीजमंत्रसहित प्रयोग : ३ बिल्वपत्र के साथ १-२ काली
मिर्च खरल में रगड़ के या चबाकर खा लें | इससे वायु-प्रकोप में आराम मिलता है |
महाशिवरात्रि ( २१ फरवरी) की रात को वायु मुद्रा में बैठकर ‘ॐ बं बं ....’ – इस
प्रकार ‘बं’ बीजमंत्र का सवा लाख जप करें | गठिया, गठिया का बाप भाग जायेगा एक ही
रात में |
ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२० से
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